जानिए राजकाज में क्या है खास?

जानिए राजकाज में क्या है खास?

आज हम बात करेंगे देवदर्शनों की। जब भी किसी पर आपदा आती है, तो अपने देवों के देवरे ढोकते हैं, वे न रात देखते और न ही दिन। कई देवों के घोड़ले तो रातीजगा कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। सूबे में चुनावी जंग तो पौने तीन साल बाद होगी, मगर नंबर वन की कुर्सी के लिए के भगवा वाले भाई लोगों में ऐसा कलह मचा है कि उनको भी देवदर्शनों की शरण लेनी पड़ रही है।

एल एल शर्मा
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अब याद आए देव

आज हम बात करेंगे देवदर्शनों की। जब भी किसी पर आपदा आती है, तो अपने देवों के देवरे ढोकते हैं, वे न रात देखते और न ही दिन। कई देवों के घोड़ले तो रातीजगा कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। सूबे में चुनावी जंग तो पौने तीन साल बाद होगी, मगर नंबर वन की कुर्सी के लिए के भगवा वाले भाई लोगों में ऐसा कलह मचा है कि उनको भी देवदर्शनों की शरण लेनी पड़ रही है। विचारधारा वाले दल में भाजपा और आरएसएस वालों के बीच का कलह रवि को सड़कों पर आया, तो सूबे में चर्चा होना लाजमी है। इस बार मैडम ने अगूणी दिशा के देवताओं को ढोका है, तो आमेर वाले भाईसाहब ने आथूणी में माताजी कीे ढोक लगाई है। पावरगेम के इस चक्कर में बेचारे वर्कर्स के साथ देवताओं के पुजारियों की हालत पतली है, चूंकि उनके देवों की प्रतिष्ठा भी तो दांव लग गई।

समझने वाले समझ गए
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में शुक्रवार को जो कुछ हुआ, उसका दिल्ली तक मैसेज हो गया। होना भी जरूरी था, चूंकि दिल्ली वाले कुछ भाई साहबों ने जोधपुर वाले अशोकजी के आठ महीनों से नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाईसाहब ने भी पानी पी पीकर भरी पंचायत में जो कुछ बोला, उससे सामने वालों की गर्दन नीची हुए बिना नहीं रह सकी। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने के साथ ही सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 बने भगवा के ठिकाने करने पर चर्चा है कि अशोक जी  ने आठ महीने का जवाब मात्र आठ मिनट में देकर जो कुछ किया, उसे समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

होड़ नंबर लेने की
नंबर लेने की होड़ हर क्षेत्र में मचती है। नेतागिरी में इसकी स्पीड कुछ ज्यादा ही होती है। पिछले दिनों जेपीएन भाईसाहब को भी इस होड़ से रूबरू होना पड़ा। सूबे में कमल वालों में चल रही भितरखाने की जंग को थामने आए नड्डा भाईसाहब की अगवानी के लिए अमचे-चमचों के साथ कई नेता एयरपोर्ट पहुंचे। नारे तो एकता का मंत्र देने आए भाई साहब के लगाने थे, लेकिन अमचे-चमचों को आंखों से इशारा मिला कि उनके नारे लगाने के लिए तो हम लोग ही काफी हैं, आप लोग तो हमारी सोचो। बस फिर क्या था, पोर्च भाई साहबों के जिन्दाबाद के नारों से गूंज उठा। यह देख नड्डाजी भी मुस्कराए बिना नहीं रह सके।

चर्चा में साफ छवि
आजकल राज का काज करने वाले भाई लोग एक सूची बनाने में जुटे हैं। लेकिन सूची में तीन-चार से ज्यादा नाम नहीं जुड़ पा रहे। काज निपटाने वाले लंच क्लब में इस सूची पर रोज कवायद कर रहे हैं। सूची भी छोटे-मोटों की नहीं, बल्कि राज करने वाले बेदाग और साफ छवि वाले लोगों की है। केवल 21 लोगों की सूची में से दस को छांटना भी मुश्किल हो रहा है। अब तो वे दूसरे वर्गों की मदद भी ले रहे हैं। हर आने वालों से पूछ रहे हैं कि ऐसे दस मंत्रियों के नाम बताओ जिनकी बेदाग और साफ छवि है।

एक जुमला यह भी
इन दिनों दोनों तरफ वर्कर्स की कोई पूछ नहीं है। उनकी कोई सुनने वाला भी नहीं है, सो अपनी मन की बात चाय की दुकानों पर एक दूसरे को कह कर संतोष लेते हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर तो दु:खड़ा रोने का अंदाज ही कुछ अलग है। वर्कर बोलने लगे हैं कि राज में तो पूछ है नहीं, हमारे तो केवल पुण्यतिथि और जयंतियों के मौके पर फूल चढ़ाने तक सीमित कर दिया। गुजरे जमाने में सरकार के आने पर वर्कर्स का रैळा आता था, अब तो केवल फोटो खिंचवाने वाले चंद चेहरे ही नजर आते हैं। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में भगवा के ठिकाने में भी दास्तान कुछ इसी तरह की है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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