फसल अवशेषों में आग से बढ़ा प्रदूषण

खेतों में खड़ी फसल को भी नुकसान

फसल अवशेषों में आग से बढ़ा प्रदूषण

जागरूकता के अभाव में किसान नहीं अपना पा रहे वैकल्पिक निपटान के तरीके।

छीपाबडौद। तहसील क्षेत्र के कई ग्रामीण अंचलों में किसान फसल अवशेषों में आग लगाने की परंपरा को जारी रखते हुए पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। इस प्रथा में फसल कटाई के बाद बची-खुची अवशेषों को जला दिया जाता है। जिससे आस-पास के इलाकों में धुएं का जाल बिछ जाता है। इससे न केवल वायु गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस प्रथा पर समय पर और कठोर कारवाई नहीं की गई, तो आने वाले दिनों में प्रदूषण का स्तर और भी खतरनाक हो सकता है। प्रशासन हर साल इस पर प्रतिबंध लगा कर भी प्रभावी और कठोर कार्रवाई न करने के कारण किसान वैकल्पिक निपटान विधियों को अपनाने से कतराते हैं। सरकार द्वारा निर्धारित प्रतिबंधों और दंडों का पालन न होने के कारण किसान पुरानी प्रथा में अड़े हुए हैं। कई विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या स्थायी रूप से पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ सकती है।

तकनीकों का नहीं हो पा रहा प्रचार-प्रसार
किसानों के बीच जागरूकता की कमी भी इस समस्या को और बढ़ावा दे रही है। वैकल्पिक निपटान विधियों जैसे कि जैविक कम्पोस्ट निर्माण, मशीनरी आधारित अवशेष निपटान, या फिर प्राकृतिक खाद बनाने की तकनीकों का प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है। किसान अक्सर तात्कालिक और सरल उपायों की ओर रुख करते हैं, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित जागरूकता अभियानों की कमी ने भी इस प्रथा को जड़ जमाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

किसानों ने बताई अपनी समस्या
इस मुद्दे पर स्थानीय किसानों की प्रतिक्रिया भी चिंता का विषय है। कई किसान बताते हैं कि वे नई तकनीकों के बारे में जागरूक नहीं हैं और पारंपरिक तरीकों से ही अवशेषों का निपटान करते हैं। उनका मानना है कि अगर प्रशासन द्वारा जागरूकता अभियान और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है तो वे भी आसानी से वैकल्पिक उपाय अपना सकते हैं। वहीं स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी इस प्रथा के कारण होने वाले प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों पर चेतावनी दी है। उन्होंने बताया कि बढ़ता प्रदूषण स्थानीय समुदायों में सांस संबंधी बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। जिससे आम जनता पर भारी बोझ पड़ सकता है।

नियमों का हो सख्ती से पालन 
स्थानीय प्रशासन की ओर से इस दिशा में तत्काल और ठोस कदम उठाने की अपील की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज से आवश्यक है कि किसानों को वैकल्पिक निपटान विधियों के प्रशिक्षण और सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। इसके साथ ही नियमों का सख्ती से पालन करने और दंडों को कड़ाई से लागू करने से भी इस प्रथा में कमी आएगी। कई विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार और कृषि विभाग को मिलकर एक व्यापक योजना तैयार करनी चाहिए। जिससे किसान न केवल पर्यावरण के अनुकूल उपाय अपना सकें, बल्कि उन्हें इसके आर्थिक लाभ भी प्राप्त हों।

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किसान फसल अवशेष नहीं जलाना चाहते। लेकिन उनके पास विकल्प नहीं हैं। सरकार सिर्फ रोक लगाती है, पर वैकल्पिक साधन, सब्सिडी या तकनीकी मदद नहीं देती। अगर मशीनें और जागरूकता मुहैया कराई जाए तो किसान भी पर्यावरण के हित में कदम उठाने को तैयार हैं। समस्या का हल दंड नहीं सहयोग है। 
- प्रेम सिंह मीणा, जिला अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन 

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हम मजबूरी में नरवाई जलाते हैं। सरकार जुर्माना लगाने से पहले विकल्प दे। छोटे किसानों के पास न मशीन है, न मजदूरी के पैसे। बिना मदद के ये नियम सिर्फ सजा बनकर रह जाएगा। 
- उपेन्द्र मालव, किसान

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प्रदेश कृषि आयुक्तालय के निर्देशानुसार 19 नवंबर 2024 से फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। भूमि स्वामित्व के अनुसार जुर्माने की राशि तय की गई है। 2 एकड़ से कम भूमि वाले किसानों पर 5 हजार रुपए, 2 से 5 एकड़ के बीच वाले पर 10 हजार रुपए तथा 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों पर 30 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह निर्देश किसानों और पर्यावरण दोनों के हित में लिया गया है। मैं सभी किसानों से अपील करता हूं कि वे फसल अवशेष जलाने की बजाय वैज्ञानिक तरीकों से निपटान करें। ग्राम पंचायतें, कृषि विभाग और प्रशासन मिलकर किसानों को वैकल्पिक समाधान उपलब्ध करा रहे हैं। वहीं पुलिस थानों के थानाधिकारी अपने-अपने क्षेत्र में इस निर्देश की सख्ती से पालना सुनिश्चित करें। यदि कोई व्यक्ति इस आदेश का उल्लंघन करता पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। हमारा उद्देश्य किसानों को दंडित करना नहीं, बल्कि उन्हें जागरूक कर पर्यावरण को सुरक्षित रखना है। प्रशासन इस दिशा में हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार है। 
- सुरेन्द्र सिंह गुर्जर, तहसीलदार एवं विकास अधिकारी, छीपाबड़ौद

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