फुटबाल में भी परचम फहरा रही हैं कोटा की लाडलियां

परिजनों का भी मिलता है पूरा सहयोग, प्रशिक्षकों ने कहा लड़कों से भी बेहतर प्रदर्शन कर रही है बेटियां

फुटबाल में भी  परचम फहरा रही हैं कोटा की लाडलियां

कोटा में महिला फुटबाल का अन्तरराष्टÑीय फ्रेंडली मैच 1975 में भारत और जर्मनी की टीमों के बीच खेला गया था लेकिन कोटा की बेटियों में फुटबाल की शुरूआत इस फ्रेंडली मैच के करीब 10 साल बाद यानि वर्ष 1985 में की थी। उस समय तो कोटा में गिनती की लड़कियां फुटबाल खेला करती थी इसके बाद धीरे-धीरे यहां की बेटियों में इस खेल को लेकर जुनून बढ़Þता गया और अब कोटा में इनकी संख्या काफी बढ़ गई है।

कोटा। फुटबाल दुनिया के उन खेलों में शुमार है जिसमें एक खिलाड़ी को सर्वाधिक स्टेमिना की जरुरत है क्योंकि इस खेल में खिलाड़ी को 90 मिनट तक लगतार मैदान में दौड़ना होता है लेकिन इस खेल में भी कोटा की बेटियों ने राष्टÑीय और अन्तराष्टÑीय स्तर पर अपने झंडे गाडे हैं। इतना ही सालों पहले यहां के एक ही परिवार की तीन या चार बेटियों ने इस खेल में काफी नाम कमाया और ना केवल परिवार का बल्कि शहर और देश का नाम रोशन किया हैं। ये बात तो सालों पहले कि है लेकिन जैसे-जैसे समय बीता यहां के मैदानों पर प्रैक्टिस करने वाली लड़कियों ने हर स्तर पर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई हैं। शहर में फुटबाल अकादमी प्रारम्भ होने और हाल ही में स्कूली गैम्स में इस खेल को शामिल करने के बाद लड़कियों में इस खेल को लेकर रूचि और बढ़ी है। फुटबाल में कोटा को पहला पदक कांस्य के रूप में साल 1987 में बिहार के सासाराम में हुई सब-जूनियर प्रतियोगिता में मिला था। बताया जाता है कि कोटा की करीब 150 से 200 लड़कियों ने फुटबाल में महारत हांसिल की है और इनमें से आज कई स्पोटर्स कोटे से सरकारी नौकरी कर रही है। वर्तमान समय में भी 75 से 100 लड़कियां श्रीनाथपुरम, उम्मेदसिंह स्टेडियम तथा कुन्हाड़ी के विजयवीर स्टेडियम में रोजाना सुबह-शाम लगभग 4 से 5 घंटे फुटबाल के मैदान में पसीना बहा रही हैं। इसके इलावा कोटा में राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद के क्षेत्रीय खेलकूद प्रशिक्षण केन्द्र में भी कोटा के अलावा अन्य जिलों की चयनित बालिकाओं को फुटबाल की टेÑनिंग दी जा रही है। मीनू सोलंकी, हिमांशु सोलंकी, लक्की सोलंकी, जूही सिंह, नेहा हाड़ा, मनमीत कौर, मोनिका जादौन तथा प्रिया रानी सहित कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने फुटबाल में अपना नाम कमाया है। इनमें से कुछ ने तो अन्तरराष्टÑीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की है। 

जानकार बताते हैं कि यूं तो कोटा में महिला फुटबाल का अन्तरराष्टÑीय फ्रेंडली मैच 1975 में भारत और जर्मनी की टीमों के बीच खेला गया था लेकिन कोटा की बेटियों में फुटबाल की शुरूआत इस फ्रेंडली मैच के करीब 10 साल बाद यानि वर्ष 1985 में की थी। उस समय तो कोटा में गिनती की लड़कियां फुटबाल खेला करती थी उनमें भी अधिकांश वे ही थी जिनके पिता या अन्य परिजन इस खेल से जुड़े हुए थे। इनके पिता अपनी बेटियों को खेल के मैदान में ले जाते थे। इसके बाद धीरे-धीरे यहां की बेटियों में इस खेल को लेकर जुनून बढ़Þता गया और अब ये कोटा में इनकी संख्या काफी बढ़ गई है। 

