जानिए राजकाज में क्या है खास?

जानिए राजकाज में क्या है खास?

सूबे में इन दिनों अपर क्लास वाले लोगों की नजरें पूर्व दिशा की तरफ टिकी हैं। टिके भी क्यों नहीं, दोनों दलों में जो भी कुछ हो रहा है, उसी दिशा के पानी का कमाल है। हाथ वाले दल में सपोटरा और दौसा वाले मिनेश वंशज भाईसाहबों ने जब से दुबारा जुबान खोली है, तभी से अगुणी दिशा के ठाले बैठे पंडितों को भी काम मिल गया, सो उन्होंने भी कुंडलियां देखना शुरू कर दिया है।

एल एल शर्मा
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नजरें पूर्व की तरफ

सूबे में इन दिनों अपर क्लास वाले लोगों की नजरें पूर्व दिशा की तरफ टिकी हैं। टिके भी क्यों नहीं, दोनों दलों में जो भी कुछ हो रहा है, उसी दिशा के पानी का कमाल है। हाथ वाले दल में सपोटरा और दौसा वाले मिनेश वंशज भाईसाहबों ने जब से दुबारा जुबान खोली है, तभी से अगुणी दिशा के ठाले बैठे पंडितों को भी काम मिल गया, सो उन्होंने भी कुंडलियां देखना शुरू कर दिया है। भगवा वाले भाई लोग पहले से पूर्व और पश्चिम दिशा के फेर में फंसे हुए हैं। पूर्व दिशा वालों के फेर में फंसे उत्तर-दक्षिण दिशा वाले भाई लोगों में चर्चा है कि चाहे कुछ भी हो, छह महीने पहले की तरफ परनाला तो वहीं गिरेगा, जहां शेखावाटी, मारवाड़ और मेवाड़ वाले चाहेंगे।

यह तो होना ही था
सूबे में इन दिनों हाथ वाले भाई लोगों में फिर दो-दो हाथ हो रहे हैं। हाथ भी किसी के छोटे तो किसी के बड़े हैं। जिसका जितना बड़ा हाथ, वह उतना ही सामने वाले के गिरेबान के नजदीक है। दिल्ली वाले रेफरी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि हाथ बड़ा है या सामने वाले खुद ही ऐड़ियों के बल खड़े हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर चर्चा है कि पॉलिटिक्स में ज्यादा उछलकूद करने वाले नेता लंबे नहीं चलते, चूंकि इसमें जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं है। समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

बुरे फंसे मेहमान बन कर
सूबे में डेढ़ दर्जन नेता पिछले आठ महीनों से काफी परेशान हैं। वे न ठीक से सो पा रहे हैं, न ही ही खा-पी पा रहे हैं। और तो और शरीर से काफी दुबले भी हो गए हैं। नेता भी छोटे-मोटे नहीं, बल्कि राज करने वाली पार्टी से ताल्लुकात रखते हैं और असेम्बली के मेम्बर हैं। गुजरे जमाने में सेल्यूट मारने वाले साहब लोग भी इनको देख कर मुंह फेर कर निकलने में ही अपनी भलाई समझते हैं। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि आठ महीने पहले तक दोनों हाथों में लड्डू रखने में माहिर इन भाई लोगों के ग्रह उस दिन से बदल गए, जिस दिन से खास मेहमान बनकर पड़ोसी सूबे में एक महीने तक मौज-मस्ती की थी। छत्तीस के आंकड़े के फेर में फंसे इन भाई लोगों के सामने संकट यह है कि अब तो सामने वाले भी गले लगाने के लिए ना में गर्दन हिला चुके हैं।

तोड़ त्रिया हठ की
भगवा वाली पार्टी में त्रिया हठ के सामने अच्छे-अच्छे की गर्दन झुकी हुई है। तोड़ की तलाश में सूबे से लेकर दिल्ली के नेता माथापच्ची में जुटे हैं। कोई न कोई रास्ता निकलता है कि सुनहरी कोठी से नया शगूफा आ जाता है। दिल्ली वाले भाईसाहब का मानस जब भी सूबे में आने का बनता है, सरदार पटेल मार्ग के बंगला नंबर 51 में हलचल शुरु हो जाती है। चर्चा है कि त्रिया हठ की तोड़ अब सिर्फ निगोसिएशन बचा है। पण्डितजी ने पंचांग देखकर घोषणा की है कि पार्टी की राशि पर अभी मंगल नीचा चल रहा है, जो दंगल करा रहा है। इसका असर भी 26 मई तक है। सो कैसे भी त्रिया को कोप भवन से बाहर निकालो। मंगल का असर कम करने के लिए जाप भी कराओ और तंत्र मंत्र से कहलाओ कि अगले नेता का नाम जो भी दिल्ली से तय हो, उसका चुपचाप समर्थन कर दो और पांच में से एक बन जाओ।

एक जुमला यह भी
आजकल राज का काज करने वालों में एक नई बहस छिड़ी हुई है। बहस का मुद्दा भी वफादारी से जुड़ा हुआ है। लंच क्लब में घण्टों चर्चा होती है कि मातहत कर्मचारी अपने आला अफसरों के बजाय नेताओं के प्रति ज्यादा वफादार हैं। कारण साफ है कि डिजायर सिस्टम में उनको मलाईदार कुर्सी भी तो वो ही संभलवाते हैं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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