टाइगर का दुश्मन लैंटाना, ईको सिस्टम का कर रहा नाश
विश्व टाइगर दिवस : जूली फ्लोरा, पारथेनियम, फूहांड कर रहे जंगल बर्बाद
कैंसर की तरह मुकुंदरा में तेजी से फैल रहे सत्यानाशी प्लांट्स।
कोटा। मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में लैंटाना कैंसर की तरह तेजी से फैल रहा है। जंगल के 15 से 20 प्रतिशत भू-भाग पर लैंटाना की जड़ें कब्जा कर चुकी है। समय रहते इसका विस्तार रोका नहीं गया तो आने वाले 10 सालों में यह संख्या 40 प्रतिशत होगी, तब शाकाहारी वन्यजीवों के सामने चारे का संकट होगा। जिससे जनसंख्या घनत्व में गिरावट होगी। नतीजन, बाघ के सामने भी भोजन का संकट मंडराएगा। इन सब के बीच जंगल का ईको-सिस्टम बर्बाद हो जाएगा। विशेषज्ञों का मत है, लैंटाना करीब 30% जंगल बर्बाद कर चूका है। जिस जगह लैंटाना होता है, उसके आसपास कोई भी वनस्पति पनपती नहीं है। इसलिए इसे सत्यानाशी पौधा कहा जाता है।
क्या है लैंटाना
1800 के दशक में लैंटाना को ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता के बॉटनिकल गार्डन में सजावटी पौधे के तौर पर लाया गया था। यह मूलत: दक्षिण अमेरिका का पौधा है। इसकी पत्तियां कांटेदार होती हैं, जिसे कोई भी जानवर नहीं खाता। इसमें एक ऐसा कैमिकल होता है जो अपने आसपास किसी भी पौधे या वनस्पति को पनपने तक नहीं देता। जिसकी वजह से जंगलों में ग्रासलैंड खत्म होते जा रहे हैं।
इको सिस्टम खत्म कर रहा सत्यानाशी
वन अधिकारियों के अनुसार, लैंटाना खतरनाक प्रजाति की झाड़ी है। यह उपजाऊ भूमि को बंजर बनाने के साथ इकोसिस्टम को भी तहस नहस कर रहा है। जंगलों में लैंटाना की अधिकता से जैव विविधता प्रभावित हो रही है। मुकुंदरा में 15 से 20 प्रतिशत भू-भाग पर लेंटाना फैला हुआ है। यह ग्रासलैंड खत्म कर रहा है। इसके ऊपर कोई भी पक्षी घौंसला नहीं बनाता। तितलियां भी अंडे नहीं देती। हर तरफ लैंटाना होने से तितलियां अपना वजूद खो रही है। जबकि, ईको-सिस्टम में इनकी महत्ती भूमिका है।
जहरीला लैंटाना यूं कर रहा फूड चैन बर्बाद
शाकाहारी वन्यजीव : लैंटाना अपने आसपास नए पौधे पनपने नहीं देता। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनुकूल घास खत्म हो रही है। जिसका सीधा असर वन्यजीवों के भोजन चक्र व हैबीटॉट पर पड़ रहा है। घास पर निर्भर रहने वाले हिरण, चीतल, नीलगाय, चिंकारा सहित अन्य वन्यजीव को भोजन नहीं मिल पा रहा। जिससे स्ट्रेस लेवल बढ़ता है ब्रिडिंग कम होती है। नतीजन, जनसंख्या घनत्व में भारी गिरावट होती है।
बाघ के सामने भोजन का संकट
लैंटाना, जूली फ्लोरा, पारथेनियम, फूहांड सत्यानाशी पौधे हैं, जो ग्रासलैंड बनने नहीं देते। जब घास पर निर्भर रहने वाले जानवरों को भोजन नहीं मिलेगा तो वह पलायन करेंगे या अकाल मृत्यु का शिकार होंगे। जब यह जानवर नहीं रहेंगे तो टाइगर को भोजन नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में वह माइग्रेट करता हुआ आबादी की तरफ रुख करेगा। जिससे इंसान और जानवर के बीच संघर्ष बढ़ेगा।
