बेटियों ने चन्द वर्षों में ही राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में पहचान बनाई

नहीं पड़ता अभ्यास का पढ़ाई पर कोई फर्क, बेटियों ने कहा, बहुत सपोर्ट करते हैं कोच और माता-पिता

बेटियों ने चन्द वर्षों में ही राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में पहचान बनाई

हॉकी में यहां की लड़कियों का भविष्य संवारने के लिए स्वयं ये लड़कियां ही नहीं बल्कि इनके परिजन और इनकों प्रशिक्षण देने वाले कोच के साथ जिला हॉकी संघ के पदाधिकारी भी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।

कोटा। हमारे शहर में लड़कियों ने भले ही बीते कुछ सालों में हॉकी खेलना शुरू की हो लेकिन चंद सालों में ही दो या तीन लड़कियों की प्रैक्टिस से शुरू हुए इस खेल से आज दर्जनों लड़किया जुड़ चुकी है। इतना ही नहीं इन बीते चार-पांच सालों में लगभग 40-35 लड़कियां राज्य स्तर पर खेल चुकी हैं और अभी हाल ही में यहां की एक लड़की याशिका राजावत राज्य की टीम में शामिल होकर छत्तीसगढ़ के राजानंद गांव में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रही जूनियर बालिका वर्ग में खेलने के लिए गई है। ये प्रतियोगिता आने वाले 1-2 दिन में प्रारम्भ होगी। बड़ी बात तो है कि कोटा की इन लड़कियों को हॉकी की प्रैक्टिस करवाने के लिए जिला हॉकी संघ को आज तक सरकार की ओर से कोई ग्राउंड उपलब्ध नहीं करवाया गया है। हां, आश्वासन हर जगह से मिले हैं। हॉकी में यहां की लड़कियों का भविष्य संवारने के लिए स्वयं ये लड़कियां ही नहीं बल्कि इनके परिजन और इनकों प्रशिक्षण देने वाले कोच के साथ जिला हॉकी संघ के पदाधिकारी भी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इन प्रशिक्षकों में विनोद कुमार शिक्षा विभाग की ओर से जवाहर लाल नेहरू स्कूल, यशपाल शर्मा, शारीरिक शिक्षक मल्टीपरपज स्कूल और रेल्वे वर्कशॉप ग्राउंड पर प्रशिक्षण देने वाले हर्षवर्द्धन सिंह शामिल हैं। ये प्रशिक्षक बताते हैं कि कोटा में बीते पांच सालों यानि वर्ष 2018 से ही लड़कियों ने हॉकी खेलना शुरू किया है और शहर के गिने-चुने ग्रांउड पर सुबह-शाम जमकर मेहनत कर रही है। ये बताते हैं कि कोटा में लड़कों की हॉकी टीम तो सालों से नाम कमाती आई है लेकिन ये बहुत अच्छी बात है कि महज कुछ सालों में ही यहां की लड़कियों ने राज्य और राष्टÑीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना शुरू कर दिया है। 

वर्तमान समय में शहर के शहर के रल्वे वर्कशॉप ग्राउंड पर लगभग 2 दर्जन, कुन्हाड़ी के विजयवीर ग्राउंड पर करीब 1 दर्जन और  कुछ लड़कियां श्रीनाथपुरम स्टेडियम पर अभ्यास के लिए जाती हैं लेकिन इनमें से केवल रेल्वे वर्कशॉप के ग्राउंड पर बना मैदान ही इस लायक है कि ढंग से अभ्यास किया जा सके। फिलहाल गुमानपुरा स्थित मल्टीपरपज स्कूल की ओर से स्कूल में ग्रास का हॉकी ग्राउंड बनाया जा रहा है जो जल्द ही बनकर तैयार होने वाला है। यहां पर स्कूल की हॉकी खिलाड़ियों को ढंग से प्रशिक्षण दिया जा सकेगा। जिला हॉकी संघ के सदस्य  कहते हैं कि हॉकी खेलने वाली यहां की बेटियों को सरकार की ओर से कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा रही हैं। जो भी संभव हो पाता है संघ ही करवा रहा है। संघ की ओर से लड़कियों को प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है, किट उपलब्ध करवाया जा रहा है और नेशनल तथा स्टेट खेलने के लिए भेजा जा रहा है। कोटा की बेटियों को इस खेल में पारंगत बनाने में लगे लोग बताते हैं कि हॉकी खेल का गढ़ रहा है। यहां से ओलंपियन और राष्टÑीय स्तर के खिलाड़ी तो तैयार हुए हैं लेकिन उनके और यहां की बेटियों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए उसके लिए सालों से जद्दोजहद जारी है। यदि प्रोत्साहन और कृत्रिम घास का मैदान मिले तो यहां के खिलाड़ी फिर से सिरमौर बन सकते हैं। हॉकी के कई खिलाड़ी देने के बाद भी प्रोत्साहन की दरकार है। ये बताते हैं कि कोई जमाना था जब यहां गली-गली में हॉकी का बोलबाला था। खासकर स्टेशन क्षेत्र और रेल्वे के इलाकों में तो बच्चा-बच्चा हॉकी का दीवाना था। खिलाड़ी इतने थे कि यहां के क्लबों की एक नहीं दो टीम प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए जाया करती थी। 

यहां की लगभग 50 लड़कियां स्टेट खेल चुकी हैं। यहां की लड़कियों के इनके माता-पिता भी खूब सपोर्ट मिलता है। लड़कियां खूब मेहनत कर रही है। हां, ये बात जरुर है कि लड़कियों की इस खेल में नई स्टेज है तो उनको समझाने में थोड़ा समय लगता है लेकिन ये लड़कों से सिर्फ शारीरिक संरचना में अलग है बाकी किसी में कम नहीं है। परीक्षा के दिनों की बात छोड़ दे तो कोटा की बेटियां प्रतिदिन दो से तीन घंटे अभ्सास करती हैं। 
-हर्षवर्द्धन सिंह चूड़ावत, हॉकी कोच, राज्य सरकार। 

सरकार की ओर से कुछ भी नहीं मिल रहा है। हम कई सालों से यहां की लड़कियों के लिए हॉकी का ग्राउंड उपलब्ध करवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। हॉकी संघ का कोई ग्राउंड नहीं है। पहले क्रीड़ा परिषद में था लेकिन उसके इंडोर स्टेडियम बदलने के बाद वो भी हट गया। जहां तक हो सकता है हॉकी खेलने वाली हर बेटी को सहयोग कर रहे हैं। 
-सुमेर सिंह, सचिव, जिला हॉकी संघ, कोटा। 

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एक साल से खेल रही हूं। माता-पिता ने खूब सहयोग किया है। कभी खेलने के लिए मना नहीं किया। उल्टा खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लगभग तीन से चार घंटे अभ्यास करती हूं। प्रैक्टिस का पढ़ाई का कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोच सर का पूरा सपोर्ट करते है। 
-सिमरन, हॉकी खिलाड़ी। 

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मैं 2 सालों से हॉकी खेलद रही हूं। रेल्वे वर्कशॉप ग्राउंड पर लगभग 2 घंटे कोच सर के निर्देशन में अभ्यास करती हंू। धनराज पिल्लई को अपना आदर्श मानकर हॉकी खेल रही हंू। मेरी इच्छा है कि मैं अन्तरराष्टÑीय स्तर पर भारतीय टीम की ओर से खेलू। मम्मी-पापा बहुत सपोर्ट करते हैं। 
-मुस्कान, हॉकी खिलाड़ी। 

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