डोटासरा का विधानसभा अध्यक्ष पर निशाना : कांस्टीट्यूशन क्लब का दोबारा उद्घाटन श्रेय लेना और षड्यंत्र तक सीमित, कहा- यह गलत परंपरा 

उद्घाटन का निर्णय लेना पूरी तरह अनुचित एवं नियमाविरुद्ध है

डोटासरा का विधानसभा अध्यक्ष पर निशाना : कांस्टीट्यूशन क्लब का दोबारा उद्घाटन श्रेय लेना और षड्यंत्र तक सीमित, कहा- यह गलत परंपरा 

कांस्टीट्यूशन क्लब से संबंधित किसी भी निर्णय का अधिकार क्लब के लिए गठित कार्यकारी समिति को है, लेकिन सदन में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा क्लब के उद्घाटन का निर्णय लेना पूरी तरह अनुचित एवं नियमाविरुद्ध है।

जयपुर। कांस्टीट्यूशन क्लब के दुबारा उद्घाटन को लेकर पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष पर निशाना साधा है। डोटासरा ने कहा कि भाजपा की पूरी सियासत 'श्रेय और षड्यंत्र' तक सीमित हो गई है। पिछली कांग्रेस सरकार के समय बनकर तैयार हुए कॉन्स्टीट्यूशन क्लब का उद्घाटन 'दोबारा' तथा कथित शुभारंभ नाम देकर भाजपा सरकार सिर्फ श्रेय लेना चाहती है, जो गलत परंपरा है। जबकि राजस्थान की जनता जानती है कि विधानसभा के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब का निर्माण कांग्रेस सरकार में हुआ है। 22 सितंबर 2023 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कांस्टीट्यूशन क्लब का लोकार्पण विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी एवं नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की उपस्थिति में किया गया था, जिसका उल्लेख शिलापट्ट पर मौजूद है, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार ने कांस्टीट्यूशन क्लब को अब तक बंद रखा, ताकि इसका 'दोबारा' उद्घाटन को तथाकथित शुभारंभ का नाम देकर श्रेय ले सके। 

कांस्टीट्यूशन क्लब से संबंधित किसी भी निर्णय का अधिकार क्लब के लिए गठित कार्यकारी समिति को है, लेकिन सदन में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा क्लब के उद्घाटन का निर्णय लेना पूरी तरह अनुचित एवं नियमाविरुद्ध है। विधानसभा अध्यक्ष ने निर्णय लेने से पूर्व न तो कार्यकारी समिति की बैठक बुलाई और न ही सदस्यों से राय लेकर सर्वसम्मति बनाई। विधानसभा अध्यक्ष किसी दल का नहीं होता। सरकार के दबाव में उनके निर्णयों और भूमिका को लेकर बार-बार प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं। सदन में कई दफा विपक्ष को संरक्षण न मिलना, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का अपमान करने वाले मंत्री से माफी न मंगवाना, जनता द्वारा चुने गए सदस्य पर राजनीति टिप्पणी करना एवं किसी जनप्रतिनिधि सदस्य की आवाज़ कुचलने के लिए विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव सीधे समिति को भेजना, सरकार के प्रति उनके झुकाव को दर्शाता है एवं संवैधानिक पद की गरिमा का उपहास उड़ाने जैसा है। संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को राजनीति का हिसा बनना उचित नहीं है।

 

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