34 लाख की कैंटीन दो साल से खा रही धूल, विद्यार्थियों व शिक्षकों को करना पड रहा परेशानी का सामना

दो साल पहले ही हो चुका कैंटीन का उद्घाटन : फिर भी नहीं हुई शुरू

34 लाख की कैंटीन दो साल से खा रही धूल, विद्यार्थियों व शिक्षकों को करना पड रहा परेशानी का सामना

छात्राएं हो रहीं परेशान, थड़ियों पर छेड़खानी का रहता डर।

कोटा। कोटा विश्वविद्यालय में लाखों की लागत से बनी कैंटीन दो साल से धूल खा रही है। जबकि, इसका लोकार्पण तत्कालीन राज्यपाल पहले ही कर चुके हैं। इसके बावजूद अब तक कैंटीन चालू नहीं हो सकी। जिसके चलते विद्यार्थियों व शिक्षकों को अल्पाहार के लिए एक किमी दूर मेडिकल कॉलेज चौराहे पर जाना पड़ता है। इनमें सबसे ज्यादा परेशानी छात्राओं के साथ है। उनके पैदल जाने और वापस आने में क्लास का वक्त निकल जाता है। ऐसे में छात्राएं नहीं जा पाती। उन्हें अधिकतर समय भूखा ही रहना पड़ता है। दरअसल, कोटा यूनिवर्सिटी में 34 लाख की लागत से कैंटीन का निर्माण करवाया गया था। जिसका लोकार्पण 28 फरवरी 2023 को दीक्षांत समारोह के समय तत्कालीन राज्यपाल ने किया था। इसके बावजूद तब से कैंटीन ताले में बंद पड़ी है।

अल्पाहार के लिए एक किमी की दौड़
कैंटीन की सुविधा नहीं होने से विद्यार्थियों को एक किमी दूर मेडिकल कॉलेज चौराहे पर जाना-आना पड़ता है। वहीं, गर्मियों में इनती लंबी दूरी तय करना छात्र-छात्राओं के लिए चुनौतीभरा रहता है। हालात यह हैं, आने-जाने में ही इतना समय बर्बाद हो जाता है कि छात्रों की क्लास का समय निकल जाता है। यूनिवर्सिटी के बाहर थड़ियां लगी हैं, जहां लोगों की भीड़ रहती है। ऐसे में वहां जाने में छात्राएं असहज महसूस करती हैं।

बाहर से आने वाले विद्यार्थियों को परेशानी
विद्यार्थियों ने बताया कि कैंटीन बंद होने से सबसे ज्यादा परेशानी कोटा विवि में दूरदराज से आने वाले विद्यार्थियों को उठानी पड़ती है। एडमिशन के दौरान फॉर्म जमा करवाने व परीक्षा के दिनों में यूजी व पीजी एग्जाम फॉर्म भरने व आॅफलाइन करेक्शन का कार्य करवाने के लिए विद्यार्थी सुबह से ही यूनिवर्सिटी पहुंच जाते हैं। उन्हें फॉर्म सहित अन्य कार्य करवाने में पूरा दिन बीत जाता है।  ऐसे में उन्हें दिनभर भूखे रहना पड़ता है।   

नो प्रोफिट नो लॉस पर चले कैंटीन
कोटा यूनिवर्सिटी के छात्र रोहिताश मीणा ने बताया कि दो साल से कैंटीन चालू नहीं होने का सबसे प्रमुख कारण महंगा किराया है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने कैंटीन का 29 हजार किराया तय किया था। वहीं, नल-बिजली का अलग चार्ज शामिल है। इसकी वजह से किसी ने भी टैंडर डालने में रुची नहीं दिखाई। जबकि, विश्वविद्यालय प्रशासन को नो प्रोफिट नो लॉस पर कैंटीन का संचालन करवाकर विद्यार्थियों को सुविधा का लाभ देना चाहिए। देश की कई यूनिवर्सिटीज में इसी तर्ज पर कैंटीन का संचालन किया जाता है। 

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मेरी क्लास सुबह 9 से शाम 5 बजे तक चलती है। गांव से दूर रूम लेकर रहती हूं। सुबह जल्दी उठकर नाश्ता नहीं बना पाती हूं। ऐसे में सुबह यूनिवर्सिटी पहुंच जाती हूं, इसके बाद दिनभर यहीं रहती हूं, कैंटीन नहीं होने से दिनभर भूखा रहना पड़ता है।  
- कृष्णा कुमारी, छात्रा चित्रकला

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कैंटीन एक फरवरी से शुरू हो जाएगी। जिससे विद्यार्थियों व शिक्षकों को राहत मिलेगी। 
- डॉ. भावना, कुल सचिव कोटा विश्वविद्यालय

