4 राज्यों ने किया बैन : जिस पौधे को चंबल रिवर फ्रंट में जमकर लगाया, बिना जांच के सार्वजनिक स्थानों पर लगाए खतरनाक पौधे

राजस्थान बायोडायवरसिटी बोर्ड ने भी की बैन करने की सिफारिश

4 राज्यों ने किया बैन : जिस पौधे को चंबल रिवर फ्रंट में जमकर लगाया, बिना जांच के सार्वजनिक स्थानों पर लगाए खतरनाक पौधे

कोनोकार्पस इरेर्क्ट्स पौधा दिखने में जितना खूबसूरत है, उतना ही मानव स्वास्थ्य व बायोडायवर्सिटी के लिए घातक है

कोटा। कोनोकार्पस इरेर्क्ट्स पौधा दिखने में जितना खूबसूरत है, उतना ही मानव स्वास्थ्य व बायोडायवर्सिटी के लिए घातक है। इसके बावजूद केडीए ने बिना जांच परख के शहर की सड़कों, डिवाइडर, पार्कों एवं सार्वजनिक स्थानों पर सैकड़ों कोनोकार्पस पौधे लगा दिए। जबकि, इस पौधें के दुष्प्रभाव को देखते हुए देश के 4 बड़े राज्यों ने इसे बैन कर दिया है। क्योंकि, इन पौधों के फूलों से निकलने वाले परागरण एलर्जिक हैं, जो अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। इतना ही नहीं, अस्थमा मरीजों को सम्पर्क में आने अटैक का खतरा बढ़ जाता है। यह पौधा न केवल पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हैं बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हैं। इसके बावजूद आंखें मूंद कर इन्हें लगाने की परमिशन दी जा रही है। इसके नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए राजस्थान बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने भी प्रदेश में कोनोकार्पस को बैन करने की सिफारिश  की है। 

पक्षी भी नहीं बनाते घौंसला, भूजल का  दोहन 
जेडीबी कॉलेज में बोटनी प्रोफेसर डॉ. पूनम जायसवाल ने बताया कि इस पौधे पर तो पंछी भी घोंसला नहीं बनाते। श्वांस संबंधी बीमारियों के साथ भूजल भी अधिक सोखते हैं।  जिससे आसपास उगने वाली स्थानीय प्रजाति के पेड़-पौधों को पानी नहीं मिल पाता और वह सूखकर मर जाते हैं।  

चंबल रिवर फ्रंट व ऑक्सीजोन में लगे पौधे 
केडीए ने चंबल रिवर फ्रंट व ऑक्सीजोन पार्क में भी बड़ी संख्या में कोनोकार्पस पौधे लगा दिए। वर्तमान में यह पौधे पेड़ बन गए। यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, ऐसे में वह जाने-अनजाने में श्वांस से संबंधित गंभीर बीमारियों की जद में आ रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि केडीए के अधीन होर्टिकल्चर विभाग भी कार्यरत हैं, जहां इंजीनियरों के साथ बोटनी से जुड़े प्रोफेशनल्स भी कार्यरत होते हैं। इसके बावजूद  बिना जांच-परख और वन अधिकारियों से बिना सलाह के खतरनाक प्लांट्स लगा दिए। 

इन 4 राज्यों ने लगाया कोनोकार्पस पर प्रतिबंध
वन्यजीव विभाग के उप वन संरक्षक अनुराग भटनागर ने बताया कि सड़कों से सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी मात्रा में कोनाकार्पस लगा दिए, जो मनुष्य व बायोडायवर्सिटी के लिए भी हानिकारक है। इसके नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए देश के 4 बड़े राज्यों ने इसे लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इनमें गुजरात, आंधप्रदेश, महाराष्ट्र के बाद अब तेलंगाना सरकार ने भी इस पौधे को बैन कर दिया है। 

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शहर में यहां लग रहे यह खतरनाक पेड़-पौधे
शहर में चंबल रिवर फ्रंट, ऑक्सीजोन पार्क, गणेश उद्यान,  डीसीएम रोड स्थित डिवाइडर, संजय नगर चौराहा, माला फाटक, डीसीएम चौराहा, सीएडी रोड स्थित डिवाइडर, सीवी गार्डन, नयापुरा स्टेडियम के सामने डिवाइडर्स सहित कई प्रमुख इलाकों व जागरूकता के अभाव में लोगों ने अपने घरों व फॉर्म पर भी कोनोकार्पस पेड़-पौधे लगे हैं। तितलियों में इंफेक्शन तक का खतरा रहता है। 

