नाम की रह गई समितियां, तीन अध्यक्ष ने पाला बदला

बैठकें हो रही ना जनता की समस्याओं का समाधान

 नाम की रह गई समितियां, तीन अध्यक्ष ने पाला बदला

दो साल में कई समितियों की तो एक बैठक तक नहीं हुई।

कोटा। कोटा में दो नगर निगम होने के बावजूद पिछली कांग्रेस सरकार में कोटा दक्षिण निगम में ही समितियों का गठन किया गया था। लेकिन वह समितियां भी सिर्फ नाम की ही रह गई हैं। समितियों को गठित हुए दो साल का समय हो गया लेकिन न तो उनकी बैठकें हो रही हैं और न ही जनता की समस्याओं का समाधान। कोटा में पहले एक नगर निगम और वार्डों की संख्या 65 थी। पिछली कांग्रेस सरकार में वार्डों का परिसीमन किया गया। दो नगर निगम कोटा उत्तर व दक्षिण बना दिए। वार्डों की संख्या ढाई गुना बढ़ाकर 150 कर दी गई। दोनों निगमों में कांग्रेस के बोर्ड हैं। बोर्ड गठित होने के तीन माह के भीतर निगम स्तर पर समितियों का गठन नहीं किया जा सका। ऐसे में समितियों के गठन का  अधिकार रा’य सरकार के पाले में चला गया। सरकार की ओर से भी सिर्फ कोटा दक्षिण निगम में ही समितियों का गठन किया गया। जबकि कोटा उत्तर निगम में तो समितियां ही नहीं बनी।  राज्य सरकार ने जनता से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए समितियों का गठन किया था। जिससे पार्षद समितियों में जन समस्याओं को रख उनका समाधान करवा सकेें। समितियां बना तो दी लेकिन वह जनता के काम करना तो दूर बैठकें तक नहीं कर पा रही। 

22 समितियां, गिनती की बैठकें
राज्य सरकार द्वारा जुलाई 2022 में कोटा दक्षिण निगम में 22 समितियों का गठन किया गया था। जिनमें से 21 समितियां तो शुद्ध कोटा दक्षिण की है। जबकि एक मेला समिति दोनों निगमों की संयुक्त बनाई गई है। हालत यह है कि समितियों का गठन हुए दो साल का समय हो गया। अधिकतर समितियों की तो दो-दो बैठकें तक नहीं हुई। कई समितियों की परिचयात्मक बैठक तक नहीं हुई। जिन समितियों की बैठकें हुई भी तो वे नाम मात्र की होकर रह गई। उन समितियों की बैठकों में जो निर्णय हुए उनकी पालना हुई या नहीं यह समिति के अध्यक्षों व सदस्यों को ही पता नहीं है। 

इन समितियों का किया था गठन
राज्य सरकार ने नगर निगम कोटा दक्षिण में जिन समितियों का गठन किया था। उनमें से हर समिति में एक पार्षद को उसका अध्यक्ष और शेष 9 पार्षदों को समिति में सदस्य मनोनीत किया गया। भवन निर्माण स्वीकृति समिति व कार्यकारी समितियों में तो महापौर को उसका अध्यक्ष मनोनीत किया। जबकि सफाई समिति में उप महापौर को अध्यक्ष मनोनीत किया गया। इनके अलावा वित्त समिति,स्वास्थ्य समिति, नियम उप नियम समिति,गंदी बस्ती सुधार समिति,सार्वजनिक रोशनी व्यवस्था समिति,जल वितरण व्यवस्था समिति,राजस्व कर वसूली समिति,गैराज वाहन समिति,स्वर्ण जयंती रोजगार समिति,गौशाला समिति, अतिक्रमण निरोधक समिति,निर्मण समिति, आपदा प्रबंधन समिति,प्रचार-प्रसार समिति,नगर आयोजन एवं सौन्दर्यीकरण समिति,उद्यान प्रबंध समिति,भूमि भवन सम्पदा समिति बनाई गई थी। 

