लापता अपनों की आस में डूबी आंखें : बेटों से ज्यादा बेटियां गुमशुदा, आंकड़े बयां कर रहे कहानी खौफजदा, राजस्थान में हर रोज 20 बच्चे हो रहे हैं गुम, इनमें 17 बेटियां
हर दरवाजे पर उम्मीद
राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे अलवर, अजमेर, ब्यावर, जयपुर और कोटपूतली जैसे जिलों में गुमशुदगी के मामले चिंताजनक
राजस्थान में बीते एक साल में 7339 बच्चे लापता हुए, जिनमें 84% यानी 6196 लड़कियां हैं। पुलिस 6838 बच्चों को खोजने में सफल रही, लेकिन 501 बच्चे अब भी गुमशुदा हैं। इनमें 451 लड़कियां हैं। इन आंकड़ों के पीछे कई डरावनी हकीकतें छिपी हैं—बाल तस्करी, मानव व्यापार और असुरक्षित सीमाएं। यह सिस्टम के भीतर के सन्नाटे में से गूंजती वे सिसकिया हैं, जो अपनों के अलावा किसी को नहीं सुनाई देतीं।लापता बच्चों के ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि अनगिनत टूटे परिवारों की चीखें हैं। मां की सूनी आंखें, दादा की बुझती उम्मीदें और बहनों की अनसुनी प्रार्थनाएं—यह सब एक ऐसी त्रासदी का हिस्सा है जो न केवल परिवारों को बल्कि पूरे समाज को अंदर से खोखला कर रही है। सवाल यह है कि क्या इन आंखों की आस कभी पूरी होगी?
मां की आंखों में अब भी बेटे की राह
सितंबर 2024 की वह मनहूस तारीख जब नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर गए आशीष और राहुल घर नहीं लौटे। कुछ दिनों बाद आशीष का शव मिला, लेकिन राहुल अब तक गुमशुदा है। उनकी मां सीता शर्मा का दर्द अब भी जिंदा है। उनके दिन बेटे के इंतजार में और रातें आंसुओं की चादर में गुजरती हैं। पति कांजीबड़े का ठेला लगाते हैं, लेकिन जीवन से अब कोई उम्मीद नहीं बची। सरकार की ओर से न कोई आर्थिक सहायता मिली, न ही कोई सहारा। सीता की आंखें अब भी दरवाजे पर टिक जाती हैं, शायद कोई राहुल की खबर लाए।
दादा की गोद सूनी, 12 साल से जोया की तलाश
चार साल की मासूम जोया शर्मा, जो 19 फरवरी 2013 को चौमूं से लापता हुई, आज भी अपने घर लौटने का रास्ता नहीं देख पाई। उसके दादा रामकिशोर शर्मा अब भी उसकी तस्वीरों को निहारते रहते हैं, उम्मीद का दिया जलाए बैठे हैं। उन्होंने अपनी सीमित जमा पूंजी से पोस्टर, पंपलेट छपवाए, एक लाख का इनाम रखा, लेकिन उनकी जोया अब भी लापता है। हर दिन उनकी आंखें दरवाजे पर टिकी रहती हैं कि शायद कोई उसकी खबर लाए।
33 साल बाद भी अमजद के घर लौटने की उम्मीद
20 सितंबर 1992 को नौ साल का अमजद गायब हुआ था। आज 33 साल बीत चुके हैं, लेकिन उसके परिवार की उम्मीदें अब भी जीवित हैं। उनकी छोटी बहन एडवोकेट अंजुम परवीन कहती हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने डीजीपी को जांच की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।" परिवार की आंखें अब भी हर अनजान चेहरे में अमजद की तलाश करती हैं।
बाल तस्करी का काला सच
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बाल तस्करी के 17 मामले दर्ज हुए। सीमावर्ती इलाकों और आदिवासी समुदायों में लड़कियों को लालच देकर या जबरन तस्करी का शिकार बनाया जाता है। स्टिंग ऑपरेशनों और जांच में यह खुलासा हुआ है कि लड़कियों की खरीद-फरोख्त के पीछे संगठित गिरोह सक्रिय हैं।
अब ऑपरेशन खुशी की तैयारी : मालिनी अग्रवाल
ला पता बच्चों को खोजने के लिए लगातार ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। जल्द ही नया 'ऑपरेशन खुशी' शुरू किया जा रहा है।
-मालिनी अग्रवाल, एडीजी, एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग, राजस्थान
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