ओपीडी में मरीजों को कतार में खड़ा रहना पड़ता है घंटों, तब बनती है पर्ची

अव्यवस्थाओं का सबसे बड़ा कारण चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का अभाव

ओपीडी में मरीजों को कतार में खड़ा रहना पड़ता है घंटों, तब बनती है पर्ची

मरीजों को राहत देने के लिए एमबीएस अस्पताल में ही नया ओपीडी ब्लॉक भले ही बना दिया गया हो लेकिन हालात वहां भी पुरानी ओपीडी से ज्यादा ठीक नहीं है।

कोटा। सालों पहले ऋतिक रोशन अभिनीत कोई फिल्म में फिल्माया गया गाना इधर चला मैं उधर चला ना जाने में किधर चला इन दिनों एमबीएस अस्पताल में उपचार एवं परामर्श के लिए आने वाले व्यक्ति पर बिल्कुल सही प्रतीत हो रहा है। नई और पुरानी ओपीडी के चक्कर काटते-काटते इलाज के लिए आने वाला मरीज और उसके तीमारदार इतने परेशान हो रहे हैं कि बरबस ही उनके मुंह से निकल रहा है इससे अच्छा तो पुरानी बिल्डिंग ही थी जहां सब कुछ नीचे ही था और ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता था। अस्पताल में आने वाले मरीज और तीमारदार को सबसे पहले तो ये जानना होता है कि उसे पर्ची बनवानी कहा पर हैं। पर्ची बनवाने के लिए वो नई ओपीडी में पहुंचता है और काफ लम्बी कतार में लगने के बाद जब पर्ची बनती है और वो चिकित्सक को दिखाने के लिए ऊपरी तल पर पहुंचता है तो चिकित्सक जैसे ही उसे कोई जांच करवाने के लिए कहता हैं मरीज और उसके तीमारदार का मुंह देखने लायक होता है और ऐसा होना लाजमी भी हैं क्योंकि सबसे पहले तो उसे वापस नीचे आकर केश काउन्टर पर जांच की पर्ची बनवानी होगी और उसके बाद अगर एक्स-रे लिखा है तो फिर से पुरानी ओपीडी में आना होगा। 

यूं होता है घनचक्कर
अगर मरीज खुद चल फिर सकता है तो फिर भी ठीक है लेकिन मरीज को पैर में चोट है या वो चल नहीें सकता तो साथ में आए तीमारदार को सबसे पहले स्टेÑचर या व्हील चेयर की व्यवस्था करने की कवायद शुरू करनी होगी और यहीं से शुरू होती है एमबीएस में उपचार के लिए आए मरीज और उसके साथ आए तीमारदार की परीक्षा। कारण उसका ये है कि प्रशासन ने करोड़ों रूपए खर्च करके बिल्डिंग तो बनवा दी लेकिन आज भी वहां मरीज चन्द रूपयों के स्ट्रेचर और व्हील चेयर के लिए हाथ जोड़ते, झगड़ते नजर आ जाएंगे। काफी मशक्कत और मिन्नतों के बाद वो स्ट्रेचर की व्यवस्था कर भी लेता है तो जब तक वो जांच करवाने जाएगा और जांच रिपोर्ट आएगी तब तक ओपीडी का समय समाप्त हो चुका होता है और कई बार मरीज को बिना चिकित्सक को दिखाए ही वापस लौटना होता है। 

मरीज परेशान होते 
मरीजों को राहत देने के लिए एमबीएस अस्पताल में ही नया ओपीडी ब्लॉक भले ही बना दिया गया हो लेकिन हालात वहां भी पुरानी ओपीडी से ज्यादा ठीक नहीं है। इस नई ओपीडी और पुरानी ओपीडी के बीच मरीज घनचक्कर होते नजर आ रहे हैं। मरीज आते तो यहां उपचार करवाने के लिए है लेकिन वो काउंटर पर ड्यूटी दे रहे कार्मिकों के इधर जाओ-उधर जाओ शब्दों को सुन-सुनकर ही परेशान हो रहे हैं। पुरानी ओपीडी में भी मरीज या उसके तीमारदार को पर्ची बनवाने के लिए लम्बी कतारों में लगना पड़ता था तो नई बिल्डिंग में भी कमोबेश यहीं हालात है। 

