परिंदों के कलरव से आबाद हुए बूंदी के जलाशय

देरी से व कम संख्या में पंहुचे प्रवासी पक्षी

परिंदों के कलरव से आबाद हुए बूंदी के जलाशय

यूरोप महाद्वीप से आने वाले यूरोपियन पिनटेल व नोर्थन शोवलर भी बूंदी के अधिकांश जल-स्रोतों पर दस्तक दे चुके है। इसी प्रकार गुजरात में कच्छ के रण से आने वाले अन्तरप्रवासी ग्रेटर-फ्लेमिंगो व जिले के बरधा बांध तक सिमटे सारस पक्षी भी आकर्षण का केंद्र बने हुए है।

बूंदी। जिले की प्राकृतिक आबोहवा से आकर्षित होकर आने वाले विदेशी मेहमान परिंदों के कलरव से जलाशय गूंजने लगे हैं। हालांकि इस साल प्रवासी पक्षियों के दल एक माह देरी से जिले के विभिन्न जलाशयों पर पंहुचे है तथा परिंदों की तादात व प्रजातियां भी कम दिखाई दे रही हैं। जिले के प्रमुख वेट-लेंड बरधा सहित सभी बांधों व तालाबों पर प्रवासी व अन्तरप्रवासी पक्षी बड़ी संख्या में पहुंचे है। इनमें चीन-मंगोलिया जैसे ठंडे प्रदेशों में बर्फबारी शुरू होने के साथ आने वाले बार- हेडेड गूज व ग्रे- लेग गूज भी शामिल है। यूरोप महाद्वीप से आने वाले यूरोपियन पिनटेल व नोर्थन शोवलर भी बूंदी के अधिकांश जल-स्रोतों पर दस्तक दे चुके है। इसी प्रकार गुजरात में कच्छ के रण से आने वाले अन्तरप्रवासी ग्रेटर-फ्लेमिंगो व जिले के बरधा बांध तक सिमटे सारस पक्षी भी आकर्षण का केंद्र बने हुए है। 

पक्षियों के प्राकृतिक आवासों में खलल 
जिले के सभी बांधों व तालाबों में मछली ठेका होने से पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय-स्थल छिन से गए है। मछली ठेकेदार के कार्मिक मछलियों को पक्षियों से बचाने के लिए दिनभर बांध व तालाबों पर आतिशबाजी के धमाके कर पक्षियों की स्वच्छंदता विचरण में बाधा पैदा कर रहे है। पेलिकन पक्षी को तो मछली ठेकेदार देखते ही मारने दौड़ते है। यह पक्षी जलीय-पक्षियों में सबसे बड़े आकार का होता है तथा एक दिन में करीब 5-6 किलो मछली खाता है, जिससे मछली ठेकेदार इसे एक चुनौती के रूप में देखता है। विडम्बना ही है कि जिन जलाशयों पर परिंदों का अधिकार होना चाहिए, वहां पर चंद पैसों के लालच में मछली ठेके की आड़ में पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय-स्थलों पर कब्जे कर लिए है। इसी प्रकार बांधों व तालाबों में अवैध पेटा-काश्त पर भी रोक नहीं लग पाना चिंता का विषय है।

कुरजां व पेलिकन ने किया बूंदी से किनारा
जिले के रामनगर तालाब में कुछ समय के लिए आने वाली कुरजां या डेमोशाइल क्रेन पक्षी इस साल बूंदी के किसी भी वेटलैंड पर नजर नहीं आए तथा अपने बड़े आकार के लिए पहचाने जाने वाले पेलिकन की भी जिले के किसी भी वेट-लेंड पर उपस्थिति नहीं देखी गई है। इसके अलावा कई पक्षी प्रजातियों की बहुत कम उपस्थिति दर्ज की गई है।

जिले का प्राकृतिक वातावरण पक्षियों के अनुकूल है, लेकिन मछली ठेके की आड़ में पक्षियों का शिकार हो रहा है। हर जिले में कम से कम एक वेट-लेंड को मछली ठेके से मुक्त करवाने के सामूहिक प्रयास होने चाहिए ताकि पक्षियों के प्राकृतिक आश्रय स्थलों को बचाया जा सके। रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में आने वाले भीमलत व अभयपुरा बांधों पर भी मछली ठेका होना गंभीर है, जिस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
- पृथ्वी सिंह राजावत, पक्षी एवं वन्यजीव प्रेमी

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