कोटा में हर साल बलि चढ़ रहे 9 हजार पेड़

हर साल लग रहे लाखों पौधे, नहीं बन रहे पेड़

कोटा में हर साल बलि चढ़ रहे 9 हजार पेड़

कोटा शहर में पहले जहां घने जंगल और बाग हुआ करते थे। उनमें से पेड़ों की लगातार कटाई होने से उनकी संख्या कम हो गई है।

कोटा। बरसात के सीजन में हर साल कोटा में लाखों पौधे तो लगाए जा रहे हैं। जबकि उनमें से अधिकतर पेड़ ही नहीं बन पा रहे। वहीं कोटा में हर साल मात्र दाह संस्कार के लिए ही करीब 9 हजार पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है। जिससे एक तरफ लगातार पेड़ कट रहे हैं और दूसरी तरफ जंगल घट रहे हैं। कोटा शहर में जहां आबादी के साथ ही शहर का विकास व विस्तार हो रहा है। वहां लोगों की मौत का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जानकारी के अनुसार कोटा में रोजाना करीब 20 से 25 लोगों की मौत हो रही है। महीने में यह संख्या करीब 750 और साल में 9 हजार के करीब पहुंचती है। इनमें से अधिकतर का दाह संस्कार हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार मुक्तिधामों में लकड़ियों पर किया जा रहा है। एक शव के दाह संस्कार में 12 मन यानि करीब 5 क्विंटल लकड़ी का उपयोग हो रहा है। सामान्य तौर पर दाह  संस्कार में बबूल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है। बबूल के एक सामान्य पेड़ में करीब 5 क्विंटल लकड़ी निकलती है। इस हिसाब से मात्र कोटा में ही जहां हजार साल 9 हजार लोगों की मौत हो रही है। उनका दाह संस्कार लकड़ी पर किया जा रहा है। ऐसे में कोटा में सिर्फ दाह संस्कार के लिए हर साल 9 हजार पेड़ों की बलि दी जा रही है। 

जीवन में पांच पेड का उपयोग करता है व्यक्ति
माना जाता है कि एक व्यक्ति अपने जीवन में पांच पेड़ का उपयोग करता है। उसके दांह संस्कार के अलावा हलवाई के यहां भट्टी में जलाने, फर्नीचर बनाने और मकान समेत अन्य तरह से भी लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में कटने वाले पेड़ों की संख्या काफी अधिक है। जबकि कोटा में हर साल बरसात के सीजन में लाखों पौधे लगाए जा रहे हैं। जिनमें से गिनती के ही पौधे पेड़ बन पा रहे हैं। एक पौधे को पेड़ बनने में कई साल लगता है। 

पुराने शहर में हरियाली, नए कोटा में जगह खाली
कोटा शहर  में पहले जहां घने जंगल और बाग हुआ करते थे। उनमें से पेड़ों की लगातार कटाई होने से उनकी संख्या कम हो गई है। वर्तमान में शहर में न तो घने जंगल बचे हैं और न ही घने बाग। स्टेशन से नयापुरा तक जरूर बागों में पेड़ अधिक है। साथ ही सड़क किनारे पुराने पेड़ होने से हरियाली दिख रही है। हालांकि यहां भी अधिकतर पेड़ पुराने होने से गिरकर टूट चुके हैं। पेड़ों की अधिकता के कारण अभी भी पुराने शहर में हरियाली नजर आ रही है। जबकि नए कोटा में एरोड्राम से महावीर नगर व आरकेपुरम श्रीनाथपुरम् तक पेड़ तो हैं लेकिन उनकी संख्या कम होने से सड़क किनारे छाया देखने से भी नहीं मिलती है। यही कारण है कि नए कोटा में पेड़ कम होने से यहां का तापमान पुराने शहर के तापमान से दो से तीन डिग्री अधिक ही रहता है।

विद्युत व गैस आधािरत बने शवदाह गृह
पेड़ों को कटने से बचाने के लिए कोटा में लम्बे समय से विद्युत शवदाह गृह शुरू करने की मांग की जा रही थी। जिसकी शुरुआत दस साल पहले 2013 में किशोरपुरा स्थित मुक्तिधाम में विद्युत शवदाह गृह बनाकर कर दी गई थी। लेकिन उसके बनने के बाद भी अभी तक लोगों में जागरूकता की कमी या धार्मिक आस्था आड़े आने से विद्युत शवदाह गृह में बहुत कम लोग अंतिम संस्कार करवा रहे हैं। अधिकतर अंतिम संस्कार लावारिस शवों के ही हो रहे हैं। कोटा में पहले जहां एक ही विद्युत शवदाह गृह था। वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर दो हो गई है। दूसरा संजय नगर स्टेशन क्षेत्र स्थित मुक्तिधाम में हाल में ही शुरू हुआ है। जबकि आर.के. पुरम् स्थित मुक्तिधाम में सीएनजी गैस पर आधारित शवदाह गृह बनकर शुरू हो गया है। 

