कोटा के ये शिक्षक हैं, सुपर-30 आनंद कुमार जैसे
स्वयं के खर्चे पर स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षा के सारथी
रूबरू होते हैं ऐसे शिक्षकों से, जिनकी मेहनत, लगन और संघर्ष की कहानी दिल को छू लेगी....
कोटा। अज्ञान के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु को भारतीय सनातन संस्कृति में जो स्थान प्राप्त है, वह माता-पिता और ईश्वर किसी को भी नहीं है। लेकिन, वर्तमान परिदृश्य में बदलते समय के साथ गुरू-शिष्य के संबंधों का आधार भी बदल गया। त्याग और समर्पण का भाव अब व्यापारिक हो गया। जिससे शिष्य और गुरु के बीच निष्ठा की जमीन भी दरकने लगी है। पैसों के तराजु पर ज्ञान तोला जाने लगा तो व्यवसाय के बाजार में शिक्षा बेची जाने लगी। ऐसे माहौल में भी समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो आज भी विश्वास, त्याग, समर्पण की परंपरा को अपने संघर्ष से सींच रहे हैं। उनके लिए शिक्षा देना सिर्फ नौकरी-पेशा नहीं, बल्कि देश की तकदीर बदलने का जज्बा है, और समाज का भविष्य को संवारने का मजबूत विकल्प है। राष्ट्र निर्माण के प्रति उनके कार्यों से शिक्षक समाज का सिर गर्व से ऊंचा है। उन्हें इस काम के लिए किसी शिक्षक दिवस की जरूरत नहीं बल्कि हर दिन उनके लिए शिक्षक दिवस है। आइए रूबरू होते हैं ऐसे शिक्षकों से, जिनकी मेहनत, लगन और संघर्ष की कहानी दिल को छू लेगी....
अनाथ-असहाय बच्चों को पढ़ाने के लिए छोड़ी लाखों की नौकरी
नन्हें कंधों पर स्कूल बैग की जगह कचरे का थैला था। पढ़ने की उम्र में पेट पालने की मजबूरी चेहरे पर झलक रही थी। कूडे-कचरे के ढेर में रोजी तलाशती मासूम आंखों से टपकता आंसू का एक-एक कतरा दिल छलनी कर रहा था। संघर्ष के भंवर में फंसा बचपन ने आत्मा झकझौर दी। बस, यहीं से इन मासूमों की जिंदगी को शिक्षा से बदलने को अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया। यह कहानी है, इंजीनियर अक्षय वैष्णव की। जिन्होंने मल्टीनेशनल कम्पनी में लाखों का पैकेज छोड़ नि:शुल्क कोचिंग की नींव डाली और असहाय-अनाथ बच्चों को शिक्षित करना ही अपनी जिदंगी का मकसद बना लिया। अक्षय अब तक 500 बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं। उनके पढ़ाए बच्चे आज आईआईटी, जेईई मेन, एडवांस, नीट और जेट की तैयारी कर रहे हैं। जिनकी फीस का इंतजाम स्वयं व भामाशाह के सहयोग से करते हैं।
आदर्श विद्यार्थी सेवा संस्था की डाली नींव
गरीब-असहाय बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने के लिए अक्षय ने आदर्श विद्यार्थी सेवा संस्था की नींव डाली। दोस्तों के साथ आरकेपुरम, रंगबाड़ी, बालाकुंड सहित कई इलाकों की बस्तियों का सर्वे कर स्कूल न जाने वाले बच्चों को चिन्हित किया। अभिभावकों की समझाइश कर इस वर्ष 60 से ज्यादा बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवाया। साथ ही उन्हें स्कूल बैग, कॉपी-किताबे सहित स्टेशनरी उपलब्ध करवाई। अक्षय कहते हैं, राजस्थान के 50 जिलों में नि:शुल्क कोचिंग संचालित करने का सपना है। संस्था द्वारा वर्ष 2019 से अब तक सरकारी स्कूल के 1500 विद्यार्थियों को स्कूल बैग, स्टेशनरी, 2000 स्वटेर वितरित कर चुके हैं।
