शादी-ब्याह में अब नहीं सुनाई देती लोक वाद्ययंत्रों की मधुर धुनें

आधुनिकता में गुम हो रही प्राचीन परंपराएं

शादी-ब्याह में अब नहीं सुनाई देती लोक वाद्ययंत्रों की मधुर धुनें

राजस्थान की कला प्रतिभा अपने ही राज्य में उपेक्षित होकर बाहर अपना भविष्य तलाशने को मजबूर है।

छीपाबड़ौद। राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा रहे लोक वाद्ययंत्र आज धीरे-धीरे हमारी सामाजिक परंपराओं से गायब होते जा रहे हैं। कभी शादी-ब्याह, पर्व और अन्य पारंपरिक आयोजनों में जिन ढोल, नगाड़ा, बांकिया, शहनाई, थाली, मंजीरा और ढप की मधुर धुनें सुनाई देती थीं, आज उनकी जगह डीजे और इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक ने ले ली है। आधुनिकता की दौड़ में अब लोक संस्कृति हाशिये पर पहुंच गई है। अखातीज (अक्षय तृतीया) से शुरू हुए वैवाहिक आयोजनों में अब वह पारंपरिक गूंज नहीं सुनाई देती जो पहले गांव-गांव में उत्सव का रंग घोल देती थी। अब बारात में न लोक कलाकार दिखते हैं, न उनके वाद्ययंत्र। उनके स्थान पर बड़े पिकअप वाहनों में लगे शक्तिशाली डीजे और फिल्मी गानों की तेज आवाज ने ले ली है।

अब केवल यादों में बांकिया जैसे वाद्ययंत्र
एक समय था जब बारात की अगुवाई बांकिया और ढोल से करते थे। गांव की गलियों में बजती इन धुनों से लोग जान जाते थे कि कहीं विवाह समारोह हो रहा है। आज वही वाद्ययंत्र गुमनामी की ओर बढ़ चुके हैं। इन्हें बजाने वाले लोक कलाकारों की संख्या बहुत कम रह गई है, और अधिकांश कलाकार रोजगार के अभाव में यह कला छोड़ चुके हैं।

प्रशासनिक रोक के बावजूद डीजे का बढ़ता चलन
कई स्थानों पर डीजे की तेज और कर्कश ध्वनि को लेकर प्रशासन ने प्रतिबंध लगाए हैं, फिर भी गांवों और कस्बों में डीजे का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इससे एक ओर जहां पारंपरिक संगीत उपेक्षित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर शोर के कारण सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ रही हैं।

विद्यालयों में कला विषय है लेकिन शिक्षक नहीं
राजस्थान के शैक्षणिक संस्थानों में स्थिति और भी चिंताजनक है। राज्य के अधिकांश विद्यालयों में कला विषय तो है, लेकिन कला शिक्षक ही नहीं हैं। खासकर संगीत जैसे विषय बच्चों को पढ़ाने वाला कोई नहीं है। 1992 तक नियमित रूप से कला शिक्षकों की भर्ती होती थी, लेकिन उसके बाद सरकार की उदासीनता के कारण यह प्रक्रिया ठप हो गई। तब से लेकर अब तक हजारों पद खाली हैं और हजारों प्रशिक्षित संगीत शिक्षक बेरोजगार बैठे हैं।

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लोक कलाकारों और संगीत शिक्षकों ने उठाई आवाज 
हालात इतने गंभीर हैं कि पारंपरिक कलाकारों और संगीत विषय के प्रशिक्षित लेकिन बेरोजगार शिक्षकों ने बारां जिला कलेक्टर से लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री तक ज्ञापन सौंपे हैं। उनकी मांग है कि पारंपरिक वाद्ययंत्रों को संरक्षण दिया जाए, कलाकारों को मंच और आर्थिक सहायता मिले और संगीत को समाज में पुन: उसका स्थान दिलाया जाए।

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कलाकार अन्य राज्यों की ओर पलायन को मजबूर
यह भी एक चिंताजनक पहलू है कि राजस्थान के प्रशिक्षित कलाकार और संगीत शिक्षक आज बिहार, मध्यप्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। इन राज्यों में न केवल कला को सम्मान और महत्व दिया जा रहा है, बल्कि वहां नियमित रूप से सरकारी पद भी भरे जा रहे हैं। परिणामस्वरूप, राजस्थान की कला प्रतिभा अपने ही राज्य में उपेक्षित होकर बाहर अपना भविष्य तलाशने को मजबूर है।

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लोक परंपरा को बचाने की आवश्यकता
वर्तमान समय में जरूरत है कि सरकार और समाज दोनों मिलकर लोक कलाकारों और वाद्ययंत्रों के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल करें। विद्यालयों में कला शिक्षकों की भर्ती हो, संगीत को शिक्षा में अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए और पारंपरिक कलाकारों को मंच, सम्मान और सहायता मिले। अगर जल्द प्रयास नहीं किए गए, तो हमारी धरोहर बन चुके लोक वाद्ययंत्र और संगीत संस्कृति सिर्फ किताबों और संग्रहालयों में सिमटकर रह जाएगी। नई पीढ़ी अपने ही सांस्कृतिक अतीत से अपरिचित रह जाएगी।

राजस्थान में 1992 तक नियमित रूप से कला शिक्षकों की भर्ती होती थी, लेकिन उसके बाद से सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। हजारों प्रशिक्षित संगीत शिक्षक आज बेरोजगार हैं। विद्यालयों में संगीत विषय होते हुए भी शिक्षक नहीं होने के कारण बच्चों को इसका कोई ज्ञान नहीं मिल पा रहा। अगर यही स्थिति रही तो हमारी अगली पीढ़ी पारंपरिक वाद्ययंत्रों और संगीत से पूरी तरह कट जाएगी।
- राजेंद्र रावल, संगीत शिक्षक, गंधर्व संगीत विद्यालय, छबड़ा। 

पहले हमारे वाद्ययंत्रों की धुन सुनते ही लोग दूर से जान जाते थे कि कहीं शादी-ब्याह या त्यौहार है। हमें बुलावा मिलता था, मान-सम्मान मिलता था। लेकिन अब डीजे और बैंड के आगे हमारी कला की कोई पूछ नहीं रही। बहुत दु:ख होता है कि हमारी परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है। सरकार से निवेदन है कि हमें फिर से मंच और अवसर दे ताकि हम अपनी कला को जीवित रख सकें।"
- चम्पालाल रावल, पारंपरिक संगीत कलाकार, छीपाबड़ौद

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