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मैं विश्वविद्यालय का नियमित छात्र हूं, सुबह से शाम तक क्लास रहती है। कई बार बीच में लंच करने घर जाता हूं तो आने-जाने में इतना समय गुजर जाता है कि एक क्लास तो छूट जाती है। यदि, विश्वविद्यालय में बनी कैंटीन शुरू हो जाती है तो मेरे जैसे कई विद्यार्थियों को भूखा नहीं रहना पड़ेगा और न ही लंच के फेर में क्लास छुटेगी।  
- दीपक मीणा, छात्र  

मेरी विवि में सुबह 10 से शाम 5 बजे तक कक्षाएं रहती है। दोपहर को लंच का समय मिलता है लेकिन एक किमी जाने-आने में इतना समय बीत जाता है कि कक्षाएं छूट जाती है। ऐसे में चाहकर भी कैम्पस से बाहर नहीं जा पाते। मजबूरी में शाम तक भूखा रहना पड़ता है। कैंटीन होने के बावजूद चालू नहीं करवाना छात्र हितों पर कुठाराघात है। 
- हर्षिता मीणा, छात्रा

विवि में प्रतिदिन दूसरे जिलों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी मार्कशीट या माइग्रेशन लेने आते हैं तो कोई दस्तावेजों में  संशोधन करवाने आते हैं। उन्हें यहां कैंटीन की सुविधा नहीं मिलने से परेशान होना पड़ता है। अव्यवस्थाओं का असर विश्वविद्यालय के नामांकन पर पड़ रहा है। मैं रोजाना विवि आता हूं। विद्यार्थी कैंटीन के अभाव में बहुत परेशान हैं। 
- जितेश मीणा, छात्र 

विवि में लंबे समय से 34 लाख की लागत से बनी कैंटीन शुरू करवाने की मांग की जा रही है। इसके लिए ज्ञापन देने से लेकर धरने-प्रदर्शन तक भी किए। इसके बावजूद विवि प्रशासन द्वारा कैंटीन शुरू नहीं की गई। जबकि, अल्पाहार के लिए विद्यार्थियों को कैंपस के एक किमी दूर मेडिकल चौराहा या अहिंसा सर्किल पर जाना पड़ता है। यदि, जल्द ही कैंटीन शुरू नहीं की गई तो छात्र हित में आंदोलन किया जाएगा।
- रोहिताश मीना, छात्र, कोटा विवि  

कोटा यूनिवर्सिटी संभाग की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है। इससे सवाईमाधोपुर तक के कॉलेज एफीलेटेड हैं। ऐसे में प्रतिदिन हजारों विद्यार्थियों का यहां आना होता है। उन्हें चाय नाशते के लिए इधर-उधर थड़ियों पर भटकना पड़ता है। जबकि, पूर्व में भी धरने-प्रदर्शन के माध्यम से विवि प्रशासन से कैंटीन शुरू करवाने का आग्रह कर चुके हैं। 
 - मेघना बोहावत, छात्रा माइक्रोबायोलॉजी

विवि में लाखों की लागत से कैंटीन बनी होने के बावजूद तालों की कैद से आजाद नहीं हो सकी। लिखित व मौखिक रूप से विवि अधिकारियों को समस्या से अवगत करा चुके हैं। इसके बावजूद ध्यान नहीं दिया जा रहा। कई विद्यार्थी गांवों से शहर में आकर रूम लेकर रहते हैं। किसी की कक्षाएं दोपहर तक तो किसी की शाम 4 बजे तक रहती है। भूखा रहना पड़ता है।
- देवकी नंदन, छात्र प्रतिनिधि  

कई विद्यार्थी दूर दराज से बस व आॅटों से आते हैं। समय पर पहुंचने के कारण अल्पहार लेकर नहीं आ पाते। कैंटीन नहीं होने के कारण दिनभर भूखे रहने की मजबूरी रहती है, क्योंकि एक किमी तक पैदल जाने-आने में क्लास छूटने का डर रहता है। 
- श्रेया घोष,माइक्रोबायोलॉजी छात्रा 

कैम्पस में कैंटीन संचालित होना बेहद जरूरी है। यहां विभिन्न विषयों की सुबह से शाम तक कक्षाएं लगती हैं। लंच बॉक्स साथ नहीं ला पाते। हमारे पास वाहन भी नहीं है। ऐसे में एक किमी दूर मेडिकल कॉलेज स्थित दुकानों पर पैदल आना-जाना हमारे लिए मुश्किल भरा रहता है। 
- तनुश्री मालव, छात्रा एमएससी

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