अब तक 500 से ज्यादा बच्चों को दे चुके मुफ्त शिक्षा
संस्था के फाउंडर अक्षय वैष्णव ने बताया कि 5 जनवरी 2022 को रंगबाड़ी सर्कल के पास एवी निशुल्क कोचिंग की शुरुआत की थी। बस्तियों व सरकारी स्कूलों से बच्चों को कोचिंग लाए और प्रतिवर्ष कक्षा 9 व 10वीं के 200 बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। वहीं, 1 जनवरी 2023 को स्वामी विवेकानंद नगर में एवी कोचिंग की दूसरी ब्रांच खोल कक्षा 1 से 8वीं के 100 असहाय व अनाथ बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। दोनों कोचिंग संस्थाओं को मिलाकर कुल 15 टीचर लगाए हैं। जहां उन्हें हिन्दी व अंगे्रजी माध्यम में पढ़ाई करवाते हैं। शिक्षकों की तनख्वाह भी अपनी जमा पूंजी में से निकालते हैं। वहीं, कोचिंग का अन्य खर्च भामाशाह के सहयोग से निकलता है। उनकी नि:शुल्क कोचिंग के बच्चे वर्ष 2021-22 व 2022-23 के बोर्ड परीक्षा परिणाम में 91 से 100 में से 100 अंक हासिल किए हैं।
40 बच्चों का भविष्य संवार रही अनुभूति
कोचिंग इंस्टीटयूट में आईआईटी की तैयारी कराने वाली प्रोफेसर अनुभूति दीक्षित आरकेपुरम में सामाजिक संस्थान से जुड़ी है। यहां 40 से 45 बच्चों को नि:शुल्क साइंस-मैथ्स की कोचिंग दे रहीं है। इनके पढ़ाए बच्चे 10वीं बोर्ड में 70 प्रतिशत से उपर अंक लाकर नाम रोशन कर रहे हैं। अनुभूति बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ गणित, बॉडी लैंग्वेज, जिंदगी जीने की कला, बातचीत करने का लहजा, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी, और संस्कार के अलावा नैतिक शिक्षा का भी ज्ञान दे रहीं है। इसके अलावा बीमार बच्चों का भी खुद अपने खर्चे पर इलाज करवातीं है। अनुभूति कहतीं हैं, हर दिन हर पल, कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अशिक्षा टकरा ही जाती है। पिन्नी बीनते बच्चों को देख मन विचलित हो गया। सोचने पर मजबूर हो गईं कि ये वर्ग समाज का हिस्सा होते हुए भी मुख्य धारा से दूर क्यों है। इसका कारण, शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी है। इनके माता-पिता को अंदाजा भी नहीं है कि उनके जीवन में रोशनी सिर्फ शिक्षा के जरिए ही आ सकती है। झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों को बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया।
आर्थिक तंगी रुकावट बनी तो भारत बन गए ढाल
शिक्षा विभाग में कार्यरत यूडीसी भारत पाराशर टूटती शिक्षा की डोर जोड़ रहे हैं। वे स्वयं के खर्चे पर एक दर्जन से अधिक बच्चों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। पाराशर आरटीई विभाग के प्रभारी हैं। जिन बच्चों को प्राइवेट स्कूलों ने आरटीई के दायरे से बाहर कर एडमिशन देने से इंकार कर दिया, भारत ने उन्हीं बच्चों का उसी स्कूल में खुद की जेब से फीस भरकर एडमिशन करा दिया। इतना ही नहीं, पढ़ाई-लिखाई से