पुरानी बस्ती के खसरा गैर मुमकिन आबादी में 300 वर्गमीटर तक पट्टा देने की प्रक्रिया अटकी, फॉलोअप कैंपों के बाद भी राहत नहीं
हजारों परिवार अब भी वैध पट्टे के इंतजार में
राज्य के अधिकांश नगर निकायों में मौजूद बड़े खसरा गैर मुमकिन आबादी क्षेत्रों में वर्षों से बसे नागरिकों को पट्टा दिलाने की प्रक्रिया अब भी अधूरी है। इन खसरा क्षेत्रों में पुराना शहर आबाद है और यहां 100 प्रतिशत आबादी आज भी रहवास कर रही है। बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिनके पास कोई स्वामित्व दस्तावेज नहीं है, जबकि वे पीढ़ियों से कब्जे में रह रहे हैं।
जयपुर। राज्य के अधिकांश नगर निकायों में मौजूद बड़े खसरा गैर मुमकिन आबादी क्षेत्रों में वर्षों से बसे नागरिकों को पट्टा दिलाने की प्रक्रिया अब भी अधूरी है। इन खसरा क्षेत्रों में पुराना शहर आबाद है और यहां 100 प्रतिशत आबादी आज भी रहवास कर रही है। कई परिवारों के पास राजा-महाराजा या बापी/जागीरदारी के पुराने पट्टे मौजूद हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिनके पास कोई स्वामित्व दस्तावेज नहीं है, जबकि वे पीढ़ियों से कब्जे में रह रहे हैं।
सरकार की गाइडलाइन के अनुसार, जिन व्यक्तियों के पास स्वामित्व दस्तावेज नहीं हैं, उन्हें स्टेट ग्रांट एक्ट की कट ऑफ डेट — सामान्य वर्ग के लिए 01.01.1990 तथा एससी/एसटी वर्ग के लिए 01.01.1996 — से पूर्व के कब्जा संबंधी साक्ष्य जैसे बिजली-पानी के बिल, वोटर कार्ड, राशन कार्ड, या उस अवधि से पहले के बेचान पत्र व पारिवारिक बंटवारा दस्तावेज प्रस्तुत करने पर 300 वर्गमीटर तक का पट्टा दिया जा सकता है। सेवा पखवाड़ा शिविरों में निकायों को ऐसे मामलों में फॉलोअप कैंप आयोजित कर पट्टे जारी करने के स्पष्ट निर्देश मिले थे, लेकिन अधिकांश जगहों पर प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी। परिणामस्वरूप हजारों परिवार अब भी वैध पट्टे के इंतजार में हैं। नागरिकों ने सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग की है।

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