जंगल से सटा आधा नया कोटा, सैंकड़ों लोगों पर खतरा
रिहायशी इलाकों में कई बार घुस चुके लेपर्ड व भालू : नए कोटा का अधिकतर आबादी क्षेत्र मुकुंदरा का बफर जोन से सटा, फिर से हो सकती है महावीर नगर जैसी घटना
नए कोटा का आधे से ज्यादा इलाका मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के बफर जोन से से सटा है। जंगली इलाका होने की वजह से यहां कई तरह के मांसाहारी व शाकाहारी वन्यजीवों की मौजूदगी है। महावीर नगर जैसी घटना इन इलाकों में भी हो सकती है।
कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना में शनिवार को हुई घटना शहरभर में चर्चित रही। घटना को भले ही 48 घंटे बीत गए हो लेकिन लेपर्ड की दहशत लोगों के जेहन में अब भी कायम है। सड़कों से घरों तक दौड़ता लेपर्ड का खौफ और इंसानों पर जानलेवा हमले से क्षेत्रवासियों के दिलो-दिमाग में डर सा बैठ गया। 6 घंटे की दहशत के बाद लेपर्ड अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया। जिनके जवाब वन विभाग को तलाशने की जरूरत है। वन्यजीवों का आबादी क्षेत्र में घुसने की यह घटना कोई नई नहीं है। इससे पहले भी कई बार लेपर्ड, भालू इंसानों के बीच पहुंच चुके हैं। दरअसल, नए कोटा का आधे से ज्यादा इलाका मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के बफर जोन से से सटा है। जंगली इलाका होने की वजह से यहां कई तरह के मांसाहारी व शाकाहारी वन्यजीवों की मौजूदगी है। महावीर नगर जैसी घटना इन इलाकों में भी हो सकती है। वन्यजीवों का आबादी क्षेत्र में मूवमेंट रोकने की दिशा में वन विभाग को एक्शन प्लान तैयार कर ठोस कमद उठाने चाहिए।
मुकुंदरा के बफर जोन से सटे आबादी इलाके
- कोटा दक्षिण : हैंगिंग ब्रिज से जवाहर सागर तक: आवंली रोजड़ी, नयागांव, दौलतगंज, जामुनिया बावड़ी, बोराबांस, भैरूपुरा सहित कई रिहायशी इलाके शामिल हैं।
- अंदरूनी इलाके : अकेलगढ़, राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय, सरस डेयरी, शिवपुरा, वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा यूनिवर्सिटी, आरकेपुरम, श्रीनाथपुरम, स्वामी विवेकानंद नगर, महावीर नगर विस्तार योजना, खड़े गणेश जी, कौटिल्य नगर सहित आसपास के इलाके मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के बफर जोन से सटे हुए हैं। ऐसे में इन इलाकों में वन्यजीवों के घुसने की आशंका लगी रहती है।
- जंगल से सटे कोटा उत्तर के इलाके : कोटा थर्मल, नदीपार क्षेत्र, नांता, माला फाटक, अभेड़ा, पत्थरमंडी सहित आसपास का क्षेत्र जंगल से सटा हुआ है।
शर्मिले स्वभाव का लेपर्ड
लेपर्ड शेड्यूल-1 का एनीमल है। वह बहुत शर्मिला स्वभाव का होता है। उसके मेन्यूकार्ड यानी डाइट में कीड़े-मकोड़े से लेकर नील गाय को खा सकता है। लेकिन, इंसान का शिकार नहीं करता। वह सामने से शिकार नहीं करता, जबकि घात लगाकर पीछे से अपने शिकार पर लपका है। शिकार के दौरान एनर्जी व्यर्थ नहीं करता। जबकि, लॉयन व टाइगर सामने से शिकार करते हैं। लेपर्ड का पसंदीदा फूड में श्वान, बंदर, लंगूर, खरगोश, चिकन, बॉयलर शामिल हैं।
टेक्निकल यूनिवर्सिटी में आ चुका लेपर्ड
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय परिसर का पिछला हिस्सा चंबल सेंचुरी से सटा हुआ है। यहां भालू और लेपर्ड की संख्या अधिक है। जबकि, यूनिवर्सिटी का बॉयज हॉस्टल सेंचुरी एरिया के बिल्कुल नजदीक है। कई बार लेपर्ड व भालू आरटीयू परिसर में आ चुके हैं। पिछले साल भी कैम्पस में पैंथर का मूवमेंट देखा गया था। वन विभाग ने पगमार्क देख इसकी पुष्टि भी की थी। जिसे रेस्क्यू करने के लिए पिंजरा भी लगाया गया था। इसके अलावा हॉस्टल के पास खतरनाक क्षेत्र का चेतावनी बोर्ड भी लगा हुआ है। जिसमें भालू के विचरण क्षेत्र होने की जानकारी लिखी गई है। वहीं, सांप, गोयरा, अजगर आए दिन कैम्पस में घूमते नजर आते हैं। तमाम खतरों के बावजूद विश्वविद्यालय परिसर सैंकड़ों विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए प्रतिबंधित जंगली क्षेत्र में न तो तार फेंसिंग और न ही चार दीवारी करवाई गई। जबकि, वन्यजीव विभाग इस संबंध में यूनिवर्सिटी प्रशासन को पूर्व में चेता चुका है।
