सूर्यनगरी में उल्लास के साथ बना धींगा गवर का उत्सव

धींगा गवर का मेला इस बार नहीं रहा अछूता

सूर्यनगरी में उल्लास के साथ बना धींगा गवर का उत्सव

दो वर्ष तक कोरोना संक्रमण ने सभी उत्सवों को फीका कर दिया पर इस बार कोरोना के खत्म हो जाने से सभी पर्व उल्लास के रंग में रंगे नज़र आ रहे है। धींगा गवर का मेला भी इस से अछूता नही है।

दो वर्ष तक कोरोना संक्रमण ने सभी उत्सवों को फीका कर दिया पर इस बार कोरोना के खत्म हो जाने से सभी पर्व उल्लास के रंग में रंगे नज़र आ रहे है। धींगा गवर का मेला भी इस से अछूता नही है।पूरे देश मे केवल राजस्थान के जोधपुर में अनूठा पर्व धींगा गवर जिसे बेंतमार मेला भी कहते है। यह उत्सव हमारे संस्कृति में कई मायने से खास है। विशेषकर महिलाओं के इस  पर्व में कला , संस्कृति और उसकी स्वतंत्रता से जुड़े कई रंग देखने को मिलते है। शिव पार्वती को समर्पित यह पावन त्यौहार विवाहिताओ के लिए बेहद खास  माना जाता है।
 
सोलह दिनों की पूजन सम्पन होने की रात तीजणियां इस रात विभिन्न तरह के स्वांग रच हाथों में बैत लेकर निकलती है। देश भर में अपनी तरह के इस अनूठे मेले में शहर के भीतरी परकोटे में स्थापित गवर प्रतिमाओं का दर्शन करने तीजणियों के साथ ही हजारों की संख्या में लोगो का हुजूम उमड़ पड़ता है। तीजणियों का उत्साह देखते ही बनता है। वे गवर माता का पूजन कर उनकी प्रसादी लेकर अलमस्त हो सड़को पर बैत लेकर उतरती है। जैसे जैसे रात गहराती जाती है यह मेला अपने पूरे चरम पर होता है। इस रात पूरे भीतरी शहर में महिलाओं का एक छत्र राज होता है। इस अनूठे मेले को देखने शहर के बाहर से भी लोग आते है। इस मेले में अधिकांश कुँवारे युवक सिर्फ बेंत खाने आते है यह मान्यता है कि इस मेले में अगर कुँवारे लड़के को बेंत पड़ जाए तो उसका विवाह शीघ्र हो जाता है। 
 
इस मेले का विशेष आकर्षण होती है स्वर्ण आभूषणों से लदकद गवर की प्रतिमा । सोलह श्रृंगार से सुसज्जित गवर जगह जगह विराजित होती है।
जगह जगह पर गवर के गीत , पारंपरिक गीत की स्वरलहरियाँ गूंजती रहती है इसी के साथ जगह जगह बनाये गये स्टेज पर तीजणियों गाती और थिरकती नज़र आती है। यह पर्व नारी सशक्तिकरण के साथ साथ दाम्पत्य सशक्तिकरण का पर्व भी है। कौनसी तीजणि कौनसा स्वांग रचेगी इसे गुप्त रखा जाता है। विशेष रूप से पति को भी पता नही चलने देती और कई बार पति भी अपनी पत्नी को पहचान नही पाते और इसी बात को लेकर हसी ठिठोली वर्ष पर्यन्त चलती रहती है। इस धींगाणे कि मस्ती को ही धींगा मस्ती कहा जाता है। यह पर्व शिव गौरी की पूजा के साथ साथ रिश्तों में मिठास घोलता है और अपने लोक , संस्कृति और परंपराओं को अक्षुण बनाये रखता है। यही वजह है कि यह पर्व जो केवल जोधपुर (मारवाड़) में ही मनाया जाता है फिर भी विश्व पटल पर अपनी अनूठी पहचान बनाये हुए है।

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