परिवहन विभाग के पास 700 करोड़ का फंड, फिर भी सड़क सुरक्षा पर लापरवाही
राजस्थान कब अपनाएगा उड़ीसा मॉडल ?
राजस्थान परिवहन विभाग के पास 700 करोड़ रुपए का सड़क सुरक्षा कोष होते हुए भी इसका सही उपयोग नहीं हो पा रहा। विभाग केवल ट्रॉमा सेंटर्स पर फोकस कर रहा है, जबकि हादसों की रोकथाम पर ध्यान नहीं। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि राजस्थान को उड़ीसा मॉडल अपनाना चाहिए, जहां ड्राइवरों की सख्त ट्रेनिंग से सड़क सुरक्षा बेहतर हुई है।
जयपुर। राजस्थान परिवहन विभाग के पास सड़क सुरक्षा कोष में करीब 700 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध है, लेकिन इसका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। जानकारी के अनुसार, सड़क सुरक्षा कोष में लगभग 500 करोड़ रुपए बकाया पड़े हैं, जबकि टोहास (ट्रक ऑपरेटर्स हाइवे एमिनिटीज सोसायटी) के खाते में करीब 200 करोड़ रुपए जमा हैं। यह राशि सड़क सुरक्षा, जागरूकता और हादसों की रोकथाम के लिए उपयोग की जानी चाहिए थी, लेकिन विभाग ने अब तक इन फंड्स का प्रभावी इस्तेमाल नहीं किया है।
विभाग वर्तमान में केवल ट्रॉमा सेंटर्स के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान दे रहा है, यानी हादसे के बाद की व्यवस्थाओं पर फोकस है, जबकि दुर्घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण, जागरूकता अभियान और सड़क सुरक्षा सुधार जैसे कदमों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन फंड्स का सही उपयोग किया जाए तो राज्य में सड़क हादसों की संख्या में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। विभाग की यह निष्क्रियता कई सवाल खड़े करती है कि आखिर इतने बड़े कोष का लाभ आम जनता तक क्यों नहीं पहुंच रहा।
राजस्थान कब अपनाएगा उड़ीसा मॉडल ?
हरमाड़ा हादसे के बाद फिर सवाल उठ रहा है कि राजस्थान उड़ीसा जैसा मॉडल क्यों नहीं अपनाता ? उड़ीसा में भारी वाहनों के ड्राइवरों के लाइसेंस जारी करने से पहले सख्त ट्रेनिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है। नया हैवी लाइसेंस पाने के लिए एक माह की आवासीय ट्रेनिंग अनिवार्य है, जिस पर परिवहन विभाग 26 हजार रुपए तक खर्च करता है। वहीं लाइसेंस नवीनीकरण के लिए ड्राइवरों को तीन दिन की रिफ्रेशर ट्रेनिंग दी जाती है, जिसकी लागत 4250 रुपए है। इसके अलावा, जो ड्राइवर गंभीर श्रेणी के सड़क हादसों में लिप्त पाए जाते हैं, उनके लिए विशेष "ओफेंडर कैटेगरी ट्रेनिंग" अनिवार्य की गई है। उड़ीसा सरकार हर साल ड्राइवर ट्रेनिंग पर करीब 45 करोड़ रुपए खर्च करती है, जिससे सड़क सुरक्षा में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
इसके विपरीत राजस्थान में अब तक ड्राइवरों की ट्रेनिंग को लेकर ठोस पहल नहीं हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर प्रदेश ड्राइवरों की स्किल ट्रेनिंग और नियमित रिफ्रेशर को अनिवार्य कर दे, तो सड़क हादसों की संख्या में बड़ी कमी लाई जा सकती है। परिवहन विभाग के लिए अब वक्त है कि वह इस दिशा में ठोस कदम उठाए।

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