राज काज में क्या है खास

लोगों का तो हाजमा तक बिगड़ गया

राज काज में क्या है खास

सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में जोधपुर वाले अशोक ने सामने वाली मैडम की तारीफ क्या कर दी, कई बड़े नेताओं ने अपने-अपने हिसाब से मायने निकालने में कोई कमी नहीं छोड़ी। भगवा वाले कई भाई लोगों का तो हाजमा तक बिगड़ गया।

असर तारीफ का
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में जोधपुर वाले अशोक ने सामने वाली मैडम की तारीफ क्या कर दी, कई बड़े नेताओं ने अपने-अपने हिसाब से मायने निकालने में कोई कमी नहीं छोड़ी। भगवा वाले कई भाई लोगों का तो हाजमा तक बिगड़ गया। अब इन भाई साहबों को कौन समझाए कि रणनीति बनाने में माहिर जादूगर जी ने तारीफ ऐसे वैसे ही थोड़े की है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि मैडम की तारीफ के लिए जादूगरजी को सही चौघड़िए का लम्बा इंतजार भी तो करना पड़ा। चूंकि भगवा वालों के बीच बनी खाई के बारे में भाई साहब से ज्यादा कोई ज्ञानी भी तो नहीं है।

सिर्फ पांच ही एकजुट
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत की ना पक्ष लॉबी में गरमागरम बहस हुई। बहस भी छोटी नहीं, बल्कि एकजुटता को लेकर थी। बहस का मुद्दा था कि आजकल अपने ही नहीं हां पक्ष में भी दो से ज्यादा गुट है। एक गुट के भाई लोग तो दिल्ली दरबार की देहली तक धोक चुके हैं। बहस के बीच शाहपुरा वाले भाई साहब के कूदने से सबकी बोलती बंद हो गई। भाई साहब का तर्क था कि दोनों तरफ खेमेबाजी है, केवल हमारा ही गुट एक है। भाई लोगों ने तो कइयों को अलग करने के लिए खूब पसीने बहाए थे, पर पार नहीं पड़ी।

शनि की कृपा
दोनों तरफ शनि की कृपा है, जिसने फिजा ही बदल दी। जब से शनि का उदय हुआ है, तब से हाथ वालों के साथ भगवा वालों में भूचाल थम सा नजर आया रहा है। अगले दो महीने में इसका असर साफ दिखने लगेगा। राज का काज करने वालों में लंच केबिनो में चर्चा है कि अब तक जो कुछ कर लिया वो तो ठीक है, मगर अब फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही भलाई है। पांच तारीख से शनि का जो उदय हुआ है, जो राज के लिए कारक होता है। ब्यूरोक्रेसी में जो अस्थिरता का माहौल है, वह उसी का असर है।

तरीका ए मैसेज
 सूबे में रह रह कर मैसेज देने में माहिर भाई साहब का कोई सानी नहीं है। उनकी इस दक्षता के तो दिल्ली वालों के साथ भगवा वाले भी कायल हैं। इन दिनों भाई साहब के एक खास मैसेज की इंदिरा गांधी भवन में काफी चर्चा है। पीसीसी के बाहर चाय की थड़ी पर गांधी टोपी वाले बुजुर्गवार बताते हैं कि साढ़े बारह साल पहले भी अपनी बिरादरी की लॉबी के बहाने भाई साहब से अकड़कर चलने वाले एक साहब को वफादारी दिखाने के लिए कई तरह के पापड़ तक बेलने पड़े थे। इस बार भी खुद को राज की कुर्सी के दावेदार को बताने वाले देवनारायण के वंशज को पूर्वी सूबे के उप चुनाव में जोझरू के पेड़ पर चढ़ा कर मैसेज भी दे दिया था कि हर गलती कीमत मांगती है। चूंकि भाई साहब हर नब्ज को टटोलने में तो माहिर हैं।

बढ़ रही है सूची
राज और काज करने वालों की बीच छत्तीस का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। राज की कुर्सी तो खाई पाटने की जुगत में हैं, लेकिन उनके नवरत्न कुछ समझना ही नहीं चाहते। काज करने वाले कायदे कानूनों की दुहाई देकर सुशासन के नारे की याद दिलाते हैं। अब देखो ना नवरत्नों लिस्ट में शामिल होने के लिए जूझ चुके हाड़ौती वाले एक भाई साहब को ऊपर वालों ने आंख के इशारे से समझा दिया, लेकिन उनके समझ में नहीं आई। गुजरे जमाने में माथुर आयोग के चक्कर लगा चुके अफसरों से अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि आंख बंद कर चिड़िया बिठा दें, चाहे दूध फट ही क्यों ना जाए। ऐसे में नवरत्नों से पिण्ड छुड़ाने वालों की सूची लंबी होती जा रही है।

एक जुमला यह भी
ब्यूरोक्रेसी में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। हो भी क्यूं ना मामला राज के मूड से जुड़ा है। जब से मैडम की नजरेंं महिलाओं की योजनाओं पर टिकी हैं, तब से ब्यूरोक्रेसी में मनोबल भी बढ़ा है। सत्ता के साथ संगठन वालों का मुंह खुलने से अमल का असर साफ दिखने लगा है।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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