नये जमाने में क्यों गुम हो गई, पुराने जमाने की दोस्ती
बदल गया है आज दोस्ती का मतलब
दोस्ती वो है जो एक भरोसे से शुरू होती है और एक भरोसे से ही खत्म हो जाती है।
कोटा। दोस्ती एक बड़ा ही पवित्र रिश्ता होता है। दोस्ती में दो लोगों के बीच स्थायी स्नेह, सम्मान, और विश्वास होता है । दोस्ती का मतलब ही है कि जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करें और बदलने की कोशिश न करें। हमारी छोटी-छोटी खुशियों से लेकर बड़ी-बड़ी मुसीबतों में भी जो साथ खड़ा रहे वो होती है दोस्ती । हमारे हजार झगड़े होने के बाद भी मुसीबत मे दौड़कर आता है और गले लगा के कहता है मैं हूं ना सब ठीक हो जाएगा' दोस्ती वो है । दोस्त के पास हर चीज के नुस्खे होते है, बात चाहे किसी और से दोस्ती कराने की हो या दोस्तों के बीच आई दरार को दूर करना हो। इतना ही नहीं ब्रेकअप के लिए भी उनके पास हर अच्छा - बुरा नुस्खा होता है। सबसे खास तो तब होता है जब कोई दुख आता है तो दोस्त दुनिया से लड़ जाने की बात करते हैं। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो इस मतलब भरी दुनिया में बेमतलब साथ रहता है। दोस्ती वो है जो एक भरोसे से शुरू होती है और एक भरोसे से ही खत्म हो जाती है। दोस्ती में अगर कुछ मायने रखता है तो वो सिर्फ 'याराना' है। फ्रेंडशिप डे के अवसर पर युवा पीढ़ी से इस बारे में बात की , कि पहले और अब के समय की दोस्ती में क्या बदलाव आए तो उनका कहना था कि आज के समय में दोस्ती का मतलब बदल चुका है। कृष्ण - सुदामा की दोस्ती की आज भी मिसाल दी जाती है फिर उसके बाद के युग में भी दोस्त ऐसे होते थे जिनकी इतनी अच्छी बॉन्डिंग होती थी कि बचपन की दोस्ती बुढ़ापे तक चलती थी। एक दूसरे के सुख दुख में साथ खड़े होते थे। लेकिन आज दोस्ती के मायने बदल गए हैं । अगर हर मर्ज की दावा दोस्ती है तो, हर कांड की वजह भी दोस्ती बन रही है। हालांकि ऐसे सभी नहीं होते हैं..आज की जनरेशन में भी बहुत से दोस्त ऐसे हैं जिनकी दोस्ती की बॉन्डिंग काफी मजबूत है। लेकिन आज के समय में कुछ दोस्त समय के साथ बदल गए हैं। ऐसा आज की पीढ़ी मानती है। दोस्ती बदलने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। उनमें से कुछ सिर्फ अपने फायदे के कारण दूर चले जाते हैं। कुछ लोग नए दोस्त मिलते ही आपको नजरअंदाज करने लगते हैं। परिस्थितियों के साथ और जब नए सामाजिक लक्ष्य सामने आते हैं तो बदल जाते हैं । यदि दोस्ती गहरे आपसी स्नेह और सम्मान पर नहीं बनी है तो मतभेद होने या पहचान में बदलाव होने पर इसके टिकने की संभावना मुश्किल होती है।
आज के जमाने में किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। सामने वाला व्यक्ति कैसा हो? जो अपने होते है जिन दोस्तों पर भरोसा करते हैं वहीं साथ नहीं देते स्वार्थी होते है और दगाबाजी कर जाते है । जिन पर भरोसा नहीं करते वह दिल के साफ होते है। आज के समय में दोस्त कितना भी खास हो पीठ पीछे आपकी बुराइयां करते हैं। - ललित कुशवाहा, कॉलेज स्टूडेंट,
