मां बच्चों का संसार होती है, मां से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं होता
सिंगल मदर अपने बच्चों को योग्य बनाने के लिए दुनिया से लड़ रही
दैनिक नवज्योति ने एकल मां के दर्द को जाना जिसने समाज में संर्घष कर अपने बच्चों योग्य बनाया और उन्हें समाज में सम्मान से जीने की राह दिखाई।
कोटा। किसी भी बच्चे के लिए मां से बढ़कर कोई नहीं होता है और यह एक बहुत ही प्यारा और अनोखा रिश्ता होता है। किसी भी बच्चे के लिए उसका संसार मां ही होती है। इस रिश्ते में सिर्फ ममता और निस्वार्थ प्यार ही देखने को मिलता है। मां के त्याग और प्रेम की तुलना आप दुनिया में किसी भी चीज से नहीं कर सकते हैं। मां के इसी त्याग और प्यार को सम्मान देते हुए हर साल मदर्स डे मनाया जाता है। इस दिन को मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है और इस बार ये दिन 11 मई आया है। लोग अपने अपने हिसाब से अपनी मां प्यार और त्याग बलिदान और अपने बच्चों पर किए उपकार को अलग अलग तरीके से सेलिब्रेट करेंगे। परिवार के बीच तो मां बच्चों का पालन कर ही लेती है लेकिन एकल नारी के लिए अपने बच्चों को योग्य बनाना किसी चुनौती से कम नहीं है। दैनिक नवज्योति ने ऐसी मां से के दर्द को जाना जिसने समाज में संर्घष कर अपने बच्चों योग्य बनाया और उन्हें समाज में सम्मान से जीने की राह दिखाई। एकल महिला शब्द सुनते ही लोगो के जहन मे कमजोर अबला नारी की छवि सामने आती है, लेकिन एकल महिला और खासतौर पर यदि वो मां है तो उसकी ताकत सौ गुना बढ़ जाति है, एक मां सबसे ताकतवर होती है जब उसके बच्चों पर कोई मुसीबत हो तो वो हर स्थिति चुनौती से लड़ जाती है। यहां कुछ सिंगल मदर मिशाल है जिन्होंने अपने बच्चों को मेहनत मजदूरी करके काबिल बनाया।
मां सबसे ताकतवर होती वो बच्चों पर कोई मुसीबत नहीं आने देती
एकल नारी शक्ति संस्थान की निदेशक चंद्रकला शर्मा ने बताया कि एकल महिला खासतौर पर यदि वो मां है तो उसकी ताकत सौ गुना बढ़ जाती है, एक मां सबसे ताकतवर होती है जब उसके बच्चों पर कोई मुसीबत हो तो वो हर स्थिति चुनौती से लड़ जाती है। एकल नारी शक्ति संस्थान में हजारों एकल नारियां अपने बच्चों को मेहनत मजदूरी करके काबिल बना रही है। एकल नारी शक्ति संस्थान में एक लाख के लगभग एकल महिलाएं जुडी हुई है संस्थान ने हजारों एकल महिलाओं को ताकत हिम्मत दी जिससे उन्होंने अपने अपने व बच्चों के जीवन को बेहतर और सम्मानजक बनाया है, सभी ऐसी मातृशक्ति को सेल्यूट है।
परिवार ने साथ छोड़ा, मां ने बेटे को बनाया इंजीनियर
चंद्रकला बाई ने बताया कि वो सिगल मदर है। इनके एक ही बेटा नाम दुष्यंत है जब दुष्यंत 3-4 साल का था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई। जिसके बाद ससुराल वालों ने काफी हिंसा की। घर मकान, जमीन सब छीन लिए फिर भी हार नहीं मानी और हिम्मत सब चुनौतियों का सामना करते हुए अपने अधिकार के लिए बेटे को पढ़ाया लिखाया और उसे आईटीआई करवाकर भिवाड़ी की एक कंपनी मे मैकेनिकल सुपरवाइजर बनाया। दुष्यंत कहता है मेरी मां मेरी प्रेरणा स्त्रोत और ताकत है। मां है तो जहान है।
दिव्यांग मां ने दोनों बेटियों को बनाया योग्य
लाली धाकड़ ने बताया कि उसका डेढ़ साल की उम्र मे ही बाल विवाह हो गया था। 14 साल की उम्र में ससुराल आ गई थी और 17 साल की उम्र मे दो बच्चियों की मां बन गई, में पैर से विकलांग थी और बेटे की चाहत में पति ने दूसरी शादी कर ली। मुझे घर से निकाल दिया । पीहर मे रहकर आंगनबाडी में काम किया। मजदूरी की और एकल नारी संस्था के साथ जुडी और काफी संघर्ष और चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी बेटियों की खुद शादी की उनको पढ़ाया लिखाया और एक बेटी पूजा जो नर्स बनना चाहती थी उसे अपने पैरो पर खड़ा किया, और आज समाज में अन्य ऐसी महिलाओं को हिम्मत और साहस देने का कार्य कर रही हूं। मां चाहे तो कुछ भी कर सकती है। लाली कहती है मेरी बेटियां ही मेरे बेटे हैं, क्योंकि लाली के पिताजी के भी कोई बेटा नहीं था, और हम बेटियों ने ही उनको संभाला।
बेटे को डॉक्टर और बेटी को बनाया टीचर
समाज में एकल नारी के लिए बच्चों का पालन पौषण करना मुश्किल हो जाता जब पति नहीं होता है और परिवार भी साथ छोड़ देता है। ऐसे में एक अकेली मां अपने बच्चो के लिए समाज से संर्घष कर उन्हें योग्य बनाती है। हंसा देवी ने बताया कि उनके पति की मौत तब हो गई जब उनका बेटा चार साल का और बेटी 6 साल की थी। एकल नारी के लिए उनके बच्चों को योग्य बनाना सबसे बड़ी चुनौती थी। हंसादेवी ने साथिन का काम शुरू किया। उसके साथ मजदूरी और संघर्ष किया, एकल नारी शक्ति संगठन मे जुड़ंकर उनको शक्ति और साहस मिला, उनकी हिम्मत और जज्बा देखकर ससुराल का परिवार भी उनके साथ खड़ा हुआ और आज उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपने दोनों बच्चों लड़के लोकेश को डॉक्टर और बेटी रेखा को टीचर बनाया। यह एक मां ही कर सकती है।

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