कहीं आनुवांशिक बीमारी के शिकार तो नहीं प्रदेश के बाघ-बाघिन!
80 प्रतिशत टाइगर मशहूर बाघिन मछली के वंशज,पहले भी पेट संबंधी खासकर स्केट की समस्या से जूझ चुके हैं टाइगर, राज्य से सभी टाइगर रिजर्व में रणथम्भौर के ही बाघ-बाघिन
पूर्व में नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ बॉयोलोजिकल साइसेंस बैंगलुरू की एक टीम ने देश के कई टाइगर रिजर्व का सर्वे कर बाघ बाघिनों के नमूने एकत्र किए थे। जिसके अध्ययन के बाद यह सारांश आया था कि एक ही जीन पूल के बाघ-बाघिनों में कई तरह की बीमारी व समस्या होने की आशंका रहती है।
कोटा। रणथम्भौर को यूं तो बाघों की नर्सरी कहा जाता है। प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व को भी रणथम्भौर के ही बाघ- बाघिनों ने ही आबाद किया है। लेकिन, रणथम्भौर के बाघ-बाघिनों में एक ओर चीज कॉमन नजर आ रही है। यहां के बाघ-बाघिनों को बार-बार पेट संबंधी खासकर मल त्याग नहीं कर पाने की बीमारी से जूझना पड़ा है। इसका ताजा मामला मुकुंदरा में देखने को मिला है। यहां पर बाघिन एमटी-4 यानि लाइटनिंग की भी तबीयत मल त्याग नहीं कर पाने के कारण बिगड़ी है। ऐसे में अब एक बार फिर से वन्यजीव प्रेमियों व वन अधिकारियों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
बाघिन एमटी-4 की भांजी रिद्दी भी रही परेशान
24 मई 2022 को रणथंभौर में रिद्दी नाम से मशहूर बाघिन टी-124 भी स्केट पास नहीं करने की समस्या से जूझ चुकी है। इसकी वजह से उसकी बड़ी आंत में इंफेक्शन हो गया था। एनटीसीए के प्रोटोकॉल के अनुसार उसे ट्रैंकुलाइज कर इलाज करना पड़ा था। उसके ऐनस में घाव व सूजन थी। बाघिन की मॉनिटरिंग के दौरान पाया गया था कि वह काफी प्रयास के बाद भी स्टूल पास (मल त्याग) नहीं कर पा रही थी। इससे वह वोमिटिंग (उल्टियां) करने से परेशान हालात में थी। उसे भी ट्रैंकुलाइज कर एनीमा दिया था। गौरतलब है कि बाघिन रिद्दी बाघिन एमटी-4 की बहन की बेटी है। ऐसे में रिद्दी टाइग्रेस एमटी-4 यानी लाइटिंग की भांजी हुई और लाइटिंग मछली की पौती और रिद्दी पड़पौत्री है।
रणथम्भौर के बाघ-बाघिन झेल चुके दर्द
प्रदेश के हर टाइगर रिजर्व में रणथम्भौर से ही बाघ बाघिनों को शिफ्ट किया गया है। इनमें से अधिकतर बाघ-बाघिनों का संबंध रणथम्भौर की मशहूर बाघिन टी-16 यानि मछली से ही रहा है। ऐसे में पेट की बीमारी या मल त्याग में आ रही समस्या के जैनेटिक होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। पूर्व में नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ बॉयोलोजिकल साइसेंस बैंगलुरू की एक टीम ने देश के कई टाइगर रिजर्व का सर्वे कर बाघ बाघिनों के नमूने एकत्र किए थे। जिसके अध्ययन के बाद यह सारांश आया था कि एक ही जीन पूल के बाघ-बाघिनों में कई तरह की बीमारी व समस्या होने की आशंका रहती है।
बाघ टी-57 को देनी पड़ी थी फ्लूड थैरेपी
वर्ष 2022 में बाघ टी-57 पेट की तकलीफ के कारण तबीयत खराब हो गई थी। बाघ टी-57 को भोजन पचाने में परेशानी हो रही थी। साथ ही वह मल त्याग नहीं कर पा रहा था। इसके चलते बाघ चल-फिर नहीं पा रहा था। उपचार के दौरान उसे फ्लूड थैरेपी देनी पड़ी और ड्रिप चढ़ाकर पाचन क्रिया को ठीक करने वाली दवाएं तथा विटामिन दिए गए थे। हालांकि, बाद में वन विभाग की ओर से रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसमें उसकी मौत का कारण कैंसर से होना बताया गया था।
रणथम्भौर में पहले भी सामने आ चुके हैं कई मामले
रणथम्भौर के बाघ-बाघिन पहले भी पेट की बीमारी खास तौर पर मल त्याग नहीं कर पाने की बीमारी से जूझ चुके हैं। इन सभी का बाघिन मछली से कोई न कोई संबंध जरूर है। वर्ष 2014-15 के बीच सबसे पहले रणथम्भौर के खूंखार बाघ टी-24 यानि उस्ताद को मल त्याग में परेशानी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वन विभाग की ओर से बाघ को तीन दिनों तक पिंजरे में रखकर उसका उपचार किया था। तब कहीं जाकर बाघ की हालत में सुधार हुआ था। बाघ उस्ताद मां मछली और पिता बाघ टी-20 यानी झुमरू का बेटा था।
- वर्ष 2017-18 के बीच बाघिन टी-8 यानी लाडली का शावक भी इसी प्रकार की बीमारी से जूझ चुका है।
मुकुंदरा की बाघिन एमटी-4 दर्द से गुजरी
रणथम्भौर की लाइटिंग यानी मुकुंदरा की रानी बाघिन एमटी-4 हाल ही में 28 अप्रेल से पेट की तकलीफ से गुजरी है। वह पिछले कुछ दिनों से मल त्याग नहीं कर पाने की वजह से दर्द में थी। चिकित्सकों की टीम ने सोमवार को ट्रैंकुलाइज कर उसके मलाश्य से दो सूखे मल के टुकड़े 4.5 तथा 2.5 इंच के टुकड़े निकाल उपचार किया। ये टुकड़े पत्थर की तरह सख्त थे। बता दें, एमटी-4 बाघिन मछली की पौती है।
एक्सपर्ट व्यू...
समान जीन पूल के बाघ बाघिनों में कई प्रकार की आनुवांशिक बीमारी होने की आशंका रहती है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। कई संस्थाओं की ओर से इस दिशा में शोध भी किए जा रहे हैं।
-आरएन महरोत्रा, पूर्व पीसीसीएफ, वन विभाग जयपुर।

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