तमिलनाडु: बिहारी श्रमिक  प्रवासियों पर बवाल

द्रमुक सरकार ने बिहारियों पर हमले की घटनाओं का खंडन किया है

तमिलनाडु: बिहारी श्रमिक  प्रवासियों पर बवाल

आमतौर पर हिन्दी के विरोध के नाम पर हिन्दी के पोस्टर फाडे जाते हैं और हिन्दी फिल्में दिखाए जाने का विरोध होता है, लेकिन  पिछले दिनों इस विरोध में यहां कार्यरत बिहारी श्रमिक  प्रवासियों पर कथित रूप से हमले करने में बदल गया।

दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में हिन्दी का विरोध बहुत पुराना है और बीच-बीच में उभरता रहता है। राज्य के सभी क्षेत्रीय दल यह बात बार-बार कहते रहते हैं कि इस राज्य में हिन्दी को थोपने नहीं दिया जाएगा। इस राज्य में हिन्दी का विरोध  मुख्यत: राजनीतिक कारणों से किया जाता है। आमतौर पर हिन्दी के विरोध के नाम पर हिन्दी के पोस्टर फाडे जाते हैं और हिन्दी फिल्में दिखाए जाने का विरोध होता है, लेकिन  पिछले दिनों इस विरोध में यहां कार्यरत बिहारी श्रमिक  प्रवासियों पर कथित रूप से हमले करने में बदल गया।  हालांकि यहां की द्रमुक सरकार ने बिहारियों पर हमले की घटनाओं का खंडन किया है। लेकिन यहां कार्यरत बिहारी श्रमिक प्रवासियों के कुछ नेताओं  का कहना है  कि ऐसी छुटपुट घटनाएं पहले भी होती रही हैं, लेकिन इस ओर पहले किसी  ने अधिक ध्यान नहीं दिया। पर इसके साथ सच्चाई यह भी है कि यहां काम करने वाले बिहारी प्रवासी संगठित नहीं थे और उनकी आवाजÞ उठाने वाला कोई नहीं था।

इस महीने के शुरू में चेन्नई से प्रकाशित एक हिन्दी समाचार पत्र ने खबर छापी जिसमें कहा गया था कि प्रवासी श्रमिक बिहारियों पर कुछ तमिल संगठनों द्वारा हमले हो रहे हैं। इसके साथ समाचार पत्र ने कथित हमले के चित्र भी छापे थे, जो किसी टीवी चैनल के फूटेज पर आधारित थे। खबर में यह भी कहा गया था कि इस घटना के बाद यहां कार्यरत बिहारी श्रमिक प्रवासियों ने पलायन शुरू  कर दिया है। राज्य की सरकार ने इस खबर का खंडन किया। खंडन में कहा गया कि सारी खबर और उसके साथ प्रकाशित  चित्र फर्जी हैं तथा यह कोई पुरानी और असम्बद्ध घटना का है। सरकार ने इस समाचार पत्र के दो रिपोर्टरों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए कहा कि उन्होंने जानबूझकर ऐसी गलत और भड़काने वाली खबर दी है। उधर इन मामले को लेकर राज्य में बीजेपी के नेता  बिहारी श्रमिक प्रवासियों के पक्ष में खड़े हो गए। इसी के चलते राज्य सरकार ने   प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष अन्नामलाई और चार अन्य  नेताओं के खिलाफ  उकसाने और शांति भंग करने के मामले दर्ज कर दिए।

उधर जब-जब ये खबरें बिहार पहुंची तो वहां की सरकार ने अधिकारियों के एक चार सदस्यों वाले दल को तुरंत चेन्नई के लिए रवाना कर दिया। अधिकारियों के इस दल ने राज्य सरकार के अधिकारियों से भेंट कर सारे मामले के जानकारी प्राप्त की। लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि वास्तव में हमले की ऐसी घटना अथवा  घटनाएं हुई थीं या नहीं।

राज्य में दो तरह के हिन्दी भाषी प्रवासी रहते हैं। इनमें से पहला वर्ग राजस्थानी प्रवासियों को है, जो आमतौर पर व्यापारिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। वे तमिल भाषा बोलते हैं तथा यहां के लगभग स्थाई निवासी हैं। दूसरी श्रेणी प्रवासी  श्रमिकों की है, जो आमतौर पर कुछ महीने काम करके वापस अपने प्रदेश लौटे जाते हैं। इनमें से अधिकांश बिहारी है तथा श्रमिक का काम करते हैं। वे आमतौर बिहार के दो बड़े त्योहारों-छठ और होली को अमूमन अपने गांव में लौट जाते हैं। वे यहां इसलिए आते हैं कि उन्हें यहां रोजगार मिल जाता है तथा मजदूरी भी अधिक मिलती है। आमतौर पर एक श्रमिक महीने में बीस हजार तक कमा लेता है, जो बिहार की तुलना से काफी अधिक है।

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इस कथित घटना के बाद जब सरकार की आलोचना हुई तो मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने चार पृष्ठ का बयान जारी  कर  स्थिति स्पष्ट की तथा यह दोहराया कि बहार से यहां आकर काम करने वाले को सुरक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी  है और इसको निभाने में वह कतई लापरवाही नहीं बरतेगी। राज्य के राज्यपाल आरए रवि, जिनका सरकार के साथ कई मुद्दों पर टकराव चल रहा है। इस मामले में सरकार के साथ खड़े नजर आए। उन्होंने कहा कि राज्य काम कर रहे बिहारी प्रवासी पूरी तरह से सुरक्षित हैं। उन्होंने और सरकार ने साफ किया कि राज्य से बिहारी  श्रमिक  प्रवासियों का कोई पलायन नहीं हो रहा। रवि खुद बिहार से आते हैं।

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यह कथित घटना तब हुई जब होली नजदीक थी तथा प्रवासी बिहारी श्रमिक गांव लौटने के लिए तैयार हो रहे थे। बिहार जाने वाली गाड़ियों में सामान्य से अधिक भीड़ नजर आ रही थी। सरकार का कहना है कि यह कोई नई बात नहीं है। होली से पहले चेन्नई से बिहार जाने वाली गाड़ियों में ऐसे समय में इतनी ही अधिक भीड़  होती रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि चेन्नई से कथित हमलों की खबरें आने के बाद बिहार में उनके परिजनों ने तुरंत वापस लौटने के लिए कहा, इसी के चलते चेन्नई स्टेशन पर बड़ी संख्या में बिहारी श्रमिक पहुंच गए।

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लोकपाल सेठी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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