निगम बोर्ड की बैठक बनी बोतल में बंद जिन्न

हंगामा अधिक, जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं

निगम बोर्ड की बैठक बनी बोतल में बंद जिन्न

दोनों निगमों का गठन होने के बाद अभी तक सिर्फ फरवरी में बजट से पहले ही बोर्ड की बैठकें हुई है।

कोटा। नगर निगम की बोर्ड बैठक जिम्मेदारों के लिए झंझट साबित हो रही है। बैठक में दोनों पार्टियों के पार्षदों के बीच इतना हंगामा होता है कि जिम्मेदार इस बोतल में बंद जिन्न को निकालना पसंद ही नहीं करते। ऐसे में हर तीन माह में बुलाई जाने वाली बैठक अब औपरिकता पूर्ण करने को साल में एक ही बार बुलाई जा रही है। नगर निगम जनता से जुड़े मुद्दों का विभाग है। आमजन का सबसे अधिक काम भी इसी विभाग से रहता है। जनता के प्रतिनिधि के रूप में पार्षदों को निगम में चुनकर भेजा गया है। लेकिन हालत यह है कि दो नगर निगम बनने के बाद भी जनता के मुद्दों पर तो चर्चा ही नहीं हो रही है। नगर निगम बोर्ड की बैठक भी साल में मात्र एक बार बजट से पहले हो रही है। यहां तक कि समितियों का गठन तो कर दिया उनकी बैठक में गठन के बाद से एक-एक बार ही हुई है।

कोटा में पहले जहां एक ही नगर निगम थी और वार्डों की संख्या 65 थी। परिसीमन के बाद कोटा उत्तर व दक्षिण दो नगर निगम बना दिए। वार्डों की संख्या पहले से ढाई गुना अधिक बढ़ाकर 150 कर दी गई। कोटा उत्तर निगम में 70 व दक्षिण निगम में 80 वार्डों को शामिल किया गया। दोनों नगर निगमों का गठन नवम्बर 2020 में हो गया था। दोनों निगमों में कांग्रेस के बोर्ड हैं। कोटा उत्तर में तो कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत है जबकि कोटा दक्षिण में बराबरी का मामला है। नगर पालिका अधिनियम के तहत हर 60 से 90 दिन के भीतर साधारण सभा(बोर्ड) की बैठक होना आवश्यक है। जिससे उन बैठकों में जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो सके। लेकिन हालत यह है कि दोनों निगमों का गठन होने के बाद अभी तक सिर्फ फरवरी में बजट से पहले ही बोर्ड की बैठकें हुई है। उनके अलावा अभी तक अन्य बैठक नहीं हुई है। दोनों निगमों की अंतिम बोर्ड बैठक कोटा दक्षिण की 4 फरवरी को और कोटा उत्तर की 8 फरवरी को हुई थी। नगर निगम में साधारण सभा की बैठकें निर्धारित समय पर नहीं होने से जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पा रही। जनता के मुद्दे निगम से गौण हो रहे हैं। 

दक्षिण में समितियां बनाई लेकिन काम नहीं
नगर निगम कोटा दक्षिण में बोर्ड गठन के काफी समय बाद 22 समितियों का गठन तो कर दिया।  लेकिन उन समितियों में से गिनती की ही समितियां काम कर रह हैं। यहां तक कि समितियों के गठन के बाद से अभी तक अधिकतर समितियों की भी एक -एक बैठक ही हुई है। जिससे समिति के अध्यक्ष व समितियां काम नहीं कर पा रही हैं।  उप महापौर व सफाई समिति के अध्यक्ष पवन मीणा बरसात से पहले नालों की सफाई करवा रहे हैं। 

कोटा उत्तर में तो समितियों का गठन ही नहीं
नगर निगम कोटा दक्षिण में तो समितियों गठित भी कर दी गई है। लेकिन कोटा उत्तर में तो अभी तक भी समितियेों का गठन ही नहीं किया गया।  स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री कोटा के होने के बावजूद उनके निगम क्षेत्र में ही बोर्ड गठन के ढाई साल बाद भी समितियां नहीं बन सकी है। 

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सफाई, गौशाला व निर्माण समेत कई मुद्दे
नगर निगम शहर में सफाई से लेकर अतिक्रमण हटाने तक और गौशाला में गायों की देखभाल से लेकर निर्माण समेत कई मुद्दों पर काम करती है। जनता को राहत देने का काम निगम द्वारा किया जाता है। जनता के मुद्दों पर काम करने के लिए उनका विभाजन कर समितियों को अधिकृत किया गया है। लेकिन समितियों के अध्यक्ष काम ही नहीं कर पा रहे हैं। शहर में सफाई हो या गैराज की व्यवस्था। अतिक्रमण हटाना हो या निर्माण की स्वीकृति देना। अधिकतर काम निगम के अधिकारी अपने स्तर पर ही कर रहे हैं। उनमें न तो पार्षदों की भागीदारी बन पा रही है और न ही समितियों को जानकारी दी जा रही है और न ही उनसे सलाह ली जा रही है। 