कोटा विश्वविद्यालय
आज के दौर में दोस्ती एक सीमित दायरे में सिमट के रह गई है। पहले के समय की और अब की दोस्ती में बहुत परिवर्तन आ गया है। पहले दोस्ती दिल से , शिद्दत के साथ निभाई जाती थी। आज दोस्ती में पैसों की तरफ भी देखा जाता है। लेकिन सभी जगह ऐसा नहीं है आज भी कई बहुत सच्चे और अच्छे दोस्त भी है लेकिन , कम है। आजकल दोस्ती में बैकग्राउण्ड देखा जाता है। कहीं-कहीं पर दोस्ती में स्वार्थ भी हावी हो रहा है।
- नमो मीणा, स्टूडेंट, गवर्नमेंट कॉलेज
दोस्ती सभी तरह की है। आज के समय में पहले जैसी बात दोस्तों में नहीं है। पहले के समय में जो दोस्ती में बॉन्डिंग होती थी वैसी कम है। आज स्वार्थ का जमाना आ गया है। पैसा एक ऐसी चीज है उससे रिश्ते खराब ही होते है। आज सोशल मीडिया वाली फ्रेंडशिप है सोशल मीडिया पर दोस्त बनते है। ये दोस्ती सबसे खतरनाक है। इसमें गलत काम होते है। सोशल मीडिया की दोस्ती को कभी मैं फ्रेंडशिप नहीं कहता । वह टेंपरेरी, टाइम पास है। ये दुनिया है इसमें सभी तरह के लोग है। कुछ अच्छे भी है, कुछ खराब भी है, कुछ बहुत अच्छे दोस्त भी है।
- अर्पित जैन, स्टूडेंट एवं प्रेसीडेंट, कॉमर्स कॉलेज
मित्रता गरीबी-अमीरी, बड़े-छोटे का भेद नहीं देखती। मित्रता में छल, कपट भी नहीं होता। आजकल ज्यादातर दोस्ती बस टाइम पास या अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए की जाती है। किसी का आपसे कोई काम पूरा हो सकता है, तो वह तुरंत आपका दोस्त बन जाएगा। वह इतना मीठा बोलेगा, कि आपको लगेगा, इससे अच्छा दुनिया में कोई है ही नहीं, जहां उसका काम निकला, वह तुरंत नौ दो ग्यारह हो जाएगा।
- सौरभ रावल
कॉलेज स्टूडेंट
किसी भी मुश्किल समय में हमें जिस व्यक्ति की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वह दोस्त ही होते हैं। परंतु आज के समय में बहुत कम ही ऐसे होते हैं, जिन्हें हम दोस्त कह सकते हैं। आधुनिकता और स्वार्थ की चकाचौंध ने आज दोस्ती को माध्यम की तरह बना दिया है।
- आशीष कुमार वर्मा
कॉलेज स्टूडेंट
बदलते दौर में दोस्ती के मायनों में बदलाव आया है। आज दोस्ती को दुश्मनी में तब्दील होते वक्त नहीं लगता है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि भागदौड़ भरी जल्दबाजी की दुनिया में हम अक्सर ‘साथी’ को ‘दोस्त’ मान बैठते हैं और फिर उससे दोस्ती की उम्मीद लगा लेते हैं। जबकि ‘साथी’ और ‘दोस्त’ में बहुत फर्क है। स्कूल, कालेज, आफिस इत्यादि जगहों पर साथ रहने वाले लोग साथी हो सकते हैं मगर दोस्त कुछ चुनिंदा लोग ही होते हैं। दोस्ती वो रिश्ता है जो कि दिल से जुड़ता है। जहां बीच में दिमाग ने दस्तक दी, दोस्ती खत्म! ‘दोस्ती’ वो होती है जिसमें हमें सामने वाले की ‘खुशी में छुपा गम’ और ‘गम में छुपी खुशी’ का बखूबी अहसास हो जाए ।
- संदीप शरारे, मेडिकल स्टूडेंट, मेडिकल कॉलेज कोटा