इनको प्रशिक्षण देने वालों का कहना हैं कि कोटा की लड़कियों ने बीते कई सालों से इस खेल में काफी मेहनत की है और इसका परिणाम भी उनको मिला है। लड़कियों के परिजन भी उनको खूब सहयोग किया है। इस खेल से लड़कियां निडर बनती हैं, वे आत्मनिर्भर बनती है। प्रशिक्षक बताते हैं कि बीते कुछ सालों में राष्टÑीय स्तर पर भले ही कोई मेडल यहां की बेटियां हांसिल नहीं कर पाई हो लेकिन राज्य स्तर पर होने वाली किसी भी फुटबाल प्रतियोगिता में तो हर साल गोल्ड, सिल्वर और कांस्य पदक लेकर आती ही है। इससे कम तो इनको मंजूर ही नहीं है। वो बताते हैं कि हम तो खुद खेल के बूते पर आज इस मुकाम को हांसिल कर पाए हैं। पहले फुटबाल ओपन खेली जाती थी लेकिन अब स्कूली गैम्स में शामिल कर लिया गया है जिससे लड़कियों को ज्यादा खेलने और कम्पीटिशन का मौका मिलने लगा है। यहां की लड़कियों ने अन्डर-14, अन्डर-17 और अन्डर 19 आयु वर्ग में प्रदर्शन किया है। 

कोटा के आकाशवाणी क्षैत्र में एक फुटबाल अकादमी भी है। जहां लड़कियों को चयन होने के बाद प्रवेश दिया जाता है। इस फुटबाल अकादमी में साल 2018 से ही कोटा में राज्य के विभिन्न जिलों की फुटबाल खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हर साल 1 से 15 मई के बीच जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में राज्य के कई जिलों की लड़कियों के बीच इस अकादमी में प्रवेश के लिए चयन प्रतिस्पर्द्धा होती है। अकादमी में प्रवेश के बाद लड़कियों को रहने-खाने और शिक्षा की सुविधा सरकार की ओर से नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाती है। वर्तमान समय में इस अकादमी में लगभग 2 दर्जन लड़कियां हैं। खेल के साथ-साथ शिक्षा भी पूरी कर रही है।  

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लड़कियां फुटबाल के मैदान पर नियमित रूप से पसीना बहा रही है। वे लड़कों से बेहतर खेल रही है। इस खेल में ही नहीं हर खेल में लड़कियों का भविष्य अच्छा हैं। कोटा की 150 से 200 लड़कियों ने फुटबाल में अपनी पहचान बनाई है। इनके माता-पिता का भी अच्छा सहयोग इनको मिलता है। 
-मीनू सोलंकी, फुटबाल प्रशिक्षक, कोटा। 

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बीते कुछ सालों में कोटा की बेटियों में फुटबाल का क्रेज काफी बढ़ा है। यहां की बेटियों ने राष्टÑीय और अन्तरराष्टÑीय स्तर पर मेडल जीते हैं। इनके परिवार वाले इनको पूरा सपोर्ट करते हैं। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा खेले। लड़कियां सुबह-शाम फुटबाल मैदान में मेहनत कर रही है। 
-मधु चौहान, फुटबाल कोच। 

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बचपन से ही फुटबाल खेलने का शौक रहा है। वर्ष 2015 से फुटबाल प्रतियोगिताओं में भाग होने लगी थी। राष्टÑीय स्तर पर पंजाब में मेडल जीता है। सामान्य तौर पर दो से ढ़ाई घंटे रोजाना प्रैक्टिस करती हंू लेकिन किसी भी प्रतियोगिता के तीन महीने पहले से अभ्यास का समय जस्ट डबल हो जाता है। माता-पिता का पूरा सहयोग मिला है।                                             
-जूही सिंह, फुटबाल खिलाड़ी। 

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