बीस लाख की आबादी, चार लाख वाहन सड़कों पर हर साल बढ़ रहे 25 से 30 हजार वाहन
15 साल पुराने खटारा वाहन बने प्रदूषण के वाहक, नहीं थमी रफ्तार
जाम में घुटता हाड़ौती शहर, एक माह में ही बढ़ गए 2 से 3 हजार वाहन।
कोटा। शिक्षा नगरी के नाम से प्रसिद्ध कोटा अब प्रदूषण नगरी बनती जा रही है। स्थिति यह है कि कोटा में 15.50 लाख मतदाता है। लगभग बीस लाख की जनसंख्या है। ऐसे हालात में अकेले वाहनों की संख्या वर्तमान में चार लाख से ज्यादा है। चार लाख वाहन वर्तमान में सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह स्थिति हर वर्ष बदल जाती है अर्थात प्रतिवर्ष शहर की सड़कों पर 25 से 30 हजार वाहन बढ़ जाते हैं। जिससे वायुमंडल लगातार दूषित होता जा रहा है। आबादी के साथ-साथ वाहनों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। परिवहन विभाग के अनुसार, वर्तमान में कोटा में चार लाख से अधिक वाहन पंजीकृत हैं। इनमें 15 से 25 हजार वाहन ऐसे हैं जो 15 साल से ज्यादा पुराने हैं और प्रदूषण के सबसे बड़े कारण बन चुके हैं। इन वाहनों से निकलने वाला धुआं न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन गया है। आरटीओ अधिकारी मनीष कुमार शर्मा ने बताया कि शहर की सड़कों पर 2 लाख 65 हजार 548 टू-व्हीलर, 58 हजार 126 कारें, 7,678 भारी वाहन और 7,308 थ्री-व्हीलर दौड़ रहे हैं। पुराने वाहन जिनका पुन: पंजीकरण नहीं हुआ, वे प्रदूषण फैलाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
कोटा का आसमां अब धुएं की चादर
बढ़ता प्रदूषण, धुआं, जाम और बीमारियां अब चिंता का विषय बन चुकी हैं। वहीं अब हाड़ौती शहर के आसमां पर अब धुएं की चादर छाने लगी है। कोटा की सड़कों पर दौड़ती यह रफ्तार, शहर की बढ़ती तरक्की का प्रतीक जरूर है, लेकिन इसके साथ यदि समय रहते प्रशासन और आमजन दोनों ने मिलकर ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वर्षों में में लिपटा रहेगा स्वच्छता को ग्रहण लगने के साथ घर-घर में बीमारियां बढ़ेगी।
रफ्तार से बढ़ रहे वाहन, पंजीकरण जारी
कोटा परिवहन विभाग के अनुसारअकेले 2024 में नॉन ट्रांसपोर्ट में टू व्हीलर 16716 रजिस्टर्ड हुए थे जबकि 2025 में 12650 हुए है । इसमें भी सितंबर तक गिरावट रही। वहीं चौपहिया वाहनों में 21490 वाहन रजिस्ट्रर्ड हुए तथा 2025 में 17670 ही हुए थे। दीपावली के दौरान 2024 में जहां 700 से अधिक वाहन रजिस्टर्ड हुए थे, वहीं इस वर्ष 2025 में 1000 से 1500 नए वाहन अतिरिक्त बिके हैं। केवल हाड़ौती क्षेत्र की बात करें तो दीपावली के दौरान ही 2 से 3 हजार नए वाहन बिक चुके हैं, जिनका पंजीकरण अब भी प्रक्रिया में है। वाहन विक्रेताओं का कहना है कि शहर में बढ़ती क्रय शक्ति और सुविधा की चाह के कारण लोग व्यक्तिगत वाहन खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन यही प्रवृत्ति कोटा जैसे शिक्षण एवं औद्योगिक शहर की सड़कों पर जाम और प्रदूषण की बड़ी वजह बन चुकी है।
फैक्ट फाइल अप्रेल-सितंबर (2024-25)
ट्रांसपोर्ट
थ्री व्हीलर 1556 703
टू व्हीलर 15 10
चौपहिया वाहन 592 648
कुल 2163 1361
नॉन ट्रांसपोर्ट
टू व्हीलर 16716 12650
चौपहिया वाहन 4774 17670
कुल 21490 17670
बूंदी, बारां, झालावाड
ट्रांसपोर्ट
थ्री व्हीलर 2130 1278
टू व्हीलर 16 10
चौपहिया वाहन 1462 1572
कुल 3608 2870
नॉन ट्रांसपोर्ट
टू व्हीलर 44918 35679
चौपहिया वाहन 12657 12790
कुल 57575 48479
ये है एक्टिव वाहन
2 व्हीलर 265548
4 व्हीलर प्राइवेट 56824
4 व्हीलर टैक्सी 1302
बस 513
भार वाहन 7165
थ्री व्हीलर 7308
एक्सपर्ट व्यू
टू व्हीलर वाहनों का बढ़ा दबाव, शाम को जाम
शहर की सड़कों पर टू व्हीलर वाहनों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्तमान में 2,65,548 टू व्हीलर सड़कों पर दौड़ रहे हैं, जो अन्य वाहनों से कहीं अधिक हैं। टैक्सी के मुकाबले निजी कारों की संख्या में भी तेजी से इजाफा देखा जा रहा है। शाम के समय शहर की प्रमुख सड़कों पर जाम लगना अब आम बात बन चुकी है। आरटीओ विभाग समय-समय पर पुराने व मानकों से बाहर चल रहे वाहनों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई करता है। विभाग का पूरा प्रयास रहता है कि कोई भी वाहन बिना निर्धारित मापदंडों के सड़क पर न उतरे। यदि लापरवाही पाई जाती है तो सख्त कार्रवाई की जाती है। उन्होंने बताया कि अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच वाहनों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट दर्ज की गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में वाहनों के उपयोग में भी वृद्धि हुई है।
-मनीष कुमार शर्मा, आरटीओ, परिवहन कार्यालय, कोटा
जाम और प्रदूषण से सांस के मरीजों के लिए खतरा
पेट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाली मोनोआॅक्साइड, सल्फर आॅक्साइड जैसी गैसें सांस और हृदय रोगियों के लिए खतरनाक हैं। अस्थमा, सीओपीडी या क्रॉनिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों में यह प्रदूषण सूजन और पल्मोनरी हाइपर रेस्पॉन्सिवनेस जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। बार-बार जाम में फंसने वाले लोग अधिक प्रभावित होते हैं और लंबे समय तक दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर से श्वांस संबंधी बीमारियों की आशंका भी बढ़ गई है।
-डॉ. निर्मल शर्मा, वरिष्ठ चिकित्सक, यूनिट हेड, मेडिकल कॉलेज, कोटा
इस बार एक्यूआई शहर के कोटड़ी इलाके में 900 तक पहुंच गया था। शुक्र मनाइए बरसात हो गई वरना हालात बेकाबू जैसे हो सकते थे। प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ने से अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ रही है। श्वांस और फैंफड़ों की तकलीफ लोगों में लगातार बढ़ रही है। वाहन प्रदूषण इसमें एक बड़ा कारण उभर कर आ रहा है। शहर के सभी लोगों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
- डॉ. केवल कृष्ण डंग, श्वास रोग विशेषज्ञ

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