विश्व जनसंख्या दिवस विशेष : देश की बढ़ती आबादी को शिक्षित और कुशल बनाना चुनौतीपूर्ण
ज्यादा जनसंख्या होगी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लोगो को नहीं मिलेगी
बढ़ती आबादी के अनुरूप हमारे पास संसाधन नहीं है ऐसे में देश का विकास कैसे होगा।
कोटा। 1.4 अरब लोगों की कुल आबादी के साथ भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश तो बन गया लेकिन यहां बेरोजगारी का बहुत बड़ा संकट है। बढ़ती आबादी के अनुरूप हमारे पास संसाधन नहीं है। ऐसे में देश का विकास कैसे होगा। गुणवत्ता के लोग कैसे उपलब्ध होंगे । देश पूरी तरह से आज भी साक्षर नहीं हुआ और अब डिजिटल साक्षरता का जमाना है...जब आबादी के बहुत बड़े हिस्से के पास शिक्षा नहीं होगी। डिजिटल क्रांति तेजी से आगे बढ़ रही है। नित नई टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र में आगे आ रही है। प्राइवेट से लेकर सरकारी तक सभी काम आॅनलाइन किए जा रहे हैं, लेकिन देश का हर एक नागरिक इस डिजिटल तौर तरीकों से रु ब रु नहीं हो सका है। शहरी इलाकों में भी कंप्यूटर को लेकर लोगों में ज्यादा जानकारी नहीं है। नेशलन सैंपल सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 15 प्रतिशत शहरी जनता में करीब 7.5 प्रतिशत लोगों को ही एक डिवाइस से दूसरा डिवाइस कनेक्ट करने आता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में केवल 4 प्रतिशत लोगों को ही एक डिवाइस से दूसरा डिवाइस कनेक्ट करने आता है।
साक्षरता दर
दुनिया में टेक्नोलॉजी को पल-पल अपडेट किया जा रहा है, फिर भी हमारे देश की साक्षरता की धीमी राह है। हालांकि, भारत की 90% से अधिक आबादी के बीच डिजिटल साक्षरता लगभग न के बराबर है। भारत में औसत साक्षरता दर लगभग 73% है, जो विश्व की औसत साक्षरता दर 84% से कम है। दशकों से मशीनों ने रोजगारों और नौकरियों का संकट पैदा किया हुआ था। अब इनमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस भी जुड़ गया है। नौकरियां गंवाने का खतरा 'ब्लू कॉलर वर्कर्स' तक सीमित था, पर एआई के बढ़ते प्रभुत्व ने 'व्हाइट कॉलर जॉब्स' को भी इसकी जद में ला दिया है।
चीन के पास 90 करोड़ ह्यक्वालिटीह्ण कामगार
वहीं दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश की हैसियत भारत से गंवाने पर भी चीन के पास अब भी 90 करोड़ के करीब क्वालिटी कामगार हैं, जो उसके विकास को तेजी देते रहेंगे। चीन की 1.4 अरब आबादी में काम करने की आयु वाले लोगों की संख्या 90 करोड़ के करीब है चीन में 24 करोड़ से अधिक लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं और कार्यक्षेत्र में आने वाले नौजवानों की औसत शिक्षा अवधि बढ़कर 14 साल हो गयी है। हमें केवल जनसंख्या के आकार पर नहीं बल्कि उसकी जनसंख्या की गुणवत्ता को भी देखना होगा ।''