लेकर स्टेशनरी का खर्चा भी उठा रहे हैं। आॅफिस के बाहर मोबाइल, मैकेनिक व चाय की दुकान पर काम करते बच्चों को देख दिल पसीज गया। उनके अभिभावकों से बात कर स्कूल भेजने को राजी किया। जहां पैसा रूकावट बना वहां पाराशर ढाल बनकर खड़े हो गए। वे अब तक एक दर्जन से अधिक बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवा चुके हैं। इसके अलावा कॅरिअर काउंसलिंग व रोजगारोन्नमुखी कोर्सज भी करवा रहे हैं।
दो छात्राओं को अपने खर्चे पर करवाई बीएड
गुमानपुरा स्थित राजकीय सीनियर सैकण्डरी स्कूल में कॉमर्स व्याख्याता अश्वनी गौतम कहते हैं, प्रतिभा अभावों से जूझ सकती हैं लेकिन टूट नहीं सकती। थोड़ी सी मदद हो तो आसमान भी छू सकती हैं। गौतम ने आर्थिक रूप से कमजोर दो छात्राओं को गोद लेकर न केवल पढ़ा रहे हैं बल्कि स्वयं के खर्चे पर बीएड भी करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 से 2012 तक अर्जुनपुरा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पदस्थापित थे। 9वीं कक्षा में गीता छात्रा थी, उसके पिता चाय की थडी लगाते थे, आर्थिक स्थिति कमजोर होने से वे बच्ची को आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे। लेकिन गीता पढ़ने में होशियार थी। मैंने उसके पिता से बात कर छात्रा को गोद लिया और अपने खर्चे पर कक्षा 9वीं से एमएससी करवाई। अब जयपुर से बीएड करवा रही है,इस साल फाइनल है। इसी तरह वर्ष 2015 में गुमानपुरा स्कूल में ट्रांसफर हुआ तो यहां भी 9वीं कक्षा में छात्रा भावना (परिवर्तित नाम) थी। उसके पिता और भाई नहीं थे। घर की जिम्मेदारी मां पर थी। आर्थिक स्थिति दयनीय थी। ऐसे में भावना को गोद लेकर 12वीं तक की पढ़ाई करवाई। अब उसे धाकड़खेड़ी स्थित हितकारी कॉलेज से बीए-बीएड करवा रहे हैं। भगवान ने इन बच्चियों की मदद के लिए मुझे माध्यम बनाया। आज दोनों बच्चियों को देखकर आत्मिक शांति मिलती है।
स्कूल से आईआईटी तक की किताबें बांट रहा कोटा केयर गु्रप
कोटा में देशभर से लाखों बच्चे कोचिंग करने आते हैं और पढ़ाई पूरी कर महंगी किताबें रद्दी में बेच जाते हैं। जबकि, कई विद्यार्थी ऐसे भी हैं, जो परिवार की माली स्थिति के कारण नई किताबें नहीं खरीद पाते। आर्थिक तंगी के चलते पढ़ नहीं पाते। मायूस होते चेहरों को देख कोटा के अंशु महाराज का दिल पसीज गया और उनके चेहरों पर फिर से मुस्कान लौटाने की ठान ली। वर्ष 2012 में इट हैपेंस ओनली इन कोटा केयर गु्रप नाम से संस्था बना डाली। विद्यार्थियों के बीच सेमिनार, वर्कशॉप कर उन्हें किताबों की अहमियत समझाई। इसके बाद मदद का कारवां बढ़ता गया और पढ़ाई पूरी होने के बाद विद्यार्थी गुप को किताबें, नोट्स, मॉडल पेपर देने लगे। इधर, संस्था को डील कर रहे भरत गोयल ने बताया कि वे एमएससी के छात्र हैं। सिटी मॉल के सामने संस्था का आफिस है, जहां स्कूली शिक्षा से लेकर आईआईटी तक की किताबें उपलब्ध हैं। विद्यार्थियों को उनकी जरूरत के मुताबिक किताबें उपलब्ध करवाते हैं।

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