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विद्युत शवदाह गृह में हर महीने 30 का औसत
किशोरपुरा स्थित विद्युत शवदाह गृह को बने हुए दस साल का समय हो चुका है। लेकिन अभी भी उसमें दाह संस्कार की संख्या काफी कम है। जानकारी के अनुसार इस शवदाह गृह में हर महीने औसतन करूब 30 से 35 शवों का ही अंतिम संस्कार हो रहा है। हालांकि कोरोना काल में लकड़ियों के स्थान पर विद्युत शवदाह गृह में ही शवों का अंतिम संस्कार होने से उस समय एक ही दिन में कई शवों का दाह संस्कार हो रहा है। 

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निगम पौधारोपण पर खर्च करेगा 8 करोड़ रुपए
शहर में बरसात के सीजन में वन विभाग समेत अन्य विभाग व संस्थाएं पौधे लगाएंगे। नगर निगम कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण की ओर से इस बार पौधारोपण के लिए वन विभाग को 8 करोड़ रुपए बजट दिया गया है। जिसमें वे भी पौधे लगाएंगे और शहर वासियों को निगम के माध्यम से नि:शुल्क पौधे बाटे जाएंगे।  इधर लोगों का कहना है कि सिर्फ पौधे लगाना ही पर्याप्त नहीं है। उनकी देखभाल कर पेड़ बनाना भी होगा। तभी पौधे लगाने का लाभ है। 

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इनका कहना है
 कोटा में हर दिन करीब 20 से 25 शवों का अंतिम संस्कार लड़की पर हो रहा है। हिन्दू संस्कूति के अनुसार लड़की पर दाह संस्कार करना अच्छा मानते हैं। एक शव के दाह संस्कार में करीब 5 क्विंटल लकड़ी लगती है। यह लकड़ी बबूल के एक सामान्य पेड़ से निकल जाती है। इस हिसाब से कोटा में हर साल दाह संस्कार में 9 हजार पेड़ों का उपयोग हो रहा है।  जबकि कोटा में विद्युत शवदाह गृह बन चुके हैं। हालांकि इनकी संख्या बढ़ाने व हर क्षेत्र या मुक्तिधाम में बनाने की आवश्यकता है। पेड़ों को बचाने के लिए उनकी कटाई कम और पौधारोपण अधिक करना होगा।  
- राजाराम जैन कर्मयोगी

नगर निगम की ओर से वन विभाग को 8 करोड़ रुपए बजट दिया गया है। जिससे कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण निगम में पौधारोपण किया जाएगा। सरकारी विभागों के अलावा लोग भी अपने स्तर पर पौधे लगा सकेंगे। पौधे बड़े होकर पेड़ बनें इसके लिए सभी को जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन नए कोटा क्षेत्र में चट्टान व पथरीला इलाका अधिक होने से यहां पौधों की सर्वाइवल दर काफी कम है। जिससे यहां पौधे तो लगते हैं लेकिन पनप कम पाते हैं और पेड़ नहीं बन जाते। जिससे नए कोटा में पेड़ों की संख्या कम दिखती है। 
- ए.क्यू कुरैशी, एक्सईन नगर निगम कोटा दक्षिण

प्रकृति में संतुलन के लिए पेड़ होना आवश्यक
 जिस तरह से जनसंख्या बढ़ रही है। शहर का विकास हो रहा है। ऐसे में पेड़ों की बलि भी दी जा रही है। विकास व दाह संस्कार के लिए पेड़ कट रहे हैं तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ों का होना आवश्यक है। इसके लिए पौधे लगाने के बाद उनकी इस तरह से देखभाल की जाए कि वह पेड़ बन सके। यह किसी एक की नहीं हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। 
- राकेश नामा, दादाबाड़ी

विद्युत शवदाह गृह का हो अधिक उपयोग
 जिस तरह से बड़े शहरों में अधिकतर दाह संस्कार विद्युत शवदाह गृह में हो रहे हैं। उसी तरह अब  कोटा में भी विद्युत  शवदाह बनने लगे हैं। ऐसे में अधिकतर लोगों को इनका उपयोग करना चाहिए। जब अधिक लोग उपयोग करेंगे तो विद्युत शवदाह गृहों की संख्या भी बढ़ेगी। इससे लकड़ी की बचत और पर्यावरण को भी खतरा कम होगा। 
- संगीता जांगिड़, महावीर नगर तृतीय

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