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विशेषज्ञ बोले-मानव स्वास्थ्य व ईको सिस्टम के लिए घातक है कोनोकार्पस
कोनोकार्पस पौधा एक्जोटिक (विदेशी) मैंग्रोव प्रजाति का है। वैज्ञानिक रिसर्च में सामने आया कि इस पौधे से सांस संबंधी बीमारियां, खांसी, अस्थमा और एलर्जी का कारण बनता है। साथ ही  पर्यावरण व जैव विविधता के लिए भी घातक है।  वायु की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। गुजरात में हुए वैज्ञानिक अध्ययन सामने आया है कि कोनोकार्प्स के रोपण से ग्रीन डेजर्ट जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। इसे गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकार ने वन और गैर-वन क्षेत्रों  में लगाने पर बैन कर दिया है। 
-डॉ. पूनम जायसवाल, प्रोफेसर बॉटनी जेडीबी साइंस कॉलेज

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बायोडायवर्सिटी के लिए खतरनाक कोनोकार्पस पेड़  इको फ्रेंडली नहीं है। जमीन के अंदर का सारा पानी सोंख लेता है, आसपास के पेड़ों को पनपने नहीं देता है। शहर से इसे नहीं हटाया तो भू-जल खत्म कर देगा।  जिन्हें तत्काल हरियाली चाहिए, वो इसे लगाते हैं। इस पेड़ की बड़ी आबादी ने वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है और इसकी जड़ें जल निकासी पाइपों को अवरुद्ध कर देती हैं।  बायोडायवर्सिटी के लिए बेहद खतरनाक है। 
-एएच जैदी, पर्यावरणविद् 

इसके पराग आंखों में जलन, सर्दी, खांसी एलर्जी, अस्थमा जैसी सांस से संबंधित बीमारियां उत्पन्न करता है। इसकी जड़े पाइपलाइन, सीवर और दूरसंचार केबल को नुकसान पहुंचा सकती हैं। भूमि की नमी को सोखती है, जिससे भूमि जल संकट पैदा होता है। विदेशी प्रजाति होने से स्थानीय पौधों को नुकसान पंहुचाता है। जिससे स्थानीय जैव विविधता प्रभावित होती है। इस पर पंछी भी घौंसला भी नहीं बनाते। इनकी जगह नीम, करंज,जंगल जलेबी,कचनार जैसे पर्यावरण के अनुकूल पेड़-पौधे लगा सकते हैं।
-डॉ. नीरजा श्रीवास्तव, प्रोफेसर बॉटनी, गवर्नमेंट कॉलेज कोटा 

इसके नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए 4 राज्यों ने कोनोकार्पस के रोपण पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं, राजस्थान बायोडायवर्सिटी बोर्ड ने भी इसे प्रदेश में बैन करने की बात की है। इसकी जड़े अंडर वाटर को खत्म करती है। फूलों से जो परागण निकलते हैं वो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति यदि इनके सम्पर्क में आते हैं तो उन पर अटैक का खतरा अधिक रहता है। यह ज्यूलीफ्लोरा से भी घातक है।
-सोनू कुमार, जिला कोर्डिनेटर, बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी भारत 

इनका कहना है
यदि ऐसा है तो इसका जांच व अध्ययन करवाकर स्थानीय पौधों से रिप्लेस करवाएंगे।
-मुकुेश चौधरी, सचिव केडीए 

कोनोकार्पस पर काफी रिसर्च हुई है। जिसमें सामने आया कि यह एलर्जिक है और अस्थमा जैसी बीमारियों का कारण बनता है। यह न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि ईको सिस्टम के लिए भी घातक है। कोनोकार्पस दिखने में खूबसूरत है लेकिन उतना ही घातक भी है। लोगों को इसके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूक किया जाएगा। 
-सुगनाराम जाट, संभागीय मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक मुकुंदरा 

कोनोकार्पस न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि बायोडायवर्सिटी के लिए भी हानिकारक है। इसके परागण हवा के साथ उड़कर सांस में जाते हैं तो अस्थमा, लंग्स और हड्डियों में दर्द संबंधित बीमारियों का कारण बनता है। इसकी जड़े इतनी गहरी होती है कि सारा भूजल सोख लेता है और अपने आसपास लगे स्थानीय पौधों को पानी नहीं मिलने से मर जाते हैं। इसकी लकड़ी सूखी होती है, जिससे आगजनी का खतरा रहता है। इसके फूलों में मकरंद (पक्षियों के लिए अमृत)नहीं होता, जिससे  पक्षियों को न्यूट्रिशन नहीं मिलता। कोई भी पक्षी इस पर घौंसला नहीं बनाता। वन विभाग इस तरह के पौध नहीं लगाता है। हमारी ओर से जिला प्रशासन सहित अन्य डिपार्टमेंट को इसके रोपण पर रोक लगाने को लिखा जाएगा।
-अनुराग भटनागर, उप वन संरक्षक वन्यजीव विभाग 

 

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