बढ़ती आबादी के बीच गुणवत्ता वाले लोग कैसे देश में होंगे। गुणवत्ता वाले लोग देश में होंगे तभी देश को फायदा होगा अन्यथा बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या विकास को प्रभावित करेगी। एक बड़ी आबादी की वजह से काम करने की क्षमता रखने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या भी खड़ी हो जाती है। इस बड़ी संख्या को रोजगार उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभरेगा। यही हालात रहे तो बेरोजगारी की समस्या भविष्य में एक विकराल रूप ले लेगी। रोजगार की कमी आर्थिक असमानता और गरीबी बढ़ने से एक बड़ी आबादी को शिक्षित और कुशल बनाना चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि समय के साथ जितने लोगों को शिक्षित और कुशल बनाने की जरूरत होगी उतनी क्षमता शैक्षणिक संस्थानों के पास शायद नहीं होगी। इसका सीधा परिणाम यह होगा कि बहुत से लोग अच्छी शिक्षा हासिल नहीं कर पाएंगे और बहुत से लोगों के पास जो कौशल होगा वो नौकरी के बाजार से मेल नहीं खाएगा। ज्यादा जनसंख्या होगी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लोगो को नहीं मिलेगी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है ऐसे में गुणवत्ता वाले लोग कैसे होंगे। किसी देश की जनसंख्या की गुणवत्ता उसके नागरिकों द्वारा अर्जित कौशल निर्माण से निर्धारित होती है। साक्षरता दर सबसे महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि यह लोगों की चेतना को प्रभावित करती है और उनके जीवन की और व्यक्ति की गुणवत्ता को बढ़ाती है।
देश में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में किस तरह हम बढ़ती आबादी के बीच गुणवत्ता और कौशल वाले लोग तैयार कर सकेंगे। विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर यहीं सवाल शहर के लोगों के सामने रखा इस बारे में क्या कहा जानिए उनकी राय।
इसके लिए स्किल डेवलपमेंट होना बहुत जरूरी है। सरकार का स्किल डेवलपमेंट पर फोकस बहुत अच्छा प्रयास है। स्किल इंडिया से संबंधित कोर्सेज हर यूनिवर्सिटी और इंस्टीट्यूशन में ग्रेजुएशन व पोस्टग्रेजुएशन स्तर पर अनिवार्य किया जाना चाहिए। पोस्ट ग्रेजुएशन लेवल तक हर स्टूडेन्ट के पास किसी ना किसी स्किल का जो उसके अंदर है उसका फॉर्मल क्वालिफिकेशन या सर्टिफिकेट या डिप्लोमा जरूर होना चाहिए। जब तक स्किल नहीं है उद्यमिता भी नहीं हो सकती है। बच्चा तभी सशक्त हो सकता है जब उसके अंदर कोई भी हुनर है उसे यूनिवर्सिटी और कॉलेज लेवल पर पहचान मिले। इसके लिए उसे फॉर्मल ट्रेनिंग दी जाए और उसके पास डिग्री या सर्टिफिकेट के रूप में प्रमाण हो। यह अनिवार्य होना चाहिए चॉइस या आॅप्शनल नहीं होना चाहिए। एआई तकनीक अपनी जगह सही है। लेकिन मानवीय योग्यता है उसका जो कौशल है वो कोई भी कंप्यूटर, कोई भी तकनीक, एआई, कोई भी क्लाउड सब्सिडिंग मैच नहीं कर सकता।
- डॉ. अनुकृति शर्मा, डायरेक्टर कौशल विकास केन्द्र, कोटा विश्वविद्यालय, कोटा
हम सबसे युवा राष्टÑ है। यूथ की आबादी सबसे ज्यादा है। मैनपावर दुनिया में चाइना से भी ज्यादा है। आबादी के हिसाब से यह हमारे लिए पॉजिटिव है। धीरे-धीरे साक्षरता देश में बढ़ रही है। डिजिटल साक्षरता में भी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मोबाइल और इंटरनेट यूजर्स भारत में है। साक्षरता व्यवहारिक ज्ञान से होती है जो भारत में सबसे ज्यादा है। एन्टरप्रेन्योरशिप धीरे-धीरे बढ़ रहा है। प्राइवेट सेक्टर बढ़ रहा है। रोजगार की कमी नहीं है। हम पिछड़े किसी भी रूप में नहीं है। गांव-गांव में इंटरनेट व मोबाइल की पहुंच है। जो लोग पढ़ना नहीं जानते वह भी डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं। नई योजनाएं सरकारों ने लागू की हैं जिसमें आराम से लोन लेकर अपना काम शुरू कर सकते है। बहुत जल्दी हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी में खड़े होंगे और बाहरी देशों के लोग हमारे यहां जॉब्स करने आएगें। एआई को बढ़ावा दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब इंसान मशीन का गुलाम बन जाएगा। इन चीजों का सीमित उपयोग होना चाहिए।
