अपराध की बढ़ती दर एक गंभीर चुनौती

शिकार बन जाते हैं 

अपराध की बढ़ती दर एक गंभीर चुनौती

देश में अपराध की बढ़ती दर ने समाज और प्रशासन दोनों के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

देश में अपराध की बढ़ती दर ने समाज और प्रशासन दोनों के लिए गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट, जो न केवल चौंकाने वाली हैं, बल्कि देश की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल भी उठाते हैं। दो साल के लंबे अंतराल के बाद जारी यह रिपोर्ट बताती है कि 2023 में देश में हर पांच सेकंड में एक अपराध हुआ। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंकड़ा सिर्फ दर्ज मामलों का है, जबकि वास्तविक अपराध इससे कहीं अधिक हो सकते हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि साइबर अपराधों में जबरदस्त उछाल आया है। डिजिटल इंडिया के नारे के बीच साइबर अपराध में 31.2 फीसदी की वृद्धि यह साबित करती है कि हम तकनीकी रूप से तो आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर पिछड़ते जा रहे हैं। धोखाधड़ी, जबरन वसूली और यौन शोषण जैसे अपराध अब फोन और कंप्यूटर के माध्यम से घर-घर में दस्तक दे रहे हैं। रिपोर्ट की बारीकियों में देखें, तो एक मिली-जुली तस्वीर सामनेआती है। दूसरी तरफ नए किस्म के अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। सार्वजनिक मार्गों में बाधा के मामलों में 62 फीसदी की वृद्धि और मोटर वाहन अधिनियम के उल्लंघन में 103 फीसदी की बढ़ोतरी शहरों में बढ़ती अव्यवस्था और कानून की अनदेखी का प्रमाण है। यह आंकड़े बताते हैं कि अपराध का स्वरूप बदल रहा है। पारंपरिक हिंसक अपराधों की जगह अब आर्थिक और साइबर अपराध ले रहे हैं। समाज के संवेदनशील वर्गों के खिलाफ अपराध का रिकॉर्ड और भी चिंताजनक है। महिलाओं के खिलाफ 448211 मामले दर्ज हुए, जो पिछले साल से 0.7 फीसदी अधिक हैं। बच्चों के खिलाफ अपराध में 9.2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यह आंकड़े सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में किए जा रहे सरकारी दावों को खोखला साबित करते हैं।

साइबर अपराध :

साइबर अपराध की तेज रफ्तार वृद्धि भारत की डिजिटल यात्रा की सबसे बड़ी विडंबना है। 2023 में कुल 86,420 साइबर अपराध के मामले दर्ज हुए, जो 2022 के 65,893 मामलों से 31.2 फीसदी अधिक हैं। साइबर अपराध दर 2022 के 4.8 फीसदी से बढ़कर 2023 में 6.2 फीसदी हो गई। पिछले पांच सालों का रुझान और भी भयावह है। 2018 में जहां 27248 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2023 में यह संख्या तीन गुना से अधिक हो गई। 2019 में 44735, 2020 में 50035, 2021 में 52974 और 2022 में 65893 मामले दर्ज हुए। यह लगातार बढ़ोतरी साफ दर्शाती है कि साइबर अपराधियों के खिलाफ हमारे प्रयास नाकाफी हैं। राज्यवार आंकड़े और भी हैरान करते हैं। कर्नाटक ने 21889 मामलों के साथ साइबर अपराध में शीर्ष स्थान हासिल किया। यह संख्या 2021 के 8136 और 2022 के 12556 मामलों से कहीं अधिक है। इनमें से 18166 मामले धोखाधड़ी के और 1007 मामले अश्लील वीडियो ट्रांसफर के थे। देश की आईटी राजधानी बेंगलुरु वाले राज्य का यह रिकॉर्ड शर्मनाक है। तेलंगाना में 18236 मामले दर्ज हुए, जो 2022 के 15297 से अधिक हैं। उत्तर प्रदेश में 10794 मामले दर्ज हुए, जो 2022 के 10117 से बढ़े हैं। साइबर अपराधी अब बेहद संगठित और तकनीकी रूप से दक्ष हैं। वे सोशल मीडिया, आॅनलाइन बैंकिंग और डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म्स की कमजोरियों का फायदा उठाते हैं।

शिकार बन जाते हैं :

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आम नागरिक जो डिजिटल दुनिया में नए हैं, वे इन अपराधियों के आसान शिकार बन जाते हैं। फिशिंग, ऑनलाइन धोखाधड़ी, डेटा चोरी और ऑनलाइन यौन शोषण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खतरनाक बात यह है कि ये अपराधी कई बार देश की सीमा के बाहर से काम करते हैं, जिससे उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है। पुलिस और साइबर सेल के पास न तो पर्याप्त तकनीकी संसाधन हैं और न ही प्रशिक्षित जनशक्ति। न्यायालयों में मामलों की सुनवाई में देरी से अपराधी बच निकलते हैं। इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति की जरूरत है। सबसे पहले साइबर सुरक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। हर जिले में आधुनिक साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशालाएं स्थापित करनी होंगी। पुलिस बल को नियमित तकनीकी प्रशिक्षण देना होगा। साइबर अपराध से निपटने के लिए विशेष अदालतें गठित करनी होंगी, जो तेज सुनवाई सुनिश्चित करें। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है जन जागरूकता। स्कूलों से लेकर कॉलेजों तक साइबर सुरक्षा की अनिवार्य शिक्षा देनी होगी। आम नागरिकों को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने के तरीके सिखाने होंगे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और बैंकों को अपनी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करनी होगी। संवेदनशील वर्गों की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएं बनानी होंगी। महिलाओं, बच्चों और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अपराध रोकने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने होंगे। सभ्य समाज का सपना तभी साकार होगा, जब हम तकनीकी प्रगति को मानवीय मूल्यों से जोड़ेंगे और अपराध को सिर्फ कानूनी मसला नहीं, बल्कि सामाजिक चुनौती मानकर उससे निपटेंगे।

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-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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