मायड़ भासा रै बिना अपांरी संस्कृति खतम हुय जावैला : महाराजा गजसिंह  

राजस्थानी विभाग के शैक्षणिक एवं साहित्यिक कार्यो से हुए अभिभूत

मायड़ भासा रै बिना अपांरी संस्कृति खतम हुय जावैला : महाराजा गजसिंह  

राजस्थानी भाषा-साहित्य के प्रबल पैरोकार एवं संस्कृति- संरक्षक मरुधराधीश महाराजा गजसिंह मारवाड़-जोधपुर ने जेएनवीयू में राजस्थानी विभाग के अवलोकन के दरम्यान उल्लेखनीय शैक्षणिक एवं साहित्यिक कार्यो से अभिभूत होकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थानी भासा अर साहित्य रै खेतर में पढेसरां रौ भविस ऊजळौ है।

जोधपुर। राजस्थानी भाषा-साहित्य के प्रबल पैरोकार एवं संस्कृति- संरक्षक मरुधराधीश महाराजा गजसिंह मारवाड़-जोधपुर ने जेएनवीयू में राजस्थानी विभाग के अवलोकन के दरम्यान उल्लेखनीय शैक्षणिक एवं साहित्यिक कार्यो से अभिभूत होकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थानी भासा अर साहित्य रै खेतर में पढेसरां रौ भविस ऊजळौ है।

ज्ञातव्य है कि मारवाड़ नरेश गजसिंह के जेएनवीयू कुलपति प्रोफेसर के.एल. श्रीवास्तव के साथ न्यू केम्पस स्थित राजस्थानी विभाग में पहुंचने पर राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने परम्परानुसार राजस्थानी साफा पहनाकर उनका स्वागत किया। इस अवसर पर विभागीय सदस्यों, शोधार्थियों एवं विधार्थियों ने महाराजा साहेब का माल्यार्पण कर भव्य अभिनंदन किया। राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ. राजपुरोहित ने राजस्थानी विभाग द्वारा किए जा रहे शैक्षणिक एवं साहित्यिक कार्यो की महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान कुलपति प्रोफेसर के. एल. श्रीवास्तव इस दिशा में सकारात्मक सहयोग देते रहे है जिससे यह विभाग निसंकोच होकर सतत सकारात्मक कार्य कर रहा है।

राजस्थानी को मिळै संवैधानिक मान्यता : जेएनवीयू कुलपति प्रोफेसर श्रीवास्तव एवं विभागाध्यक्ष डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित के साथ बातचीत में मारवाड़ नरेश गजसिंह ने अपने मन की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा की राजस्थानी एक स्वतंत्र एवं समृद्ध भाषा है जिसका एक हजार वर्ष पूराना अपना गौरवशाली साहित्यिक इतिहास है। वर्तमान में नेपाल और अमेरिका जैसे देशो में इसको मान्यता है मगर राजस्थान प्रदेश का यह दुर्भाग्य है कि देश की आजादी के छियत्तर वर्ष बाद भी यहां के वाशिंदे अपनी मातृ भाषा की संवैधानिक मान्यता को तरस रहे है । उन्होंने कहा कि किसी भी प्रदेश की संस्कृति वहां की मातृ भाषा के बगैर जिंदा नहीं रह सकती इसलिए हमारी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए । 

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत राजस्थानी बने प्रदेश की प्रथम राजभाषा :  जेएनवीयू द्वारा राजस्थानी को अनिवार्य विषय के रूप में प्रारंभ करने की बात पर मारवाड़ नरेश गजसिंह ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के अंतर्गत प्रादेशिक भाषाओं को बहुत महत्व दिया गया है जो एक सराहनीय कदम है । उन्होंने कहा कि राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी है इसलिए इसे प्राथमिक शिक्षा में लागू करने के साथ ही प्रदेश में प्रथम राजभाषा का दर्जा मिलना चाहिए ताकि प्रदेश के करोड़ो युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सके ।  

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शिक्षण के साथ महत्वपूर्ण शोधकार्य की सराहना : राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने विभाग द्वारा विगत चालीस वर्षो में किये गए शैक्षणिक एवं साहित्यिक शोधकार्यो की महत्वपूर्ण जानकारी देने पर मारवाड़ नरेश गजसिंह ने महत्वपूर्ण शोधकार्यो का अवलोकन कर विभाग के शोध कार्यो की खूब सराहना की । 

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ये रहे मौजूद:  इस अवसर पर कला, शिक्षा एवं समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर मंगला राम बिश्नोई, प्रोफेसर सुशीला शक्तावत, डाॅ.मीनाक्षी बोराणा, भंवरलाल सुथार, कैलाशदान लालस, खेमकरण चारण, सुखदेव राव, शक्तिसिंह चांदावत, डाॅ.महेन्द्रसिंह तंवर, डाॅ. कप्तान बोरावड़, रक्क्षा सोनी, निकिता चंदेल, रविन्द्र चौधरी, माधोसिंह, शांतिलाल, श्रीअभी सहित  राजस्थानी शोधार्थी एवं विधार्थी मौजूद रहे।

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