हमें तो सीधी सादी लड़की ही चाहिए

समाज और दबी छुपी मानसिकताएं

हमें तो सीधी सादी लड़की ही चाहिए

लेकिन एक बार फिर वही शब्द वापस कानों को सुनाई दिए... हमें तो सीधी सादी लड़की ही चाहिए। और समझ आया की आज भी कहीं न कहीं दबी छुपी मानसिकताएं वहीं की वहीं  घर बनाए खड़ी हैं। चाहे  ऊपर से हम कितने ही आधुनिक बन जाएं पर अंदर अभी भी  वही मानसिकताएं पल रही है।

आज घर में बड़ी तैयारियां सुबह से ही चल रही थीं, सभी रीना के रिश्ते के लिए बड़े समय से तैयारी कर रहे थे। रीना मेरी भतीजी है और एचसी बहुत ही सुंदर, साथ ही बड़ी इंटेलिजेंट भी है। घर में छोटी होनी के बावजूद घर की सारी जिम्मेदारी  उसके कंधे पर ही है, क्योंकि वह हर तरह के कार्य बड़ी आसानी से जो कर लेती है। साथ ही लिखने, बोलने, पढ़ने के साथ-साथ सारी की सारी खूबियां उसमें भरी पड़ी हैं।

कभी-कभी तो मुझे भी उससे ईर्ष्या होने लगती है। इसके पिता मतलब मेरे भाई को कहती भी हूं कि इसे इतनी फ्रीडम दे रखी है और हमें तो घर से निकलने की भी इजाजत नहीं थी आप हम बहनों पर तो इतनी रोक-टोक लगाते थे और अपनी बच्ची को इतनी हाई-फाई बना रखा है। इसे हर तरह के कपड़े भी पहनने देते हो, यह गाड़ी भी दौड़ती रहती है और सारा दिन चटर-पटर करती है तो कोई इसे टोकता भी नहीं है। हम जरा सा ऊंची आवाज में बोलते थे तो हमें सीधा ससुराल की याद दिला दी जाती थी, हमेशा दूसरे घर का ही नाम सुन-सुन कर हम दूसरे घर ही पहुंच गए थे, पर रीना की तरह स्वतंत्र बिंदास और आत्म निर्भरता वाली जिंदगी को तरस गए थे अपने लिए खुद निर्णय लेना तो आज भी हमारे लिए कल्पना से परे है। पर खुशी होती है जब बदलती दुनिया और आगे बढ़ती दुनिया को देखते हैं। अब लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं, अपने अभी निर्णय खुद ले रही हंै। अपने और अपने घर के सभी कार्यों को कितनी आसानी से अंजाम दे रही हैं, किसी पर भी निर्भर नहीं हंै और गलत को गलत कहना भी इन्हें आता है। रीना को जो लोग आज देखने आ रहे है, वो भी बहुत खुले विचारों के हैं और  रीना जैसी सुशील लड़की किसी को कैसे पसंद नहीं आएगी आखिर क्या नहीं कर सकती हमारी रीना पूरी तरह आत्म निर्भर,  स्वावलंबी, स्वाभिमानी, निडर।

हमारे जमाने में तो लड़कियों की दिखाने के नाम पर ऐसे प्रदर्शनी लगाई जाती थी कि सोचकर आज भी रोंगटे खड़े होते हैं। कैसे अजीब-अजीब से बेबुनियादी सवालों की झड़ी,आज भी याद आता है, वो सवाल क्या खाना बनाना आता है? क्या सिलाई आती है? जरा चल के दिखाओ आदि-आदि। कैसे एक लड़की की सरेआम बेइज्जती की जाती थी और उस पर वो बेतुकी सी बात, अजीब सा डायलॉग। हमें तो सीधी सादी लड़की चाहिए।आज भी इसका अर्थ समझ नहीं आता की सीधी-सादी लड़की क्या होती है? और हाई-फाई क्या होती है? क्या वो जो सबके लिए नौकरानी की तरह काम करे, जो सब के सामने ऊंची आवाज में ना बोले, जो ससुराल की किसी भी बात को पीहर में ना बताए और बहुत सा दहेज भी साथ लाए और चुप-चाप सब सहन भी करती रहे? वही सीधी सादी है और जो जरा सा खुलकर बोल दे वो हाई-फाई है?

चलो अब तो समय बदल गया है  हमारी रीना को यह दिखावा नहीं करना पड़ेगा, वो तो अपने पैरों पर खड़ी है और हर तरह से मजबूत है। सब कुछ खुद ही संभाल लेगी और इतनी अच्छी बच्ची किसी को बहु के रूप में मिलेगी तो वो बहुत ही खुश किस्मत वाला ही होगा। शाम को लड़के वाले लड़के के साथ आए और रीना से बातें करते हुए हंसी मजाक करते हुए एक औपचारिकता निभाते हुए  चले भी गए, दो घंटे का यह समय कब निकला पता ही नहीं चला। रीना और लड़के को आपस में बात करने का मौका भी दिया गया। ताकि एक दूसरे को जान लें, हालांकि एक घंटे की बातचीत से कोई किसी को पूरी तरह जान जाए यह संभव नहीं  है। मैं भी बुआ होने के नाते लगातार उनकी बातों को सुनने का प्रयास करती रही हालांकि यह गलत था पर जिज्ञासा वश ऐसा करती रही, रीना अपनी उपलब्धियों, कार्यों और भविष्य की योजनाओं को लगातार बताती रही और लड़का लगातार सुनता रहा, बड़ी मुश्किल से कुछ एक दो बार ही मैंने उसको बोलते हुए सुना था, शायद थोड़ा शर्मिला नेचर का था। लेकिन हमारी रीना तो हर बात हमेशा खुलकर ही बोलती है, सारी औपचारिकता पूरी होने के बाद हम सभी सामने वालों के जवाब का इंतजार करने लगे, तीन-चार दिन निकल गए, फिर हफ्ता भी निकल गया। कुछ मध्यस्थ के माध्यम से जानने का प्रयास भी किया। लेकिन एक बार फिर वही शब्द वापस कानों को सुनाई दिए... हमें तो सीधी सादी लड़की ही चाहिए। और समझ आया की आज भी कहीं न कहीं दबी छुपी मानसिकताएं वहीं की वहीं  घर बनाए खड़ी हैं। चाहे  ऊपर से हम कितने ही आधुनिक बन जाएं पर अंदर अभी भी  वही मानसिकताएं पल रही है।
               -सीमा हिंगोनिया
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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Tags: opinion

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