पछाड़ में सरकारी जनजातीय छात्रावास की हालत दयनीय, खतरे में 40 छात्राओं का जीवन

गिरने के कगार पर इमारत

पछाड़ में सरकारी जनजातीय छात्रावास की हालत दयनीय, खतरे में 40 छात्राओं का जीवन

दैनिक नवज्योति की टीम जब मौके पर पहुंची, तो देखा कि छात्रावास की छतें बुरी तरह से चटक चुकी थीं। दीवारें झुक चुकी थीं और प्लास्टर जगह-जगह से झड़ रहा था।

छीपाबड़ौद।  राजकीय जनजातीय बालिका छात्रावास पछाड़ का भवन सरकारी रिकॉर्ड में तो दर्ज है, लेकिन जमीनी हकीकत में यह भवन किसी मौत के फंदे से कम नहीं है।  दैनिक नवज्योति की टीम जब मौके पर पहुंची, तो देखा कि छात्रावास की छतें बुरी तरह से चटक चुकी थीं। दीवारें झुक चुकी थीं और प्लास्टर जगह-जगह से झड़ रहा था। बारिश में यह इमारत टपकती नहीं, बहने लगती है। इस इमारत में करीब 40 आदिवासी छात्राएं रह रही हैं। जिनके माता-पिता ने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें यहां भेजा, लेकिन वे यह नहीं जानते कि यह छात्रावास अब बच्चियों के लिए खतरे की जगह से कम नहीं है। 

 सरकारी संवेदनहीनता का नमूना
 यह भवन वर्ष 2017 में बना था, लेकिन मात्र 8 वर्षों में इसकी हालत कबाड़ से भी बदतर हो गई है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन को दिखाई नहीं दे रहा? या फिर जान-बूझकर नजरें फेर ली गई हैं? 5 वर्षों से भवन की हालत बद से बदतर होती जा रही है, लेकिन न तो मरम्मत हुई, न निरीक्षण, और न ही कोई कार्यवाही। सरकार के नारे  'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ इस इमारत के नीचे दम तोड़ रही है। सीलन भरे कमरों में फर्श उखड़ा पड़ा है, छतों से चूने का पानी टपक रहा है और दीवारों में दरारें ऐसी कि आंखों के सामने मौत खड़ी दिखे।

 माता-पिता ने बच्चों के नाम हटवाए 
स्थिति इतनी भयावह है कि कई अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को छात्रावास से निकाल लिया है। माता-पिता का कहना है कि हम बच्चों को पढ़ाने भेजते हैं, लेकिन वहां तो जान पर बन आती है। अगर कोई हादसा हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?"

सरकारी दावों की खुली पोल, नारों से नहीं बदलती जमीनी सच्चाई
छात्रावास की ये हालत दिखाती है कि ग्रामीण बालिकाओं की शिक्षा सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं है। हर वर्ष करोड़ों के बजट पास होते हैं, लेकिन जब धरातल पर देखा जाए तो हालात ऐसे हैं कि बच्चियों की जान सांसत में है।

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छात्रावास की हालत भयावह है। उच्चाधिकारियों को लिखित व मौखिक रूप से सूचित किया जा चुका है।
- ममता गौतम, वार्डन 
   
यह बालिकाओं के जीवन से सीधा खिलवाड़ है। सरकार ने आंखें मूंद रखी हैं। अगर किसी बच्ची की जान गई तो इसका पूरा दोष प्रशासन पर होगा।
- मूलचंद शर्मा, ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष 

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मेरे कार्यकाल में छात्रावास की स्थिति ठीक थी, हमने समय-समय पर निरीक्षण कर सुझाव भी दिए थे। अब जो हालत दिख रही है, वह बेहद चिंताजनक है। यदि समय रहते रखरखाव में लापरवाही न बरती जाती, तो ये स्थिति नहीं बनती। मैं मांग करता हूं कि इसकी निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। बच्चियों की सुरक्षा से समझौता नहीं होना चाहिए। 
 - प्रेमसिंह मीणा, पूर्व ब्लॉक शिक्षा अधिकारी।    

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 हमने सोचा था कि बच्ची छात्रावास में रहकर पढ़ाई करेगी और भविष्य संवार पाएगी, लेकिन अब तो रोज उसकी चिंता लगी रहती है। दीवारें गिरने जैसी हालत हैं, छत टपकती है, और रात को बच्चियां डर के साए में सोती हैं। 
  - रामकिशन, अभिभावक 
    
समस्या के समाधान को लेकर पत्र भेज चुके हैं। जल्द टेंडर प्रक्रिया करवा दी जाएगी।
- जब्बर सिंह, एडीएम

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