राहत कम, आहत ज्यादा
नई ओपीडी की तुलना पुरानी बिल्डिंग से करे तो वहां से यहां के हालात बहुत अलग है जहां मरीजों को राहत तो है लेकिन साथ में आफत भी है। पुरानी ओपीडी में सभी विभागों के कक्ष ग्राउंड फ्लोर पर ही थे, पंजीयन काउन्टर हो दवा काउंटर सभी नीचे ही थे लेकिन नई बिल्डिंग में सब कुछ बदला हुआ है। मरीज या उसके तीमारदार को पहले घंटों लाइन में लगकर पर्ची बनवानी पड़ती है उसके बाद ऊपरी तल पर चिकित्सक के पास जाना होता है। 

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मरीज को लिफ्ट तक भी कैसे ले जाएं
एमबीएस चिकित्सालय परिसर में ही बनी नई ओपीडी को हाल ही में शुरू किया गया है। पुरानी ओपीडी में फिलहाल कैंसर विभाग की ओपीडी संचालित की जा रही है। शेष सभी विभागों की ओपीडी को नये भवन में शिफ्ट कर दिया गया है। इसी नई ओपीडी में ग्राउंड फ्लोर पर पंजीयन, केश तथा दवा काउंटर बनाये गए हैं। इसी ग्राउंड फ्लोर पर इमरजेंसी वार्ड भी है। इसी प्रकार नई ओपीडी के प्रथम तल, द्वितीय तथा तृतीय तल पर सर्जिकल, आईसीयू, मेडिसन, आर्थोपेडिक, नेत्र रोग विभाग, गेस्ट्रो, स्किन, न्यूरो तथा कार्डियक आदि विभाग संचालित किए जा रहे हैं। मरीजों को ऊपरी तल पर जाने के लिए सीढ़ियों तथा लिफ्ट की व्यवस्था भी इस बिल्डिंग में है लेकिन मरीजों के परिजनों के सामने समस्या ये हैं कि वे मरीज को लिफ्ट तक भी कैसे ले जाएं।  सामान्य मरीज तो फिर भी सीढ़िया चढ़कर या जैसे तैसे लिफ्ट में घुसकर चिकित्सक के पास पहुंच जाता है लेकिन जो चोटिल हैं, जो चलकर चिकित्सक के पास के पास नहीं जा सकता उसके लिए  स्टेÑचर या व्हील चेयर की व्यवस्था करना मरीज के परिजन के लिए नाको चने चबाने के समान है। कारण उसका ये हैं कि यहां बिल्डिंग तो बन गई है लेकिन मरीज को सुगमता से चिकित्सक के पास पहुंचाने के लिए कुछ रूपयो में आने वाले स्टेÑचर और व्हील चेयर की व्यवस्था पूरी तरह से नहीं हो पाई है। 

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स्ट्रेचर और व्हील चेयर के लिए मारामारी
कई बार स्ट्रेचर और व्हील चेयर उपलब्ध होते भी हैं तो मरीज को ले जाने के लिए अस्पताल की ओर से नियुक्त कोई कार्मिक नहीं होता है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि सालों से अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है। अगर अस्पताल को भी प्राइवेट अस्पतालों की भांति बनाना है तो चतुर्थ श्रेणी स्टॉफ की भर्ती करनी ही होगी। क्यों कि किसी भी अस्पताल को बेस इसी श्रेणी का कर्मचारी होता है जो मरीज को आते ही चिकित्सक के पास उसके कक्ष में ले जाता हैं और वहीं से जरुरत पड़ने पर जांच आदि के लिए। 

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पुरानी ओपीडी में सब देखा हुआ था तो ज्यादा परेशानी नहीं होती थी लेकिन यहां तो पहले नीचे पर्ची बनवाओ फिर डाक्टर को दिखाने के लिए उपर जाओं उसके बाद जांच करवाने के लिए फिर दूसरी बिल्डिंग में जाना पड़ता है। 
- राजेन्द्र

इधर से उधर घूमते-घूमते परेशान हो गई हंू। कोई कहता है एक्स रे उस साइड होगा कोई कहता है सबसे उपर वाली मंजिल पर होगा। पता नहीं कैसे इलाज होगा। 
- प्रेमबाई

नई बिल्डिंग में मरीजों को सभी सुविधाएं मिलने में अभी कुछ समय तो लगेगा ही। कोई मरीज पहली बार अस्पताल आता है तो उसे परेशानी जरुर होती है। फिर भी नई बिल्डिंग में मरीजों को जांच आदि की सुविधाएं जल्द उपलब्ध होने लगेगी। 
- डॉ. करणेश गोयल, उपाधीक्षक, एमबीएस 

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