वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुनवाई स्थगित, मुख्य न्यायाधीश ने बंगाल हिंसा पर व्यक्त की चिंता
अभिन्न पहलुओं में हस्तक्षेप करता है
शीर्ष अदालत के समक्ष बहस की शुरुआत सिब्बल ने की। उन्होंने अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान मुस्लिम आस्था के आवश्यक और अभिन्न पहलुओं में हस्तक्षेप करता है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की, जो जारी रहेगी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ पर संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि वह कल भी इस मामले में सुनवाई करेगी। न्यायमूर्ति खन्ना ने आज की सुनवाई के अंत में वक्फ कानून में संशोधन के खिलाफ पश्चिम बंगाल में पिछले दिनों भड़की हिंसा पर चिंता जताई। शीर्ष अदालत के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, एएम सिंघवी और सीयू सिंह ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दीं। केंद्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने दलीलें दीं।
शीर्ष अदालत के समक्ष बहस की शुरुआत सिब्बल ने की। उन्होंने अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान मुस्लिम आस्था के आवश्यक और अभिन्न पहलुओं में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि संशोधित प्रावधानों में 'कानून के अनुसार वाक्यांश आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को कमजोर करता है और विधायी अतिक्रमण के लिए द्वार खोलता है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि चुनौतियों को बिंदुवार प्रस्तुत किया जाए। इस पर सिब्बल ने धारा 3 (आर) के प्रावधान को चुनौती देकर शुरुआत की, यह उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को तब तक बने रहने की अनुमति देता है, जब तक कि विवाद न हो या सरकार द्वारा दावा न किया जाए। इसके बारे में उन्होंने तर्क दिया कि यह वक्फ के सार को कमजोर करता है। धारा 3ए(2): यह प्रावधान, जो वक्फ-अल-औलाद और महिलाओं को विरासत से संबंधित है, सिब्बल ने सवाल किया कि 'इस्लामिक विरासत में हस्तक्षेप करने वाला राज्य कौन है जो केवल मृत्यु के बाद प्रभावी होता है?
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हिंदू समुदायों के लिए समान कानून मौजूद हैं, और अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है और सभी धर्मों पर लागू होता है। फिर सिब्बल ने धारा 3सी को भी चुनौती दी।अधिनियम के लागू होने के बाद सरकार द्वारा पहचानी गई संपत्तियों को अब वक्फ नहीं माना जाएगा। धारा 3सी(2): सरकार को बिना किसी निर्धारित समयसीमा के ऐसी संपत्तियों को एकतरफा घोषित करने की अनुमति देता है, जिसे उन्होंने असंवैधानिक बताया। संरक्षित स्मारकों पर प्रावधान को लेकर उन्होंने तर्क दिया कि वक्फ संपत्तियों को केवल इसलिए अमान्य नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें बाद में प्राचीन स्मारक घोषित कर दिया गया है। इस पर न्यायमूर्ति खन्ना ने पीठ की ओर से टिप्पणी की कि स्मारक का दर्जा दिए जाने से पहले घोषित किए जाने पर वक्फ का दर्जा बरकरार रहेगा।
इसके अलावा सिब्बल ने धारा 3ई पर निशाना साधते हुए तर्क दिया कि अधिनियम में प्रशासनिक संदर्भ में मुसलमानों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में अनुचित रूप से सूचीबद्ध किया गया है और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना की आलोचना की। उन्होंने इसकी तुलना हिंदू और सिख बंदोबस्त से की और कहा कि उनकी संबंधित परिषदों में सभी नामांकित व्यक्ति अपने-अपने धर्मों से हैं। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि धार्मिक अधिकारों को संपत्ति के मुद्दों के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए, ''संपत्तियां धर्मनिरपेक्ष हो सकती हैं; केवल प्रशासन में धार्मिक आयाम हो सकते हैं।

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