बालाघाट में 20 हिरणों की हो चुकी मौत
मध्यप्रदेश के बालाघाट कान्हा नेशनल पार्क में लैंटाना की पत्तियां खाने से पिछले सात सालों में 20 हिरणों की मौत हो चुकी है। इसकी कांटेदार पत्तियों में जहर होता है। इसलिए, इसे कोई भी जानवर नहीं खाता।
प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान
वन्यजीव विभाग के डीएफओ अनुराग भटनागर बताते हैं, वन विभाग प्रदेश में हर साल वन भूमि से लैंटाना उनमूलन के लिए 500 लाख रुपए खर्च करता है। लेकिन, सत्यानाशी पौधे से हर दिन 500 लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। वह ऐसे-आयुर्वेदिक औषधियां जमीन के अंदर उगती है, जो लैंटाना की वजह से उग नहीं पाती। घास नहीं होने से कई जानवरों की अकाल मृत्यु हो जाती है। बाघ के लिए भोजन नहीं मिलता। पारिस्थितिक तंत्र को पहुंचते सभी नुकसान का आंकलन किया जाए तो प्रतिदिन जंगलों में करोड़ों का नुकसान होता है।
शिंकजे में अरावली का पूरा जंगल
रामगढ़ टाइगर रिजर्व के उप वन संरक्षक संजीव कुमार शर्मा कहते हैं, जब तक लैंटाना रहेगा तब तक स्थानीय वनस्पति पनप नहीं सकती। जंगल के जो जीव घास पर निर्भर हैं, उन्हें जब भोजन नहीं मिलेगा तो तो टाइगर को भी नहीं मिलेगा। क्योंकि, शाकाहारी वन्यजीवों पर ही तो बाघ निर्भर है। अरावली का पूरा जंगल घास व धौकड़े के पेड़-पौधों पर टिका है। इसकी पत्तियों में भरपूर न्यूट्रिशियन होता है, जिसे खाकर ही शाकाहारी वन्यजीव जिंदा है। लेकिन, लैंटाना से धौक व स्थानीय वनस्पति के नए पौधे पनप ही नहीं पा रहे।
यह पौधे बन सकते हैं लैंटाना की काट
विशेषज्ञों के अनुसार, वन विभाग के अनुसंधान विभाग की ओर से ऐसी प्रजातियों की घास व पौधों की खोजबीन की जा रही है। जिनके लगाने से लैंटाना का उन्मूलन हो जाए। अब तक किए गए शोध में यह बात सामने आई है कि तेजपात, खारिक, कालीशाली, आंवला, रीठा, कचनार, सिरास, गिलोय व सर्पगंधा प्रजाति के पेड़ों को बड़ी संख्या में लगाकर लैंटाना के असर को कम किया जा सकता है।
लैंटाना सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है। दरा रेंज में 25 लाख की लागत से लैंटाना और जूलीफ्लोरा को जड़ समेत उखाड़ा जा रहा है। वहीं, मनरेगा के श्रमिकों की सहायता से सभी रैंजों में लगातार लैंटाना, गाजर घास, जूलीफ्लोरा और फूहांड घास का उनमूलन किया जा रहा है। इनकी जगह पर घास के बीजोरोपण कर ग्रासलैंड डवलप कर रहे हैं। मुकुंदरा का 50% हिस्सा पठारी है। जहां घास के मैदान बनाने के प्रयास जारी है। ईको सिस्टम बेहतर बनाने की कोशिशें लगातार जारी है। शाकाहारी वन्यजीव भी अच्छी तादाद में हैं। दरा में अच्छा ग्रासलैंड डवलप किया गया है।
- अभिमन्यू सहारण, डीएफओ, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व

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