मेला समिति में कोटा उत्तर महापौर अध्यक्ष
राज्य सरकार द्वारा गठित समितियों में एक समिति  मेला एवं अन्य उत्सव आयोजन समिति बनाई थी। जिसमें कोटा उत्तर की महापौर को उसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया। जबकि कोटा दक्षिण के महापौर व उप महापौर, कोटा उत्तर के उप महापौर, दोनों निगमों के नेता प्रतिपक्ष समेत अन्य पार्षदों को उस समिति में सदस्य मनोनीत किया गया है।  मेला समिति की तो दशहरा मेले के लेकर कई बैठकें हुई थी। लेकिन वह भी मेले से पहले ही होती हैं। उसके बाद समिति की कोई बैठक नहीं हुई।

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समिति कांग्रेस पार्षदों की, अध्यक्षों ने बदला पाला
राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कोटा दक्षिण के कांग्रेस बोर्ड में कांग्रेस पार्षदों की समितियों का गठन किया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान कई समितियों के अध्यक्षों ने ही पाला बदल लिया और वे भाजपा में शामिल हो गए। भवन निर्माण स्वीकृति व कार्यकारी समिति के अध्यक्ष व महापौर राजीव अग्रवाल, गौशाला समिति के अध्यक्ष जितेन्द्र सिंह, अतिक्रमण निरोधक समिति के अध्यक्ष पी.डी. गुप्ता के अलावा समितियों के कई सदस्य कांग्रेस पार्षद भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। ऐसे में समितियां काम ही नहीं कर पा रही। हालांकि गौशाला समिति के अध्यक्ष ही एक मात्र ऐसे हैं जो नियमित रूप से गौशाला जाकर  उसमें सुधार के प्रयास में जुटे हैं। जबकि कई समिति अध्यक्षों को तो निगम में आए हुए ही काफी समय हो गया। 

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समिति अध्यक्षों की पीड़ा
वित्त समिति की दो बैठकें हुई। उन समितियों में जो निर्णय किए अधिकारियों ने उनकी पालना ही नहीं की। बजट से पहले दो बार बैठकें करने का प्रयास किया लेकिन नहीं हो सकी। वित्त से संबंधित जो निर्णय व काम हो रहे हैं उसके बारे में अधिकारी जानकारी ही नहीं दे रहे। ऐसे में समिति की बैठकें करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। अधिकारी जब बोर्ड के निर्णयों की ही पालना नहीं कर पा रहे हैं तो समितियों की बैठकों के निर्णयों की पालना करना तो दूर की बात है। 
- देवेश तिवारी, अध्यक्ष, वित्त समिति 

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राज्य सरकार ने समितियों का गठन जनता के कामों को करवाने के लिए किया है। समिति की बैठकें कर उसमें जो निर्णय लिए उन निर्णयों की  पालना हुई या नहीं इस बारे में अधिकारियों ने जानकारी ही नहीं दी। नियमानुसार निर्माण से संबंधित जो भी काम होने हैं उनका अनुमोदन समिति में करवाना आवश्यक है। लेकिन अधिकारी मनमानी चला रहे हैं। ऐसे में समिति का होना न होना बराबर है। 
- इसरार मोहम्मद, अध्यक्ष, निर्माण समिति 

शुरुआत में समिति की बैठकें की। उसमें शहर की सफाई व्यवस्था में सुधार से संबंधित निर्णय लिए गए। लेकिन अधिकारियों द्वारा उन निर्णयों की पालना ही नहीं की गई। उसके बाद अधिकारियों ने बैठकों में रुचि नहीं ली। जिससे बाद में न तो बैठक हुई और न ही अधिकारियों द्वारा सफाई से संबंधित निर्णयों के बारे में समिति को कोई जानकारी दी जा रही है। ऐसे में समिति नाम की रह गई है। 
- पवन मीणा, उप महापौर व अध्यक्ष सफाई समिति

राज्य सरकार द्वारा गठित समितियों में से अधिकर की तो बैठकें हुई हैं। हर समिति के अपने अधिकारी नियुक्त किए हुए हैं। समिति अध्यक्ष बैठकें बुला सकते हैं। लेकिन अधिकारी बैठकों के निर्णयों की पालना ही नहीं कर रहे हैं। ऐसे में बैठकें करने का कोई मलतब नहीं निकल रहा। हालांकि पिछले 9 माह से तो पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव के कारण ही अधिकतर समय आचार संहिता में निकल गया। भवन निर्माण स्वीकृति से सबंधित कुछ पत्रावलियां आई हैं। अब शीघ्र ही बैठक कर उन पर निर्णय किया जाएगा। 
- राजीव अग्रवाल, महापौर, नगर निगम कोटा दक्षिण

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