प्रशासन की अनदेखी के चलते कई वर्षों से शहर के पुस्तकालयों का हुआ बुरा हाल
एक मे एक भी पुस्तक नहीं है, तो वही दूसरे में स्टाफ के अभाव के कारण लगा है ताला
प्रशासन की अनदेखी के चलते कई वर्षों से शहर के पुस्तकालय दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। एक मे एक भी पुस्तक नहीं है तो वही दूसरे में स्टाफ के अभाव के कारण ताला लगा रहता है। नाम मात्र के इन पुस्तकालयों का वर्षों से उपयोग नहीं हो रहा है जिसके कारण नगर में खुली आधुनिक लाइब्रेरियों में युवाओं को फीस देकर अध्ययन करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
बाड़ी। प्रशासन की अनदेखी के चलते कई वर्षों से शहर के पुस्तकालय दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। एक मे एक भी पुस्तक नहीं है तो वही दूसरे में स्टाफ के अभाव के कारण ताला लगा रहता है। नाम मात्र के इन पुस्तकालयों का वर्षों से उपयोग नहीं हो रहा है जिसके कारण नगर में खुली आधुनिक लाइब्रेरियों में युवाओं को फीस देकर अध्ययन करने को मजबूर होना पड़ रहा है। देश में सदियों पहले नालन्दा जैसे विश्वविद्यालय में जिन पुस्तकालयों का इतिहास पुस्तको से ही पढ़ने को मिला था। देश की उस विश्व प्रसिद्ध लाइब्रेरी स्थापना की परंपरा अंग्रेजो से लेकर आजाद हिंदुस्तान में आज भी कायम है। आज भी लोग पुस्तकालयों की पुस्तकों में से ज्ञान का भंडार अर्जित करते हैं।
वर्तमान में पुस्तकालयों को आधुनिकी रूप दिया जा रहा है। यही कारण है कि आज भी युवा विशेष ज्ञान अर्जित करने के लिए पुस्तकालयों का सहारा लेते हैं। इसी परम्परानुसार बाड़ी को नगरपालिका द्वारा किला गेट स्थित नेहरू पार्क में एक पुस्तकालय संचालित किया था।
जिसमें उपखण्ड स्तर के लोग पुस्तकों व अखबारों का अध्ययन बड़ी संख्या में करते थे, लेकिन प्रशासन की बेरुखी व नगरपालिका की लापरवाही के चलते यह पुस्तकालय धीरे-धीरे दुर्दशा का शिकार हो गया। सैकड़ों की संख्या में पुस्तकें गायब हो गई। बैठने व पढ़ने का फर्नीचर जर्जर होकर टूट गया। दीवारें उन पर पुस्तकों को रखने के लिए बनी अलमारियों की खिड़कियां टूटकर कबाड़ हो गई। आज स्थिति यह है कि दो चार अखबारों के लिए इसका संचालन ऐसे किया जा रहा है। जैसे कोई धक्का देकर खींच रहा हो। दूसरी ओर राजस्थान का सार्वजनिक पंचायती पुस्तकालय जो लगभग 25 से 30 वर्ष पूर्व किराए के भवन में संचालित हुआ था, जिसमें हजारों पुस्तकें थी।
प्रतिदिन पत्र-पत्रकाओं का आवागमन होता था। पुस्तकालय के नगर में सैकड़ों स्थाई सदस्य थे, लेकिन वह भी कई किरायों के भवनों में बदल-बदल कर दुर्दशा का शिकार हो गया। पुस्तकें चोरी हो गई। विशेष रूप से स्टाफ का अभाव के चलते इस पुस्तकालय पर भी हर वक्त ताला ही जड़ा देखा जा सकता है। लगभग 2 वर्ष पूर्व इसे नए भवन में स्थानांतरित किया गया है, लेकिन जब से ही इसमे ताला लगा हुआ है जो आज तक नहीं खुला। जब इनसे या नगर पालिका से इस बारे में बात की जाती है तो वह कहते हैं कि अब कम्प्यूटर का जमाना है।
लोग अब पुस्तकालयों में रुचि नहीं रखते, जबकि पिछले एक वर्ष में नगर में तीन से चार आधुनिक लाइब्रेरी निजी स्तर पर लोगों ने खोली है जिनका प्रति माह पढ़ने वाले युवा किराया देते है, जिनमें लगभग 2000 से 3000 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। ऐसे में पुस्तकालयो का अस्तित्व समाप्त होने की बात कहना बेमानी ही है। बल्कि प्रशासन व नगरपालिका का पुस्तकालयो के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ना है।
आपके माध्यम से हमें जानकारी मिली है। इसको लेकर नगर पालिका व पुस्तकालय विभाग के संबंधित अधिकारियों से वार्ता कर जल्द ही इस ओर सुधार हेतु प्रयास किए जाएंगे। -राधेश्याम मीणा, एसडीएम बाड़ी
Comment List