जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के परिणाम परमाणु बम से कम गंभीर नहीं हैं: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने चेताया

जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के परिणाम परमाणु बम से कम गंभीर नहीं हैं: उपराष्ट्रपति

लोकतंत्र में राजनीतिक अभेद्यता का किला बनती जा रही है जनसांख्यिकीय अव्यवस्था

जयपुर। उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि भारत की संस्कृति, समावेशिता और विविधता में एकता को जनसांख्यिकीय अव्यवस्थाओं द्वारा अस्थिर करने की कोशिश हो रही। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने चेतावनी देते हुए कहा अराजक तत्व तुच्छ पक्षपातपूर्ण हितों के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग कर रहे हैं। भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य को बदलने के उद्देश्य से किए गए दुस्साहस को बेअसर करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की भावनाओं को दोहराते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज देश में जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय विकार के परिणाम परमाणु बम से कम गंभीर परिणाम नहीं हैं।

जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जनसांख्यिकीय अव्यवस्था कुछ क्षेत्रों को राजनीतिक किलों में बदल रही है जहां चुनावों का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। यह बेहद चिंताजनक है कि इस रणनीतिक बदलाव से कुछ क्षेत्र कैसे प्रभावित हुए हैं, जिससे वे अभेद्य गढ़ों में बदल गए हैं जहां लोकतंत्र ने अपना सार खो दिया है।

यह ध्यान देने योग्य है कि नागपुर में विजयादशमी समारोह में अपने हालिया भाषण में भागवत ने संकेत दिया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और वे अल्पसंख्यक हो गए हैं। इससे पहले भी उन्होंने देश में धर्म आधारित जनसंख्या संतुलन पर ध्यान देने की बात कही थी।

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उपराष्ट्रपति ने भारत के भविष्य के लिए इस विषय के व्यापक बिंदुओं के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि “भारत को एक स्थिर वैश्विक शक्ति बने रहना चाहिए। इस ताकत को अभी और उभरना होगा। यह सदी भारत की होनी चाहिए और यह मानवता के लिए अच्छा होगा, जो दुनिया में शांति और सद्भाव में योगदान देगा। यद्यपि अगर हम इस देश में होने वाली जनसांख्यिकीय उथल-पुथल के खतरों से आंखें मूंद लेते हैं तो यह देश के लिए हानिकारक होगा।”

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उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट करते हुए बताया कि जैविक, प्राकृतिक जनसांख्यिकीय परिवर्तन कभी भी परेशान करने वाला नहीं होता किन्तु किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय बदलाव एक भयावह दृश्य पेश करता है।

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उपराष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में इस बात पर ज़ोर देकर कहा “पिछले कुछ दशकों में इस जनसांख्यिकीय बदलाव का विश्लेषण करने से एक परेशान करने वाले पैटर्न का पता चलता है जो हमारे मूल्यों और हमारे सभ्यतागत लोकाचार एवं हमारे लोकतंत्र के लिए चुनौती पेश करता है। यदि इस बेहद चिंताजनक चुनौती को व्यवस्थित ढंग से संबोधित नहीं किया गया, तो यह राष्ट्र के लिए अस्तित्व संबंधी खतरे में बदल जाएगा।” उन्होंने आगे कहा, “ऐसा दुनिया में हुआ है. मुझे उन देशों का नाम लेने की ज़रूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण अपनी पहचान 100 प्रतिशत खो दी है।”

 

 

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने भारत को परिभाषित करने वाली समावेशिता को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हम बहुसंख्यक के रूप में सभी का स्वागत करते रहे हैं। हम बहुसंख्यक के रूप में सहिष्णु हैं। हम बहुमत के रूप में एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र उत्पन्न करते हैं।” उन्होंने इसकी तुलना "दूसरे प्रकार के बहुमत" से की जो क्रूर और निर्दयी है तथा  अपने कामकाज में लापरवाह है और जो दूसरे पक्ष के मूल्यों को रौंद रहा है।

उन्होंने संकीर्ण विभाजनों को पीछे छोड़कर एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया जो भारत की विविधता को बढ़ावा देता है। भारत का एक सच्चा नागरिक, अपनी आस्था की परवाह किए बिना, इस देश के गौरवशाली अतीत का जश्न मनाता है, क्योंकि वह हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत है।

भारत की एकता को खतरे में डालने वाली ताकतों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमारे shared cultural heritage पर कुठाराघात हो रहा है। उसको हमारी कमजोरी बताने का प्रयास हो रहा है। उसके तहत देश को ध्वंस करने की योजना बनी हुई है। ऐसी ताकतों पर वैचारिक और मानसिक प्रतिघात होना चाहिए।”

उपराष्ट्रपति ने उन लोगों से उत्पन्न खतरे के बारे में भी बात की जिन्हें उन्होंने "अराजकता के चैंपियन" कहा। स्वार्थ से प्रेरित ये तत्व, “तुच्छ पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए राष्ट्रीय एकता का बलिदान दे रहे हैं।” वे हमें जाति, पंथ और समुदाय के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं और ये ताकतें भारत के सामाजिक सद्भाव से समझौता करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। 
उन्होंने कहा “राजनीति में कुछ लोगों को अगले दिन के अखबार की हेडलाइन के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने या कुछ छोटे-मोटे पक्षपातपूर्ण हित साधने में कोई कठिनाई नहीं होती। हमें इस भूमि के परिदृश्य को बदलने के लिए इस दुस्साहस को बेअसर करने की आवश्यकता है।”

उन्होंने भारत की तीव्र वृद्धि और विकास पर चर्चा  करते हुए कहा, “हमारी विकास यात्रा दुनिया को आश्चर्यचकित कर रही है। हालाँकि, यदि सामाजिक एकता भंग होती है, यदि राष्ट्रवाद की भावना समाप्त हो जाती है, या भीतर और बाहर राष्ट्र-विरोधी ताकतें देश में विभाजन का बीजारोपण करती हैं, तो यह आर्थिक वृद्धि भी नाजुक साबित होगी है। हम सभी को इन खतरों के प्रति सचेत रहना चाहिए।'

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कुछ लोगों द्वारा कानून के शासन की अवहेलना पर चिंता व्यक्त करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि, “एक समय था जब कुछ लोग सोचते थे कि वे कानून से ऊपर हैं। उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त था, लेकिन आज चीजें बदल गई हैं। आज भी हम संवैधानिक पदों पर ऐसे जिम्मेदार लोगों को देखते हैं जिन्हें न कानून की परवाह है, न देश की परवाह और कुछ भी बोलते हैं। ये भारत की प्रगति के विरोधी ताकतों द्वारा रची गई एक भयावह योजना है।”

धनखड़ ने ज़ोर देकर कहा, “हम राजनीतिक सत्ता के लिए पागलपन की हद तक नहीं जा सकते। राजनीतिक शक्ति एक पवित्र लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से लोगों से उत्पन्न होनी चाहिए।” 

अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा, “आप जो इतना कर रहे हो और नतीजे हर भारतीय आज के दिन को सुखद तरीके से महसूस कर रहे हो, इसे चकनाचूर करने की योजना जो कुछ लोग बना रहे हैं।” हमारी प्रगति पच नहीं रही है।”

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