हमारे समय में इतना डेवलपमेंट नहीं था। गिने-चुने दोस्त होते थे। आपस में स्वार्थ नहीं होता था। वादे के पक्के होते थे और उसे निभाते थे। उस समय की दोस्ती ऐसी ही थी। आज हम भी उसी दोस्ती की वजह से आगे बढ़े हैं। मेरा एक दोस्त वकील और एक अकाउंटेंट था। दोनों दोस्तों ने मुझे प्रमोट किया कि तुम काम करो नौकरी छोड़ दो। उन्होंने ही मुझे फाइनेंस किया और काम चालू करवाया। आज की पीढ़ी को जब देखते हैं तो अधिकांशतया दोस्ती मतलब पर टिकी हुई है। आपको सामने वाले से कितना मतलब है उतनी ही दोस्ती रखते है। ये वक्त की बात है। आगे बढ़ना है या दोस्त को कमिटमेंट करना है सही सलाह दो। कभी किसी से गलत कमिटमेंट मत करो। आगे चलकर यहीं दोस्ती में दरार का कारण बनता है।
- बी.एल. जैन, ओनर, ट्रेड सेंटर
आज की पीढ़ी की दोस्ती में काफी बदलाव आ गए है। अब पहले जमाने वाली बात नहीं रही। आज की अधिकतर दोस्ती लालच व स्वार्थ से भरी हुई है। दोस्ती में स्वार्थ की भावना आ गई है। कहीं ना कहीं कुछ स्वार्थ छिपा रहता है। मैंने अधिकतर लोगों में देखा है कि दोस्ती करने से पहले वह अपना स्वार्थ देखते है। फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाते है। आज दोस्ती में स्टेटस देखा जाता है। पहले इस तरह का भेदभाव नहीं था कि यह छोटा है या बड़ा है। कृष्ण और सुदामा में आपस में कितनी भिन्नता थी लेकिन मित्रता के आगे उन्होंने भिन्नता को नहीं दर्शाया । सुदामा को उन्होंने आदर, सम्मान और प्रेम दिया। आज की पीढ़ी के ज्यादातर बच्चों में स्वार्थ व स्टेटस सिंबल को देखा जाने लगा है।
- सुषमा बंसल, प्रेसीडेंट,
रोटरी क्लब पद्मिनी कोटा
आज की पीढ़ी की दोस्ती में तो बहुत परिवर्तन आ गया है। हमारे समय में दोस्ती में प्रेम, सद्भावना थी कोई स्वार्थ नहीं था। किसी तरह का आपस में कॉम्पटीशन नहीं था कि किस तरह के कपड़े पहने है कहां घूमने-खाना खाने जा रहे है, इन चीजों से कोई मतलब नहीं था। साथ आते-जाते थे, पढ़ाई करते थे और एक दूसरे की मदद करते थे। प्रतियोगी परीक्षाओं में मदद करते थे। बताते थे कि यह एग्जाम दे रहे है। आज सब छिपाते है। स्वार्थ आ गया है। पहली क्लास से अभी तक जब मैं रिटायर्ड हो गया हूं तब से जो मित्रता है वह आज भी कायम है। आज की पीढ़ी में यह बात नहीं है। कारण पहले अर्थ युग नहीं था। आज के युग को देखते हुए नई पीढ़ी की अपनी मजबूरियां है। आज की पीढ़ी की दोस्ती स्वार्थ पर, पैसे पर आधारित है। वह देखते है कि सामने वाला कितना पैसे वाला है। उसे उसी हिसाब से इम्पोर्टेन्स दी जाती है। हमारे समय में ऐसा नहीं था। मेरे बचपन के मित्र बहुत बड़े घरों से भी थे लेकिन हम साथ उठते बैठते खाते-पीते थे किसने चाय के पैसे दिए किसने कैंटीन में बिल चुका दिया पता ही नहीं चलता था। आज की दोस्ती में वह चीज नहीं है। बल्कि सामने वाले का खर्चा कराएंगे या स्वयं का ही खर्चा करेंगे।
- विभेष कुमार सोरल, सेवानिवृत, अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी, कोटा

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