हजारों किमी दूर से कोटा पहुंचे स्टेपी ईगल
मिस्त्र, रूस, चीन, कजाकिस्तान से आए स्टेपी ईगल
राष्ट्रीय पक्षी स्टेपी ईगल शहर में बड़ी संख्या में नजर आ रहे हैं।
कोटा। सर्दी के तेवर तीखे होते ही विदेशी परिंदों का कोटा आना शुरू हो गया है। कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, चीन से हजारों किमी का सफर तय कर भोजन की तलाश में आते हैं। पांच महीने के प्रवास के बाद वापस अपने मुल्क की ओर लौट जाते हैं। दरअसल, इन दिनों मिस्त्र का राष्ट्रीय पक्षी स्टेपी ईगल शहर में बड़ी संख्या में नजर आ रहे हैं। यह बाज की प्रजाति और शिकारी पक्षी है, जो हवा में काफी उंचाई पर उड़ते हुए अपने शिकार पर पैनी नजर रखता है। खरगोश, चूहे का शिकार करता है।
मिस्त्र का राष्ट्रीय पक्षी है स्टेपी ईगल
बर्ड्स रिसर्चर हर्षित शर्मा ने बताया कि स्टेपी ईगल मिस्त्र का राष्ट्रीय पक्षी है और कजाकिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज में इसका चित्र है। नवम्बर माह से इनका आना शुरू हो जाता है और मार्च-अप्रेल तक रहते हैं। यह मुख्य रूप से घास के मैदानों व खुले जंगलों में रहना पसंद करते हैं। इनका रंग गहरे भूरा होता है। पंखों पर सफेद रंग की धारी होती है। शरीर के आकार के हिसाब से इनका सिर छोटा होता है।
अभेड़ा में 100 से ज्यादा ईगल
बायोलॉजिकल पार्क के फोरेस्टर बुधराम जाट ने बताया कि बायोलॉजिकल पार्क के तालाब एरिया में इन दिनों 100 से ज्यादा ईगल नजर आ रहे हैं। जिसमें विभिन्न प्रजातियों के ईगल शामिल हैं। इसके अलावा अन्य पक्षियों का भी यहां प्राकृतिक रहवास बना हुआ है। पर्यटकों में बर्ड्स वॉचर व रिसर्चर भी आ रह हैं।
अवसरवादी होता है ईगल
रिसर्चर हर्षित बताते हैं, स्टेपी ईगल अवसरवादी शिकारी पक्षी है, जो शिकार के लिए कई तरह की तकनीक का उपयोग करता है। हवा में काफी उंचाई पर उड़ते हैं और जमीन पर शिकार की तलाश में पैनी नजर रखते हैं। शिकार नजर आते ही तुरंत झपट्टा मारते हैं और अपने मजबूत व नुकीले पंजों से वार कर उठा लेते हैं। कई बार ये अपने शिकार का इंतजार उसके बिल या मांद के सामने घंटों बैठकर करते हैं। जैसे ही शिकार बाहर आता है तो उन्हें तुरंत पकड़ लेता हैं।
हाईटेंशन लाइनें बन रही काल
नेचर प्रमोटर डॉ. सुब्रत शर्मा ने बताया कि स्टेपी ईगल आईयूसीएन की रेड लिस्ट में है। बाज की यह प्रजाति संकटग्रस्त है,जो विलुप्त होने के कगार पर है। दुनियाभर में वर्ष 1990 से इसकी संख्या में भारी कमी आई है। घास के मैदानों का खेतों में बदलना व प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण लगातार इनकी संख्या में कमी होती जा रही है। वहीं, हाईटेंशन विद्युत लाइनों से टकराकर पक्षी अकाल मौत के शिकार हो रहे हैं। सरकार को सभी बिजली लाइनें भूमिगत करनी चाहिए। साथ ही परिदों के संरक्षण के लिए घास के मैदानों व प्राकृतिक आवास बचाने के पुख्ता बंदोबस्त किए जाने की आवश्यकता है।
शहर में यहां बसी आबादी
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि शहर के कई इलाकों में इनकी कॉलोनी बसी है। जिनमें अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क, जोरा बाई का तालाब, गरड़िया महादेव, गैपरानाथ, उम्मेदगंज व बारां रोड स्थित डम्पिंग यार्ड, के आसपास झुंड में नजर आते हैं। यह गिद्द की तरह प्रकृति के सफाईकर्मी होते हैं। खरगोश व चूहें का शिकार करता है। यह पक्षी अपना घोंसला पहाड़ों, चट्टानों, खंडर इमारतों व उंचे पेड़ों पर बनाते हैं। नर व मादा दोनों ही अन्य शिकारी पक्षियों से अंडों की रक्षा करते हैं। जन्म के 3 माह बाद ही बच्चे उड़ना सीख जाते हैं।
कजाकिस्तान में सबसे ज्यादा संख्या
पक्षी विशेषज्ञ डॉ. अंशु शर्मा ने बताया कि स्टेपी ईगल मध्य एशिया के घास के मैदानों से सर्दियों में देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचता है। यह पक्षी कुरजा जैसे बड़े पक्षियों, बत्तख, खरगोश व चूहों तक का शिकार करने में सक्षम होता है। यह बड़े शिकारी चील, बाज समूह में एक मात्र शिकारी पक्षी है जो घास के मैदानों पर ही प्रजनन करता है। इसकी संख्या कजाकिस्तान में ज्यादा मिलती है।
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