वार के व्यवहार से मंदिरों में बढ़ रही भिखारियों की कतार
भिक्षावृत्ति करने वालों की बढ़ रही तादात, दुकानों व घरों पर बार-बार आने लगे
कोटा समेत पूरे राजस्थान को भिक्षावृत्ति मुक्त करने का अभियान सरकार की ओर से चलाया जा रहा है।
कोटा । दृश्य 1- शहर में मंगलवार व शनिवार को हनुमान मंदिरों के बाहर कतार से हाथ फैलाए लोग भीख मांगते हुए देखे जा सकते हैं। सामान्य दिनों में यहां ऐसे लोग या तो नजर ही नहीं आएंगे या उनकी संख्या इक्का-दुक्का ही रहेगी।
दृश्य 2- बुधवार को खड़े गणेशजी मंदिर तो गुरुवार को गढ़ पैलेस स्थित साई बाबा मंदिर के बाहर ऐसे लोगों को सड़क किनारे बैठे देखा जा सकता है। ये मंदिर आने वाले हर व्यक्ति के आगे हाथ फेलाए नजर आ जाएंगे।
दृश्य 3- जुमे रात और जुमे के दिन दोपहर की नवाज के समय शहर की अधिकतर मस्जिदों के बाहर भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है। यहां नमाज अता करने आने वालों के आगे हाथ फै लाए ये लोग खाने की वस्तु से लेकर नकद राशि तक मांगते हुए देखे जा सकते हैं।
यह स्थिति है शिक्षा नगरी कोटा की। जहां भिक्षावृत्ति करने वालों की संख्या कम होने की जगह लगातार बढ़ती ही जा रही है। हालत यह है कि भिक्षावृत्ति एक तरह का पेशा सा बन गया है। जिनमें कई लोग तो परिवार समेत ही भीख मांगते हुए देखे जा सकते हैं। दिव्यांग व बुजुर्ग लोगों के अलावा युवा और महिलाएं यहां तक की छोटे बच्चों तक को भीख मांगने के काम में लगाया हुआ है। मंदिरों में दर्शन करने वाले लोग इस तरह के लोगों से खासे परेशान हैं। जब तक इन्हें प्रसाद या नकदी नहीं मिल जाती तब तक ये उनका पीछा ही नहीं छोड़ते।
तालाब की पाल व गीता भवन के बाहर भी
भिक्षावृत्ति करने वाले वैसे तो पूरे शहर में ही नजर आते हैं। चाहे होटल हो या चाय-जलपान की दुकान। सब्जीमंडी हो या किराने की दुकान। जहां लोग नजर आए वहीं इस तरह के लोग हाथ फैलाकर भीख मांगने के लिए आ जाते हैं। मंदिरों के बाहर तो ऐसे लोग वार के हिसाब से आते ही हैं। वहीं सामान्य तौर पर किशोर सागर तालाब की पाल हो या गीता भवन के बाहर भी इस तरह के लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। लक्खी बुर्ज के बाहर हो या जैन दिवाकर के बाहर। बबूल वाले बाबा की दरगाह हो या छावनी व विज्ञान नगर की मस्जिद। इन लोगों को हर समय देखा जा सकता है। गीता भवन में तो सुबह-शाम नि:शुल्क भोजन कराया जा रहा है। जहां ये लोग भोजन भी करते हैं और वहीं पड़े रहते हैं। इसी तरह तालाब की पाल पर दिनभर लोग आकर इन्हें कुछ न कुछ खाने-पीने की चीजे दे जाते हैं।
कॉलोनियों तक में आने लगे ये लोग
पहले जहां अधिकतर भिक्षावृत्ति करने वाले लोग चौराहों पर नजर आते थे। कोटड़ी चौराहा हो या एरोड्राम। अंटाघर चौराहा हो या नयापुरा चौराहा। सिग् नल होते ही वाहन रूकने पर ये लोग झपट पड़ते थे। विशेष रूप से महिलाओं व बच्चों वालों को पकड़ते थे। लेकिन इन चौराहों का विकास व सौन्दर्यीकरण होने और यहां से ट्रैफिक सिग्नल लाइटें हटने के बाद अब यहां वाहन चालक नहीं रुकते हैं। ऐसे में अब भिक्षावृत्ति करने वाले भी यहां से अन्य स्थानों पर शिफ्ट हो गए हैं। ऐसे में अब ये लोग शहर की कॉलोनियों और घरों में भीख मांगने के लिए दिनभर देखे जा सकते हैं।
भिक्षावृत्ति करने वालों पर लगे रोक
महावीर नगर निवासी अरुणा शर्मा का कहना है कि मंदिर में जाने पर भिखारी पीछे पड़ जाते हैं। जिससे उनसे बचना मुश्किल हो जाता है। इन पर रोक लगनी चाहिए। कैथूनीपोल निवासी निधी शर्मा का कहना है कि चाहे किसी भी धार्मिक स्थल पर चले जाओ और किसीभी शहर में। हर जगह पर भिखारी पीछे पड़ जाते हैं। हालत यह है कि अब तो एक दो रुपए से नहीं कम से कम 5 से 10 रुपए लिए बिना पीछा ही नहीं छोड़ते। कोटा से ऐसे लोगों को खत्म करना चाहिए। ये कोटा के लिए किसी कलंक से कम नहीं है।
मानव तस्करी विरोधी यूनिट ने की कार्रवाई
शहर में भिक्षावूृत्ति करने वालों से लोगों को छुटकारा दिलाने के लिए पूर्व में मानव तस्करी विरोधी यूनिट ने कार्रवाई की थी। जिसमें ऐसे लोगों को पकड़कर उन्हें शैल्टर होम में भेजा था। लेकिन वहां से छूटने के बाद ये फिर से वही काम करने लगे थे। लेकिन उस समय यूनिट का खौफ नजर आता था। जबकि पिछले काफी समय से इस यूनिट ने भी भिक्षावृत्ति करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
कोटा को भिक्षावृत्ति मुक्त करने का अभियान
कोटा समेत पूरे राजस्थान को भिक्षावृत्ति मुक्त करने का अभियान सरकार की ओर से चलाया जा रहा है। जिसके तहत कोटा में भी समाज कल्याण विभाग व अन्य विभाग मिलकर ऐसे लोगों का सर्वे कर रहे हैं। उनकी वास्तविक संख्या का पता लगाया जा रहा है। सर्वे के बाद ऐसे लोगों को नगर निगम के माध्यम से पुनर्वास किया जाएगा। जिसमें उन्हें निगम के आश्रय स्थलों में ठहरने की सुविधा और इंदिरा रसोई से नि:शुल्क भोजन कराया जाएगा। इसका मकसद उनके खाने और रहने की व्यवस्था करने से ये लोग इस तरह का काम नहीं कर सकें।
- ओम प्रकाश तोषनीवाल, उप निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग
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