अव्यवस्था : शिक्षा का पता नहीं लेकिन बीमारियां जरूर बांट रहे सरकारी स्कूल 

अधिकांश सरकारी स्कूलों में बदबूदार शौचालयों को प्रयोग में नहीं लेते छात्र

अव्यवस्था : शिक्षा का पता नहीं लेकिन बीमारियां जरूर बांट रहे सरकारी स्कूल 

गंदगी से भरे, बिना पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था के ये शौचालय न केवल छात्रों के लिए असुविधाजनक हैं, बल्कि कई गंभीर बीमारियों को न्योता भी दे रहे हैं। 

जयपुर। राजधानी जयपुर में स्थित राजकीय स्कूलों में शौचालयों की दयनीय स्थिति बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर गंभीर सवाल खड़ा कर रही है। अधिकांश सरकारी स्कूलों में शौचालय की स्थिति इतनी खराब है कि कई छात्रों को मजबूरन घर जाकर शौच करना पड़ता है। गंदगी से भरे, बिना पानी और साफ-सफाई की व्यवस्था के ये शौचालय न केवल छात्रों के लिए असुविधाजनक हैं, बल्कि कई गंभीर बीमारियों को न्योता भी दे रहे हैं। 

विद्यार्थी बाहर शौच करने को मजबूर
ग्राउंड रिपोर्ट्स से यह साफ होता है कि जयपुर के 4 हजार 77 सरकारी स्कूलों में से अधिकांश स्कूलों में शौचालय की स्थिति दयनीय बनी हुई है। कई स्कूलों में शौचालय की स्थिति इतनी खराब है कि विद्यार्थी चाह कर भी शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर सकते है। शिक्षा संकुल में स्थित राजकीय राजस्थान उच्च माध्यमिक विद्यालय में तो नई-निर्मित शौचालय के बाहर ताला जड़ा हुआ है। कई स्कूलों में शौचालयों में दरवाजे नहीं है, तो किसी स्कूल में नल ही टूटा पड़ा हुआ है। कई जगह नल लगा हुआ है तो टंकियां नहीं है, जहां टंकियां है वहां पानी नहीं आता और जहां पानी आता है वहां नियमित सफाई नहीं होती। 

बीमारियों का खतरा और स्वास्थ्य पर असर 
गंदे शौचालय और साफ-सफाई की कमी बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डालते हैं। खासकर लड़कियों के लिए यह स्थिति और भी दयनीय है। लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान गंदे शौचालय का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। कई लड़कियां केवल इस वजह से मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं आती है। 

हफ्ते में एक बार होती है शौचालय की सफाई
राज्य सरकार विद्यालय को हर साल फंड देती है, विद्यालय उसका 10 फीसदी ही सफाई पर खर्च कर सकता है। अधिकांश स्कूल को 7-8 हजार रुपए का स्वच्छता फंड मिलता है। सफाई कर्मचारी शौचालय की सफाई करने के लिए करीब 2 हजार रुपए प्रति माह लेते हैं। 8 हजार रुपए तो चार महीने की सफाई में ही खत्म हो जाता है। इसके अलावा सफाई करने वाली समाग्री का खर्च अलग से आता है। प्रताप नगर सेक्टर 29 में स्थित राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि सरकार को शौचालय सफाई का टेंडर जिलेवार निकालना चाहिए। इससे विद्यालयों में नियमित सफाई होगी और शिक्षकों को सफाई करवाने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा।  टीलावाला, सांगानेर में स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में शौचालय जर्जर स्थिति में है। शौचालय देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि कई महीनों से शौचालय की सफाई नहीं हुई है। अधिकांश स्कूलों में हफ्ते में एक बार शौचालय की सफाई होती है। जिसके कारण शौचालय में बदबू और गंदगी का आलम देखने को मिला।  

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इनका कहना है 
राज्य सरकार स्वच्छता के लिए फंड कम देती है, जिसके कारण सफाई समय पर नहीं हो पाती है। हमारे स्कूल को 7 हजार रुपए का स्वच्छता फंड मिलता है। सफाई कर्मचारी हर महीने 2 हजार रुपए लेती है, हमारा बजट तो चार महीने में ही खत्म हो जाता है। फंड का पैसा खत्म हो जाने के बाद हम सभी शिक्षक पैसा इकट्ठा करके सफाई कराते हैं।
-रघुवीर प्रताप शर्मा, प्राचार्य, रा. उ. प्रा. संस्कृत विद्यालय, सेक्टर 26, प्रताप नगर जयपुर।

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