जाने राजकाज में क्या है खास

सूबे में जाड़ों की रातों में होने वाली चुनावी जंग को लेकर दोनों तरफ के नेताओं की घबराहट बढ़ गई है

जाने राजकाज में क्या है खास

सचिवालय में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेसी की वर्किंग स्टाइल को लेकर है। जुमला है कि इन दिनों मंत्रियों और हाथ वाली पार्टी के नेताओं से ज्यादा सीनियर ब्यूरोक्रेट्स बिजी हैं।

चर्चा में कर्क-तुला और वृषभ राशि वाले
सूबे के पूर्वी इलाके में इन दिनों तीन राशियों की चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, राशियों के गुरुओं ने अपना-अपना असर जो दिखा दिया। पिछले दिनों डांग क्षेत्र के तुला राशि वाले राज के एक रत्न को कर्क राशि वाली एक मैडम ने हुक्म क्या दे दिया, रत्न की रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया। तुला राशि वाले राज के रत्न भी कम नहीं निकले और आनन-फानन में कर्क राशि वाली मैडम के हमसफर वृषभ राशि वाले बृज भाईसाहब को नोटिस थमा दिया। अब कर्क और तुला राशि वालों के फेर में फंसे वृषभ राशि वाले लाल के सामने सपोटरा वाला आरसी को देवरा ढोकने के सिवाय कोई चारा भी नजर नहीं आ रहा।

घबराहट दोनों तरफ
सूबे में जाड़ों की रातों में होने वाली चुनावी जंग को लेकर दोनों तरफ के नेताओं की घबराहट बढ़ गई है। घबराहट का कारण भी साफ है। राज आएगा या नहीं, इसको लेकर भगवा वाले भाई लोग कुछ ज्यादा ही चिंतन-मंथन में डूबे हैं। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर जोड़-बाकी और गुणा-भाग करने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। कई भाई लोग बिन मांगे भी सलाह दे रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ठिकाने पर हाथ वाले भाई लोग भी अपने हाथ मल रहे हैं कि राज बचेगा या नहीं। चर्चा है कि चौकड़ियों के फेर में फंसी दोनों ओर की राजनीति का भाग्य युवराजों के हाथों में है।   

घोड़े चले अस्तबलों की ओर
आज हम घोड़ों की बात करेंगे। घोड़े भी किसी सराय से नहीं बल्कि दोनों बड़े दलों से कांग्रेस और भाजपा से ताल्लुक रखते हैं, और राज के लिए मैदान में उतरे थे। इनमें से कई घोड़े तो वेग से भी तेज गति से दौड़ने का मादा भी रखते हैं। पिछले साढ़े चार साल में कई मौकों पर अपनी केपेसिटी को दिखाने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी, चाहे वो अपनी सात पीढ़ी के जुगाड़ के लिए ही क्यों ना हो। चर्चा है कि इनमें से कई घोड़े तो जाड़ों में होने वाली जंग से पहले ही अस्तबलों की ओर लौटने लगे हैं। अब बेचारे सेनापतियों के पास उनकी तरफ देखने के सिवाय कोई चारा भी तो नहीं है।

नाराजगी बॉडी लैंग्वेज से
पिछले कुछ दिनों से काले कोट वालों में बॉडी लैंग्वेज को लेकर काफी खुसरफुसर है। हो भी क्यों ना, कभी-कभी न्याय के देवताओं की नाराजगी राज को भी तो भारी पड़ती है। खुसरफुसर है कि राज और उसके रत्नों की बॉडी लैंग्वेज काले कोट वालों के सूट नहीं कर रही, सो गाहे-बगाहे उसका असर भी दिखाई देता है। अब राज के रत्नों को कौन समझाए कि काले कोट वाले देवताओं से सहयोग की उम्मीद करते हैं, तो हैकड़ी से सौ कोस दूर रहने की सीख देने वाली पाठशाला ढूंढने में ही भलाई है, वरना कॉन्फिडेंस में लेना तो दूर की बात, कटघरे में खड़े में देर नहीं लगेगी।

एक जुमला यह भी
सचिवालय में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेसी की वर्किंग स्टाइल को लेकर है। जुमला है कि इन दिनों मंत्रियों और हाथ वाली पार्टी के नेताओं से ज्यादा सीनियर ब्यूरोक्रेट्स बिजी हैं। बातचीत में भी बड़े साहबों के मुंह से निकल ही जाता है कि अभी मिशन की वजह से बिजी हैं। मसखरों की मानें, तो इस बार ब्यूरोक्रेट्स ने हाथ वालों के कुनबे को बढ़ाने में रात-दिन पसीने बहाए हैं। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि इस बार भगवा वाली पार्टी का मुकाबला हाथ वालों के बजाय ब्यूरोक्रेट्स से ही होता नजर आ रहा है।

-एल.एल.शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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