ना नेटवर्क ना तकनीक का ज्ञान, किसान कैसे करें गिरदावरी
मोबाइल से आॅनलाइन गिरदावरी में किसानों को हो रही परेशानी
प्रदेश के अधिकांश जिलों में एप से गिरदावरी का आंकड़ा काफी कम हैं।
कोटा। तकनीकी संसाधनों के उपलब्ध होने से ज्यादा जरूरी यह है कि तकनीक का इस्तेमाल करने वालों को इसके लिए दक्ष किया जाए। फसल बीमा योजना में किसान गिरदावरी के वास्ते सरकार ने जो एप लॉन्च किया है उसके नतीजों को देखते हुए यह जरूरत ज्यादा महसूस होती दिख रही है। बीते एक माह में कोटा जिले में केवल 25 प्रतिशत किसान ही इस एप के माध्यम से आॅनलाइन गिरदावरी कर पाए हैं। जिले में किसानों की संख्या के हिसाब से यह आंकड़ा काफी कम है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि एप के प्रति किसान अभी उतनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, जितनी की उम्मीद की जा रही थी। इसके पीछे प्रमुख कारण किसानों का तकनीकी रूप से दक्ष न होना है।
किसानों को यह आ रही दिक्कत
यह सही है कि गिरदावरी के आधार पर ही किसान को फसलों के खराबे पर मुआवजा मिलता है। इस काम के लिए ज्यादातर किसानों को पटवारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। इधर, पटवारी भी काम के बोझ के कारण समय पर गिरदावरी नहीं कर पाते। इस व्यवस्था को सरल बनाने तथा प्रत्येक किसान को अपनी फसल की स्थिति की स्वयं जांच करने में सक्षम बनाने के लिए ही यह एप लॉन्च की गई है। इसकी प्रक्रिया को पूरा करने में कई तरह दिक्कत आ रही है। मसलन जिले के कई गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं आता है। जिससे एप का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। वहीं कई किसानों के पास एंडायड फोन नहीं है तो कई किसान इस प्रक्रिया को पूरा ही नहीं कर पा रहे हैं। जिससे गिरदावरी एप से गिरदावरी का आंकड़ा कम है।
प्रमुख जिले व गिरदावरी का प्रतिशत (एप)
जिला कुल खसरे पटवारी-गिरदावर गिरदावरी%
कोटा 807116 458369 25.79
गंगानगर 4664745 120461 2.58
हनुमानगढ़ 2985882 297445 9.96
झुंझुनूं 650525 72661 11.17
बीकानेर 4262046 66881 15.69
अलवर 1754892 388540 22.13
जयपुर 1976449 444472 22.49
टोंक 968866 233632 24.11
करौली 778759 20997 26.96
भीलवाड़ा 2124520 589850 27.76
तकनीक के व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक के व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत है। किसान तकनीकी रूप से जितने ज्यादा दक्ष होंगे, उनको एप का उतना ही ज्यादा फायदा मिलेगा। किसान खुद गिरदावरी करेगा तो सही रिपोर्ट फीड करेगा। इसमें फजीर्वाड़े की आशंका इसलिए भी नहीं है क्योंकि सत्यापन भी पटवारी के माध्यम से आॅनलाइन ही होना है। समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद व फसल बीमा क्लेम में गिरदावरी की जरूरत होती है। देखा जाता है कि इसमें पटवारी सही एरिया दर्ज नहीं करते। इसका नुकसान किसानों को होता आया है। तकनीक का व्यापक इस्तेमाल होने लगा तो पटवारियों के कार्य बहिष्कार आंदोलन के दौरान भी गिरदावरी करना आसान हो जाएगा। किसान अपनी रिपोर्ट खुद बनाएंगे तो मुआवजा भी वाजिब मिल सकेगा।
25 प्रतिशत तक पहुंचा आंकड़ा
आंकड़ों के मुताबिक अब तक कोटा जिले में केवल 25 प्रतिशत किसानों ने इस एप के जरिए गिरदावरी कराई है। इसी तरह की स्थिति प्रदेश के अन्य जिलों की भी है। प्रदेश के अधिकांश जिलों में एप से गिरदावरी का आंकड़ा काफी कम हैं। वहां भी तकनीकी ज्ञान का अभाव सामने आया है। उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा किसान गिरदावरी एप लॉन्च करने के बाद अब किसान अपने खेत का खसरा नंबर डाल कर स्वयं फसल की गिरदावरी कर सकेंगे। आगामी गिरदावरी किसान इसी एप्लीकेशन से स्वयं के स्तर पर कर सकेंगे। सरकारी स्तर पर गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर ही अनाज उत्पादन का आंकलन व खाद्य नीति तय की जाती है।
हमारे गांव में मोबाइल का नेटवर्क पूरी तरह से नहीं आता है। मकानों के छतों पर जाकर मोबाइल से बात करनी पड़ती है। ऐसे में यहां पर किसान गिरदावरी एप का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। वहीं अधिकांश किसानों को एप का संचालन करना भी नहीं आता है।
- भूरी सिंह, किसान आमली गांव
किसानों की मदद के लिए ही यह एप बनाया गया है। ऐसे में किसान तकनीकी रूप से जितने ज्यादा दक्ष होंगे, उनको एप का उतना ही ज्यादा फायदा मिलेगा। किसान खुद गिरदावरी करेगा तो सही रिपोर्ट फीड करेगा। इसलिए किसानों को स्वयं ही अपने स्तर पर दक्ष होना होगा।
- गोविन्द गुप्ता, कृषि पर्यवेक्षक
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