सुविधा के नाम पर रोडवेज ने खरीदी बीएस-6 मॉडल की बसें, यात्रियों को दे रही झटका
रोडवेज के बेडे में आई 510 नई बसें, चालकों को नई तकनीक का मॉडल नहीं आ रहा रास
रोडवेज की नई बसों में यात्रियों के बैठने के लिए लगाई गई सीटों के बीच में स्पेस कम कर दिया गया है।
कोटा । राजस्थान रोडवेज में हाल ही खरीदी गई बीएस-6 श्रेणी की नई बसें अब यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। सुविधा के बजाय असुविधा का कारण बन रही है। नई बसों में तकनीकी खराबी आने पर चालक के समझ में ही नहीं आ रहा है। वहीं लोकल मिस्त्री भी रास्ते खराब होने पर इन बसों को ठीक नहीं कर सकते है। कारण यह पूरी इलेक्ट्रॉनिक तकनीक आधारित है। जो इंजीरियर के अलावा कोई ठीक नहीं कर सकता है। वहीं दूसरी ओर रोडवेज की नई बसे आरामदाय भी नहीं है। रोडवेज की नई बसों में यात्रियों के बैठने के लिए लगाई गई सीटों के बीच में स्पेस कम कर दिया गया है। इस कारण यात्रियों को लम्बी दूरी तक इन बसों में बैठने में परेशानी आ रही है। दरअसल, राजस्थान रोडवेज ने इसी साल 510 नई बसों की खरीद की है। ये बसें करीब 163 करोड़ रुपए की लागत से खरीदी गई हैं। वहीं कोटा को 5 बसे मिली है। वहीं कोटा डिपो में बीएस - 6 की करीब 2017 मॉडल की 17 बसे है। इन अत्याधुनिक बसों को यात्रियों के लिए आरामदायक और अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त बताया जा रहा है। लेकिन इन बसों केबीएस-6 श्रेणी में होने से इनसे फैलने वाला प्रदूषण भी कम है। रोडवेज प्रशासन ने सर्वाधिक बसें एनसीआर में शामिल जिलों को अलॉट की हैं। जबकि कुछ-कुछ बसें लगभग सभी डिपो को आवंटित की गई हैं। अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त बताई जा रही ये नई बसें अब यात्रियों के लिए परेशानी का कारण बन रही हैं। चूंकि बसों के अंदर सीटों के बीच में बैठने की जगह कम है, इस कारण यात्रियों को पैर फैलाने के लिए जगह नहीं मिल रही है। इससे लम्बी दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों को परेशानी हो रही है।
इंजन का काम करने के दौरान आती है परेशानी
रोडवेज के तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार पुरानी रोडवेज बसों में ड्राइवर केबिन का साइज कम है। ऐसे में गाड़ियों में इंजन का काम या अन्य मैकेनिकल काम करने के दौरान परेशानी आती है। केबिन छोटा होने के कारण इन बसों में पूरे मैकेनिकल टूल भी नहीं रखे जा सके। नई बसों में इसलिए केबिन का साइज बड़ा किया गया है ताकि इंजन या अन्य खराबी के दौरान बसों में मरम्मत आदि काम करने में मैकेनिकों को परेशानी नहीं आए।
बस खराब होने पर बीच में नहीं होती ठीक
नई बसे ना तो सुविधा जनक है। यह बीच में खराब हो जाए तो इसको ना तो चालक ठीक कर सकता है। ना ही कोई लोकल मिस्त्री कारण इसका पूरा सिस्टम कंम्प्यूटर से आॅपरेट होता है। सारा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगे होने इसकी सर्विस कंपनी से प्रशिक्षण प्राप्त इंजीनियर मिस्त्री कर सकते है। रोडवेजन टाटा मोर्टस से अपने मैकेनिकों को इसकी ट्रैनिंग कराई लेकिन बस के बीच में खराब होने पर इसको लोकल स्तर पर ठीक नहीं कराया जा सकता है।इसके लिए वर्कशॉप या कंपनी में भेजना पड़ता है। ऐसे में बस खराब हो जाए तो यात्रियों को दूसरी बस में ही जाना विकल्प है। रविवार को भी उदयपुर से कोटा आ रही बीएस -6 बस पारसोली पास खराब हो गई। उसको लोकल मिस्त्री से ठीक कराकर डाबी तक लाया फिर बस खराब हो गई तो यात्रियों को आधा घंटा इंतजार करने के बाद दूसरे बस से कोटा लाया गया।
-रामसहाय वर्मा, यात्री
पुरानी के मुकाबले नई बस में सीट के बीच गैप कम
पुरानी बस के मुकाबले नई बसों में सीट के बीच का गैप कम कर दिया गया, जिससे 100 किलोमीटर से ज्यादा लंबी दूरी की यात्रा करने पर तो यात्रियों के पैर दर्द करने लग जाते हैं। राजस्थान रोडवेज ने हाल ही नई बसें खरीद कर यात्रियों को बेहतर सुविधा देने का काम किया है, लेकिन नई बसों में लंबी दूरी की यात्रा से लोगों को दर्द मिल रहा है। दरअसल, नई बसों में सीटों के बीच जगह कम कर दी है, जिसकी वजह से पैर समेटकर बैठना पड़ रहा है। यही नहीं गैप कम होने की वजह से यात्रियों को अंदर की तरफ सीटों पर जाने में भी परेशानी हो रही है। जिससे सीट पर बैठने पर 5 फीट 8 या 9 इंच जैसी सामान्य लंबाई वाले व्यक्ति के अगली सीट पर घुटने टच होते हैं।
-ज्योति शर्मा, यात्री कोटा
बीएस-6 मॉडल की नई रोडवेज बसों में सेंसर बढ़ाए गए हैं तथा मैकेनिकल कारणों के चलते केबिन का साइज बढ़ाया गया है। इमरजेंसी विंडो के आस-पास भी स्पेस बढ़ाया गया है। जिस कारण सीटों के बीच करीब एक से डेढ़ इंच का गैप कम हुआ है। यात्रियों को सफर में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हो रही है। नई बसों के ठीक करने के लिए सभी मैकेनिकों को टाटा कंपनी से प्रशिक्षण दिलाया गया है। बड़ी खराबी होने पर कंपनी में भेजा जाता है।
-अजय कुमार मीणा, मुख्य आगार प्रबंधक
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