श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी गोकुल
गोकुल यानी जगतजननी गौ माता के कुटुंब का निवास
गोकुल उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल है।
गोकुल यानी जगतजननी गौ माता के कुटुंब का निवास। यमुना नदी के किनारे बसे गोकुल गांव में घुसते ही ऐसा लगा जैसे द्वापर युग पुन लौटकर आ गया हो। गोकुल उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक पवित्र ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल है। यह आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक समृद्धि का एक मनोरम मिश्रण है। गोकुल भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां आज भी भगवान कृष्ण का बचपन का घर, संकरी गलियां, यमुना नदी और असंख्य मंदिर कृष्ण की चंचल युवावस्था की कहानियों से गूंजते हैं।
गोकुल में भगवान कृष्ण ने पूतना वध, शकटासुर वध, और माखन चोर की लीलाओं सहित कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिसका जिक्र आज भी किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गोकुल के गांवों को एक भूलभुलैया की तरह डिजाइन किया गया है, जिससे कृष्ण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। जब मथुरा के राजा कंस ने अपनी ही बहन देवकी के बेटे श्रीकृष्ण को मारने का आदेश दिया, तब वसुदेव ने जन्म के तुरंत बाद श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल लाकर नंद बाबा और यशोदा के पास रखा। गोकुल में ही नंद और यशोदा के वहां भगवान श्रीकृष्ण का बचपन बीता। कृष्ण भक्ति के पुष्टिमार्ग के संस्थापक संत महाप्रभु वल्लभाचार्यजी ने गोकुल में कई साल बिताए थे, जिससे उनकी आध्यात्मिक यात्रा में बढ़ोतरी मिली थी।
वल्लभाचार्य और उनके पुत्र गोसाईं विठ्ठलनाथ ने गोकुल में भव्य वल्लभ हवेली का निर्माण करवा कर ठाकुरजी श्रीनवनीतप्रिया को स्थापित किया। प्रसिद्ध चौरासी खंभा मंदिर गोकुल में नंदा टीला के नाम से जानी जाने वाली एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को नंद भवन, नंद महल और चौरासी खंबा मंदिर जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस मंदिर का यह नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि ये 84 खंबों पर टिका हुआ है। मंदिर की दीवारें कृष्ण की तस्वीरों और पेंटिंग से भरी पड़ी हैं और कृष्ण के बचपन से जुड़े कई दृश्य इन दीवारों पर आप देख सकते हैं। इसे एक दरबार के रूप में उपयोग किया जाता था, जहां राजा अपने मंत्रियों और जनता से मिलते थे।
यह गोकुल में कृष्ण के बचपन के अतीत के सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व अवशेष हैं। एक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने माता-पिता को चार धाम की यात्रा का सुख गोकुल में ही देना चाहते थे, जिस के चलते उन्होंने भगवान विश्वकर्मा से उनके घर में 84 खंबे लगाने को कहा। विश्वकर्मा जी ने कहा, कि इन खंबों को कलियुग में कोई गिन नही पाएगा। जो कोई कोशिश करेगा, उसकी गिनती में या तो एक खंबा कम आएगा या ज्यादा। तब से ये मान्यता चली आ रही है, कि जो जातक इस मंदिर के दर्शन करेगा, उसे चार धाम की यात्रा का फल मिलेगा। मंदिर के 84 खंबे 84 लाख योनियों का भी प्रतीक माने जाते हैं, जिनसे गुजरने के बाद इंसान को मनुष्य रूप मिलता है।1018 ई. में महमूद गजनवी ने महावन पर आक्रमण कर चौरासी खंभा यानी नंद भवन को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। इसके बाद से यह अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सका।
चौरासी खंभा मंदिर से पूर्व दिशा में कुछ ही दूर यमुना जी के तट पर ब्रह्मांड घाट नाम का रमणीक स्थल है। मान्यता के अनुसार यहां श्री कृष्ण ने मिट्टी खाने के बहाने यशोदा को अपने मुख से समग्र ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। यहीं से कुछ दूर लता वल्लरियों के बीच मनोहारी चिंताहरण शिव के दर्शन हैं। यहीं पूतना, तृणावर्त, शकटासुर नामक असुरों का वध कर श्री कृष्ण ने उनका उद्धार किया। पास ही नंद की गोशाला में कृष्ण और बलदेव का नामकरण हुआ। यहीं पास में ही घुटनों पर बलराम, कृष्ण चले, यहीं पर मैया यशोदा ने चंचल बाल कृष्ण को ऊखल से बांधा, कृष्ण ने यमलार्जुन का उद्धार किया। यहीं अढ़ाई-तीन वर्ष की अवस्था तक श्री कृष्ण और बलराम की बालक्रीड़ाएं हुईं।
बृहदवन या महावन गोकुल की लीलास्थलियों का ब्रह्मांड पुराण में भी वर्णन किया गया है। रमण रेती गोकुल के निकट एक अन्य प्राचीन पवित्र स्थान है, जहां पर भगवान कृष्ण और उनके भाई बलराम अपने बचपन के दौरान खेला करते थे। रमण रेती की पवित्र रेत में खेलने या बैठने से मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने यशोदा को अपने मुंह में ब्रह्मांड दिखाया था। ब्रह्मांड घाट एक शांत और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्माण्ड कुंड का डिजाइन पारंपरिक है, जिसमें पानी तक नीचे जाने के लिए पत्थर की सीढ़ियां हैं, जो प्राचीन भारतीय वास्तुकला की याद दिलाती हैं। आप यहां पर शांति के साथ घूम सकते हैं और ध्यान कर सकते हैं। यहां पर एक प्राचीन मंदिर भी है जिसका नाम है ब्रह्माण्ड विहारी मंदिर। यमुना नदी पर सूर्यास्त का मनमोहक व्यू आपका दिल जीत लेगा। यहां पर घूमने का सबसे अच्छा समय सुबह जल्दी या देर शाम हैं। ब्रह्मांड कुंड कृष्ण भक्तों के लिए एक अनमोल स्थान है, जहां कोई भी कृष्ण के बचपन के गहन क्षणों को याद कर सकता है। एक अन्य ऐतिहासिक स्थल ठकुरानी घाट यमुना नदी के किनारे स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान कृष्ण और उनकी लीलाओं से जुड़े कई पवित्र प्रसंग घटित हुए थे।
-डॉ गोरधन लाल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
Comment List