गिरजाघरों में बजने वाले घंटे-प्रेयर की ही नहीं बल्कि खुशी के साथ गम की भी देते हैं सूचना
शादी, बच्चे का जन्म सहित अन्य खुशी के मौके पर घंटे तेज और लगातार बजते हैं, जबकि शोक की घड़ी में धीमी और विरामयुक्त ध्वनि करते हैं उत्पन्न
लोग बखूबी यह जान भी लेते हैं कि चर्च की इमारत से आई घंटे की आवाज आराधना के लिए हैं या शादी के खूबसूरत पलों को संजाने के लिए।
जयपुर। गिरजाघरों की छत पर लगे बड़े घंटे ईसाई समाज को संदेश देने में अहम भूमिका निभाते हैं। घंटे की महज आवाज से ईसाई समुदाय के लोग समझ जाते हैं कि चर्च में बजा घंटा खुशी के पलों का है या गम की सूचना देने के लिए बजा है। लोग बखूबी यह जान भी लेते हैं कि चर्च की इमारत से आई घंटे की आवाज आराधना के लिए हैं या शादी के खूबसूरत पलों को संजाने के लिए। दूसरे शब्दों में कहें तो चर्च की इमारत पर लगे घंटे खुशी और गम की सूचना देने, धार्मिक अनुष्ठानों की घोषणा करने और समुदाय को एकत्रित करने के उद्देश्य से बजाए जाते हैं।
क्या है घंटे बजाने का इतिहास
ईसाई चर्च में घंटे बजाने की शुरुआत 604 ईस्वी में पोप सबिनियन ने अधिकारिक रूप से की थी। यह माना जाता है कि एक चर्च में एक घंटी हो सकती है या घंटियों का एक संग्रह हो सकता है, जो एक सामान्य पैमाने पर ट्यून किए गए हो। हालांकि, इनका उपयोग ईसाई समुदाय को एकत्रित करने के लिए किया जाता था। आज किसी को बुलाने या एकत्रित करने के कई तरह के साधन होने के बावजूद घंटे बजाने की परम्परा को ईसाई समाज संजोए हुए हैं।
किस तरह की आती है घंटे की आवाज
गिरजाघरों में सुबह छह बज, दोपहर बारह बजे और संध्या छह बजे प्रार्थना के समय घंटे बजाए जाते हैं, जिससे श्रद्धालुओं को प्रार्थना के लिए स्मरण कराया जाता है। इसके साथ ही जन्म, विवाह और मृत्यु जैसे अवसरों पर घंटों की ध्वनि विशेष महत्व रखती हैं। खुशी के अवसर पर मसलन-शादी, बच्चे का जन्म सहित अन्य खुशी के मौके पर घंटे तेज और लगातार बजते हैं, जबकि शोक की घड़ी में धीमी और विरामयुक्त ध्वनि उत्पन्न करते हैं। शादी के अवसर पर घंटे मधुर ध्वनि में बजते हैं, जो नवविवाहित जोड़े के लिए आशीर्वाद और खुशी का प्रतीक है। घंटों की ध्वनि की तीव्रता, गति और आवृत्ति अवसर के अनुसार भिन्न होती हंै। इस प्रकार गिरजाघरों के घंटे धार्मिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो विभिन्न अवसरों पर अपनी विशेष ध्वनि के माध्यम से समुदाय को संदेश और भावना प्रेषित करते हैं।
‘चर्च से बजने वाले घंटे की आवाज अपना विशेष महत्व रखती है। घंटा बजाने वाले को इतना ट्रेड किया जाता है कि वह इस तरह घंटा बजाता है कि लोग समझ जाते हैं कि खुशी के पलों की आवाज है या गम की सूचना है। आज भी यह परम्परा बनी हुई है।’
-चन्द्रन चन्द्रा, फादर, सेंट एन्ड्रयूज, जयपुर
‘प्रेयर के समय भी घंटी का उपयोग करते हैं,इसके बजने पर सभी श्रद्धालु अलर्ट हो जाते हैं। खुशी और गम के पलों में बजाने के लिए इसका उपयोग करते हैं। आज भी इसका उपयोग देश और दुनिया में होता है।’
-मोतीलाल, फादर प्राचार्य, सेंट एंसलम डीडवाना
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