-डॉ. भारत मर्मठ, डायरेक्टर, सिद्धि विनायक हॉस्पिटल,कोटा
ह्यूमन राइट्स के प्लेटफॉर्म पर हम समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम करते रहते हैं। मानवाधिकार तो लोगों को अवेयर करता ही है यदि साथ में मीडिया और प्रबुद्ध वर्ग के लोग भी जुड़कर अवेयरनैस ला सकते हैं। स्किल्ड डेवलपमेंट के प्रोग्राम डेवलप किए जाए और उनकी जानकारी दी जाए। आने वाले समय में डिजिटल साक्षरता की ही वेल्यू है। डिजिटल इंडिया की तरफ रूझान बढ़ाया जाए। अवेयरनैस बहुत जरूरी है इतनी जागरूकता के बाद भी अभी भी लोगों में जागरूकता की कमी है लोग बहुत पीछे है। हुनरमंद लोगों की कमी है। आबादी निरंतर बढ़ रही है ऐसे में यह एक बड़ी चुनौती है।
-कुलविन्दर सिंह सेक्खौ, स्टेट प्रेसिडेंट, राजस्थान ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया
यह एक जटिल समस्या है। देश में आबादी बढ़ रही है। औद्योगिकरण के साथ विकास धीमी गति से हो रहा है। साक्षरता देश में बहुत कम है। डिग्रियां लोगों के पास है लेकिन हुनर वाली डिग्री भारतीयों के पास बहुत कम है। शिक्षित युवा देश से बाहर है क्योकि यहां उनको उनकी शिक्षा के अनुरूप सुविधाएं नहीं मिलती है। शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि किताबी ज्ञान पर फोकस दिया जाता है। औद्योगिक शिक्षा या कौशल विकास का अभाव है । हालांकि, अब मेक इन इंडिया से आने वाले समय में कुछ संभावनाएं नजर आती है। देश के उच्च शिक्षित लोग बाहर नहीं जाएं उसके प्रयास करने होगें। उद्योगों का विकास करना चाहिए। शिक्षा को औद्योगिक शिक्षा से भी जोड़ना चाहिए।
-सावित्री गुप्ता, डायरेक्टर, शिव ज्योति सी.सै. स्कूल वल्लभनगर गुमानपुरा,कोटा
बहुत से बच्चे अंडर प्रिवलेज्ड है, चॉल्स में रहते है, सरकारी स्कूल में जाते है, पढ़ते है और बहुत से ऐसे बच्चे है जो स्कूल नहीं जाते है । अभिभावकों की ग्रूमिंग रूलर एरिया में जरूरी है। बदलाव लाना चाहते है तो अंडरप्रिवलेज्ड और ग्रामीण इलाकों पर फोकस करें कि हर चीज को लेकर उनमें जागरूकता हो। उनकी आदतों व स्वच्छता को लेकर जागरूक करें। इसके बाद शिक्षा की बारी आती हैं। बच्चे को किसी भी स्कूल में प्रवेश दिलाएं किस फील्ड में जाना है ,किस क्लास के बाद कौनसी जगह पढ़ना होगा उसकी प्रॉपर सूचना नहीं होगी तो इन बच्चों के सपनों को दिशा भी नहीं मिलेगी। इसके लिए ऐसे लोग आगे आए और ग्रामीण इलाको में जाएं उन्हें मोटीवेट करें इस के लिए सर्टिफिकेट या उनकी जरूरत की कोई भी चीज उनको उपहार के रूप में दे सकते है। ऐसे एरिया में साक्षरता का मिशन अभिभावकों के लिए भी किया जाए। उनको समझाया जाए कि बच्चे की काबिलियत को सही दिशा कैसे दी जा सकती है। जब उनको यह समझ आएगा कि शिक्षा कितनी आवश्यक हैं तो बच्चों को शिक्षा देने के लिए मेहनत करेंगे।
-मीता अग्रवाल, चेयरपर्सन, जेसीआई इंडिया एसएमए जोन-5
Comment List