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समिति अध्यक्षों की पीड़ा
नगर निगम कोटा दक्षिण की अधिकतर समितियों के अध्यक्षों की पीड़ा है कि सरकार ने समितियों का गठन कर उन्हें काम करने का मौका दिया है। लेकिन निगम के अधिकारी न तो समितियों की बैठकें कर रहे हैंं और न ही उनके अनुभाग से संबंधित कामों की जानकारी दे रहे हैं। गौशाला समिति के अध्यक्ष जितेन्द्र सिंह का कहना है कि वे अपनी मर्जी से निगम में सुधार के प्रयास कर रहे हैं। अधिकािरयों को उसकी चिंता नहीं है। समिति गठन होने के बाद मात्र एक बार बैठक हुई है। अधिकािरयों को कई बार बैठक बुलाने के लिए पत्र लिख चुके हैं। अतिक्रमण निरोधक समिति के अध्यक्ष पी.डी. गुप्ता का कहना है कि उनकी समिति की तो एक भी बैठक नहीं हुई। अधिकारी व कर्मचारी अतिक्रमण हटाने के बाद उन्हें जानकारी देते हैं। बैठक हो तो समिति सदस्य  अधिकारियों को जानकारी दें और उनके द्वारा किए जा रहे काम की जानकारी ले सके। निर्माण समिति के अध्यक्ष मोहम्मद इसरार का कहना है कि उनके अनुभाग की एक बैठक हुई है। अधिकारी उनके अनुभाग में क्या कर रहे हैं पता ही नहीं चल रहा। समिति सदस्य अपनी बात अधिकारियों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। 

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स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ रहे
हालत यह है कि पिछले कई सालों से कोटा नगर निगम स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ रहा है। शहर को साफ रखने में निगम अधिकारी पार्षदों व जनप्रतिनिधियों से न तो सुझाव ले रहे हैं और न ही उन्हें जानकारी दे पा रहे हैं। जिससे पार्षदों व आमजन की सर्वेक्षण में भागीदारी नहीं हो पा रही है। इस बार भी स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 के लिए केन्द्रीय टीम के कोटा आने का कार्यक्रम प्रस्तावित है। लेकिन अभी तक निगम की तैयारियों के संबंध में किसी तरह की जानकारी पार्षदों को नहीं दी गई है। 

इनका कहना है
नगर निगम बोर्ड की बैठक हर दो माह में होना आवश्यक है। जिससे बैठक में पार्षद जनता के मुद्दों पर चर्चा कर सके। अधिकारियों को समस्याओं की जानकारी दे सके। लेकिन अधिकारी पार्षदों का सामना नहीं करना चाहते जनता के मुद्दों पर चर्चा नहीं करना चाहते। हालत यह है कि पिछली बोर्ड बैठक की प्रोसीडिंग ही तीन महीने बाद आई है। बैठक समय पर कैसे हो पाएगी। जबकि बरसात से पहले नालों की सफाई और स्वच्छता सर्वेक्षण समेत कई मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए। 
-विवेक राजवंशी, नेता प्रतिपक्ष, नगर निगम कोटा दक्षिण

नगर पालिका अधिनियम में तो हर 60 दिन में बोर्ड की बैठक करना आवश्यक है। बोर्ड बैठक में सभी पार्षद एक साथ जनता के मुद्दे अधिकारियों को बता सकते हैं। लेकिन साल में एक बार ही बोर्ड बैठक हो रही है। इसका कारण बोर्ड बैठकों की प्रोसीडिंग ही समय पर तैयार नहीं कर रहे। बिना प्रोसीडिंग के बैठक करने का भी कोई मतलब नहीं है। बोर्ड बैठक करना ही पर्याप्त नहीं है। उनमें लिए गए निणयों की पालना भी होनी चाहिए। 
-राजीव अग्रवाल, महापौर, नगर निगम कोटा दक्षिण

नगर निगम में जनता के मुद्दों पर ही काम हो रहा है। नालों की सफाई हो या स्वच्छता सर्वेक्षण की तैयारी की जा रही है। जहां तक बोर्ड बैठक का सवाल है उस पर भीअधिकारियों से चर्चा कर शीघ्र ही करवाने का प्रयास किया जाएगा। 
-मंजू मेहरा, महापौर, नगर निगम कोटा उत्तर 

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