बिना सरकार की नजरे इनायत कोटा की बेटियों ने गाड़ा है झंडा

मलखंभ में भी नहीं हैं कोटा की बेटियां पीछे

बिना सरकार की नजरे इनायत कोटा की बेटियों ने गाड़ा है झंडा

बीते कुछ सालों से अन्य खेलों की भांति मलखंभ का भी कोटा की बालिकाओं में काफी के्रज बढ़ा है। बड़ी बात ये भी है कि जहां ये बच्चियां और बालिकाएं मलखंभ की प्रैक्टिस करती हैं वो स्थान छावनी स्थित हरदौल व्यायामशाला मलखंभ में राजस्थान का गढ़ कहा जाता है।

कोटा। हमें राजस्थान सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं हैं। अगर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों की भांति राजस्थान सरकार भी हमारे खिलाड़ियों को सपोर्ट करें, सुविधाएं दे और उनकी प्रैक्टिस की उचित व्यवस्था करें तो हमारे बच्चे उन राज्यों के खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन करके दिखा सकते हैं। ये पीड़ा है कोटा की उस मलखंभ खिलाड़ी की जो कुछ महीनों पहले लगी गंभीर चोट के कारण भले ही प्रैक्टिस से दूर हैं लेकिन माद्दा रखती है कि अगर वो मैदान में नहीं उतरकर प्रदर्शन नहीं कर सकी तो कोच बनकर शहर की बालिकाओं को ऐसा तैयार करें कि कोटा का नाम रोशन करे।  बीते कुछ सालों से अन्य खेलों की भांति मलखंभ  का भी कोटा की बालिकाओं में काफी के्रज बढ़ा है। बड़ी बात ये भी है कि जहां ये बच्चियां और बालिकाएं  मलखंभ की प्रैक्टिस करती हैं वो स्थान छावनी स्थित हरदौल व्यायामशाला मलखंभ में राजस्थान का गढ़ कहा जाता है। बताया जाता है कि साल 2019 से लेकर अब तक इस व्यायामशाला से लगभग 200 बच्चियां और बालिकाएं  मलखंभ   खिलाड़ी होकर निकल चुकी हैं और इनमें से 14 ने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीते हैं। इनमें 4 ने गोल्ड तथा 10 ने सिल्वर मेडल हासिल किए हैं।  

मलखंभ प्रतियोगिता में कोटा को पहला मेडल 2019 में उज्जैन में आयोजित राष्ट्रीय  मलखंभ  प्रतियोगिता में रोनक राठौड़ ने दिलवाया था। जिसने कांस्य पदक हांसिल किया और बाद में इसी प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल भी जीता था।  ये प्रतियोगिता तीन वर्गाें में विभाजित होती है। कांस्य पदक राठौड़ ने व्यक्तिगत तथा गोल्ड आल राउंड टीम में जीता था। इसी प्रतियोगिता में कोटा की दूसरी खिलाड़ी हेमकंवर सिसोदिया नेभी गोल्ड मेडल प्राप्त किया था। इसी प्रकार इसी हरदौल व्यायामशाला की एक ओर बालिका किरण मीणा ने राज्य स्तरीय  मलखंभ  प्रतियोगिता में गोल्ड तथा इंटर कॉलेज प्रतियोगिता में गोल्ड तथा कांस्य पदक प्राप्त किए हैं। कुछ समय पहले एक दुर्घटना में इस खिलाड़ी के पैर में गंभीर चोट आई थी और उसके बाद ये  मलखंभ  में अपना बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाई है। ये कहती है कि खेल कोई सा भी हो खतरा तो सब में रहता ही हैं। 

बहुत कठिन खेल
मलखंभ के लिए लड़कियों को प्रक्टिस करवाने वाले कोच गोपाल सिसोदिया बताते हैं कि बीते कुछ सालों से शहर की बच्चियों का इस खेल के प्रति काफी रूझान बढ़ा है जबकि ये बहुत कठिन खेल है। इसमें अगर खिलाड़ी का मलखभ पर सन्तुलन बिगड़ा और वो गिर गया तो उसके गंभीर चोट लग सकती है या उसकी मृत्यु भी हो सकती हैं। वो कहते हैं कि कुछ समय पहले तक इस खेल में महाराष्टÑ और एमपी का ही दबदबा रहता था लेकिन अब ऐसा नहीं है।  राज्य सरकार ने साल 2022 में पहली बार मलखंभ को स्कूली गेम प्रतियोगिता में शामिल किया था और उसके बाद दिसम्बर में जोधपुर में आयोजित स्कूली गेम प्रतियोगिता में कोटा की दो टीमें गई थी। इनमें से एक टंीम में 17 साल तक की लड़कियां जबकि दूसरी टीम में 19 वर्ष तक की लंड़कियां शामिल थी। इन दोनों ही आयु वर्ग की टीमों ने इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल हांसिल किया था। राजस्थान सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिलने के बाद भी देश में राजस्थान की टीम 5वें नम्बर पर रही है और राजस्थान की टीम में 6 खिलाड़ी कोटा के हैं। इनमें से 4 लड़कियां और 2 लड़कें हैं।

