सरकारी स्कूलों में कला शिक्षकों की भर्ती की क्या योजना है : हाईकोर्ट

चित्रकला और संगीत कला के विषय को अनिवार्य किया गया है

सरकारी स्कूलों में कला शिक्षकों की भर्ती की क्या योजना है : हाईकोर्ट

याचिका में कहा गया कि कला शिक्षा बच्चों के रचनात्मक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है।

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आखिरी अवसर देते हुए पूछा है कि प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में कला शिक्षकों के पदों के सृजन और उन पर भर्तियां होने के संबंध में उनकी क्या कार्य योजना है। वहीं अदालत ने राज्य सरकार को कहा है कि वह आगामी सुनवाई पर उनके निर्देशों की पालना करना सुनिश्चित करें। सीजे एमएम श्रीवास्तव व जस्टिस मुकेश राजपुरोहित की खंडपीठ ने यह आदेश विमल शर्मा की जनहित याचिका पर दिए। खंडपीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि बच्चे देश का भविष्य हैं और उन्हें चित्रकला व संगीत कला से वंचित नहीं किया जा सकता, वह भी तब जबकि आरटीई कानून बन चुका है। 

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से आदेश की पालना के लिए समय दिए जाने का आग्रह किया। इस पर अदालत ने कहा कि पांच महीने से ज्यादा समय हो गया है और राज्य सरकार का प्लान आ जाना चाहिए था। ऐसे में अब राज्य सरकार को अदालत के आदेश की पालना के लिए अंतिम मौका दिया जा रहा है। पिछली सुनवाई पर भी अदालत ने कहा था कि जब कला विषय अनिवार्य है तो स्कूलों में कला शिक्षकों की नियुक्ति होनी ही चाहिए। जनहित याचिका में अधिवक्ता तनवीर अहमद ने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत हर स्कूल में चित्रकला और संगीत कला के विषय को अनिवार्य किया गया है। इसके बावजूद प्रदेश की करीब 70 हजार स्कूलों में कला शिक्षा देने के लिए कोई विशेषज्ञ शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है। स्कूलों में कला विषय पढ़ाने का काम दूसरे विषयों के शिक्षकों को सौंप दिया जाता है। यह शिक्षा सेवा नियम और एनसीटीई के मानकों के भी खिलाफ है।

याचिका में कहा गया कि कला शिक्षा बच्चों के रचनात्मक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है। योग्य कला शिक्षकों के अभाव में बच्चों के रचनात्मक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है और इसके अभाव में उनमें मानसिक तनाव और हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ रही है। याचिका में यह भी बताया गया कि आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार कला अनिवार्य विषय होने के बावजूद इसके लिए न तो कोई पद सृजित किया गया और ना ही कला शिक्षक के रूप में नियुक्ति का प्रावधान है। वहीं कला शिक्षा के लिए बीते कई सत्रों में न तो पुस्तकों का प्रकाशन किया गया और ना ही इनका वितरण किया गया।

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