थर्मल परिसर में पैंथर और भालू की आवाजाही
कोटा थर्मल पावर प्लांट में आए दिन भालू व लेपर्ड आते रहते हैं। प्लांट के आसपास जंगली इलाका है, पहले ये पूरा जंगल था। अक्सर गर्मी के दिनों में पानी की तलाश में जानवर आते हैं। इसी वर्ष 28 अप्रेल की रात थर्मल परिसर में पैंथर की दहाड़ सुनाई दी थी। लोगों ने रात के अंधेरे में घूम रहे पैंथर का वीडियो बना लिया और वायरल कर दिया। इसके बाद 13 मई को रेलवे यार्ड पर लेपर्ड टहलता हुआ नजर आया था। ड्यूटी पर मौजूद कार्मिक ने इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया था। फिर 17 फरवरी 2018 थर्मल परिसर में वॉच टॉवर-3 के पास लेपर्ड के छोटे-बड़े कई पगमार्क देखे।
इंसानी बस्तियों में वन्यजीवों को आने से यूं रोक सकते हैं
- प्राकृतिक आवास को बचाया या बढ़ाया जाए।
- मानवीय दखल को पूरी तरह से रोकने के प्रयास किए जाएं।
- अवैध गतिविधियों को रोका जाए। जंगल की प्रभावी मॉनिटरिंग व रिसर्च का दायरा बढ़ाया जाए।
- एनीमल की प्रोटेक्शन, सुरक्षा, संरक्षण जरूरी पर फोकस किया जाए।
- जंगल में भोजन-पानी की व्यवस्था का ध्यान रखा जाए, प्रे-बेस कम हो तो बढ़ाया जाना चाहिए।
- ज्यादा से ज्यादा वाटर प्वाइंट बनाए जाए।
- शहर से सटे जंगल की बोर्डर पर 8-8 फीट ऊंची दीवार बनाए और उसके ऊपर कंटीली बाड़ लगाकर वन्यजीवों को आबादी क्षेत्र में आने से रोका जा सकता है।
- राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय व सरस डेयरी के पीछे चम्बल घड़ियाल सेंचुरी का क्षेत्र है। ऐसे वहां तार फेंसिंग करवाकर वन्यजीवों को बाहर आने से रोका जा सकता है।
-जंगल में अवैध गतिविधियां जैसे- पेड़ों की कटाई, खनन, शिकार सहित अन्य कारणों से मानवीय दखल बढ़ रहा है।
अभियान चलाकर जागरूक करे वन विभाग
महावीर नगर जैसी घटना दोबारा न हो, इसके लिए वन विभाग को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। लोगों के बीच पहुंच जंगल, वन्यजीव व पेड़-पौधों का महत्व समझाना चाहिए। क्षेत्रवासियों में अवेयरनेस बढ़ेगी तो ऐसी घटनाएं नहीं होंगी। वहीं, जंगल से वन्यजीवों बाहर निकलने के कारणों पर रिसर्च करने की जरूरत है। अक्सर वन्यजीव भोजन पानी के लिए ही निकलता है, यदि प्रे-बेस कम है तो बढ़ाया जाना चाहिए। नए कोटा का अधिकतर इलाका मुकुंदरा के बफर जोन से सटा हुआ है। ऐसे में चार दीवारी का निर्माण करवाकर वन्यजीवों को रिहायशी इलाके में आने से रोका जा सकता है।
- डॉ. कृष्णेंद्र सिंह नामा, बॉयोलॉजिस्ट व रिसर्च सुपर वाइजर
जंगल बसाने-बचाने के प्रति सरकार गंभीर
सरकार जंगल बसाने व बचाने के लिए गंभीर है। बजट मिलने पर समय-समय पर आबादी क्षेत्र से सटे जंगली इलाके में चारदीवारी करवाते हैं, वर्तमान में मुकुंदरा के कई क्षेत्रों में करवा गई है। आसपास बसे गांवों के लोग अपने मवेशियों को चराने के लिए दीवार तोड़ देते हैं। हालांकि उनकी समझाइश व आवश्यक कार्रवाई भी की जाती है। रही बात जानवर के बाहर जाने की तो एनीमल भोजन के पीछे जाता है। क्योंकि, जंगल में उसे तलाशना पड़ता है। टेक्निकल यूनिवर्सिटी का आधा हिस्सा सेंचुरी में आता है। इधर, लेपर्ड व भालू का मूवमेंट रहता है। कैम्पस में कई बार भालू व लेपर्ड आ चुके हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन को अपनी सीमा पर जालीनुमा फेंसिंग करवानी चाहिए ताकि जानवर सेंचुरी एरिया से विश्वविद्यालय परिसर में न आ सके।
- रणवीर सिंह भंडारी, उप वन संरक्षक मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व कोटा

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