ये है मलखंब
मलखंब एक सीधे खड़े खंभे पर किया गया हवाई योग या जिमनास्टिक का रूप है। इतिहास के पन्नों  पर मलखंब प्राचीन मार्शल आर्ट का एक रूप है। जिसका उपयोग पहलवानों और प्राचीन युग के योद्धाओं को ट्रेनिंग में सहायक के रूप में किया जाता था। 'मल' का शाब्दिक अर्थ है कुश्ती और 'खंभ का अर्थ है खंभा। दोनों शब्द मिलकर मलखंभ बनते हैं, जिसका अर्थ है खंभे पर कुश्ती। पहलवान और योद्धाओं ने मार्शल आर्ट ट्रिक्स को सफल बनाने के लिए प्रशिक्षण उपकरण के रूप में पोल का इस्तेमाल किया, जिसे वे बाद में रिंग या युद्ध के दौरान मैदान में विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते थे।

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मलखंब का इतिहास
मलखंब के बारे में प्राचीन भारतीय महाकाव्यों जैसे रामायण, प्राचीन चंद्रकेतुगढ़ मिट्टी के बर्तनों में पाए जा सकते हैं जो एक शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा भारत में बौद्ध चीनी तीर्थयात्रियों के किताबों में भी इसका उल्लेख है। मलखंब का सबसे पहला प्रत्यक्ष वर्णन 12वीं शताब्दी की शुरूआत में मानसोलस नामक पाठ में पढ़ा जा सकता है, जिसे चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वारा लिखा गया था। उन्होंने उस समय वर्तमान के दक्षिण भारत में शासन किया था। 1600 के दशक के अंत से 1800 के दशक की शुरूआत तक, कला कुछ हद तक निष्क्रिय रही। उसके बाद बलमभट्ट दादा देवधर, महान मराठा राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपनी पेशवा की सेना को प्रशिक्षित करने के लिए कला को पुनर्जीवित किया। मराठा साम्राज्य की हस्तियां लक्ष्मीबाई, झांसी की रानी, तांत्या टोपे और नाना साहब ने मलखंभ का अभ्यास किया था। इस प्रशिक्षण ने संतुलन, निपुणता और अनुशासित रहने में मदद की और विशेष रूप से मराठा योद्धाओं के अनुकूल थी, जिन्हें गुरिल्ला युद्ध के अग्रदूत के रूप में जाना जाता था।मराठा साम्राज्य के दौरान मलखंभ की लोकप्रियता ने भारतीय राज्य महाराष्ट्र को कला रूप का केंद्र बना दिया।

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इनका कहना हैं
एकाग्रता के मामले में लड़कियां लड़कों से बेहतर साबित होती है। इस खेल के प्रति 5-6 साल की बच्चियों में भी काफी रूझान रहा है। कोटा की बच्चियां बीते 8 सालों से इस खेल में मेहनत कर रही हैं। हरदौल व्यायामशाला को मलखम्भ में राजस्थान का गढ़ कहा जाता हैं। जहां तक संभव होता हैं मैं बच्चियों की प्रैक्टिस में कोई कमी नहीं आने देता हूं। व्यायाम शाला की लड़कियों ने इस खेल में स्टेट और राष्टÑीय लेवल पर शानदार प्रदर्शन किया हैं। 
-गोपाल सिसोदिया, राष्टÑीय रेफरी, कोटा जिला मल्लखंभ सचिव।  

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मैं कुश्ती की तैयारी के लिए अखाड़े में गई थी तो वहां 5 साल के बच्चों को मल्लखंब करते देखा और उसी समय तय किया कि मैं बजाय कुश्ती के इस खेल में मेहनत करूंगी। उस अखाड़े में मैने मलखंब का नाम सुना था। लगभग 5 से 6 घंटे प्रैक्टिस की है। परिवार वालों ने पूरा सपोर्ट किया है। बचपन से ही अच्छा प्लेयर बनने का सपना था। चोट के कारण अगर आगे मैदान में प्रदर्शन नहीं कर सकी तो बच्चियों को आगे बढ़ाने का प्रयास करूंगी। 
-किरण मीणा, मलखंब खिलाड़ी। 

मैं लगभग 3 साल से प्रक्टिस कर रही हूं। पुराना खेल होने के कारण इसके प्रति आकर्षित हुई। करीब 3 घंटे रोजाना प्रैक्टिस करती हूं। कक्षा 7 में पढ़ रही हूं। खेल और पढ़ाई को दिए जाने वाले समय में सामंजस्य बनाकर चल रही हूं। परिवार वालों की ओर से कोई मनाही नहीं हैं, उल्टा वो तो हमेशा यही कहते हैं कि खेल सको जितना खेलो।
-नव्या बंसल,मलखंब खिलाड़ी। 

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