भाजपा ने ज्योति मिर्धा पर खेला दांव कांग्रेस बार-बार बदलती रही है चेहरे

2003 से भाजपा ने चारों विधानसभा चुनाव जीते

भाजपा ने ज्योति मिर्धा पर खेला दांव कांग्रेस बार-बार बदलती रही है चेहरे

विधानसभा चुनाव 2023 में नागौर विधानसभा सीट भाजपा व कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई हैं।

नागौर। विधानसभा चुनाव 2023 में नागौर विधानसभा सीट भाजपा व कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई हैं। भाजपा वर्ष 2003 से यह सीट लगातार चार बार जीत चुकी हैं वहीं कांग्रेस बार-बार उम्मीदवारों के चेहरे बदलने के बावजूद इस सीट पर काबिज नहीं हो पाई हैं। इस बार भाजपा के लिए सीट को बचाए रखना चुनौती बना हुआ हैं तो कांग्रेस हर कीमत पर जिला मुख्यालय की इस सीट को हथियाने में जुटी हुई हैं। 

भाजपा ने पिछले चुनाव वर्ष 2018 में आरएसएस के नए चेहरे मोहनराम चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा था। नागौर सीट से वर्ष 2008 व 2013 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए हबीबुर्रहमान विजयी हुए थे। वर्ष 2018 में भाजपा ने जब उनकी टिकट काट दी तो वे वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। पिछले चुनाव में उनके हाथ से बाजी निकल गई और भाजपा फिर से इस सीट पर काबिज हो गई। वर्ष 2003 में भाजपा के गजेंद्र सिंह खींवसर ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरेंद्र मिर्धा को चुनाव में हरा दिया था। पिछले चार चुनाव में भाजपा लगातार अपना परचम लहरा रही हैं। इस सीट को बरकरार रखना भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ हैं। वहीं कांग्रेस जोड़-तोड़कर नागौर सीट को हासिल करने लिए रणनीति बना रही हैं। इस बार कांग्रेस से पूर्व मंत्री हबीबुर्रहमान व उनके चिर प्रतिद्वंदी रहे हरेंद्र मिर्धा, आईदानराम भाटी, ओमप्रकाश सेन टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।  

पांच साल यह रहे मुद्दे
नागौर विधानसभा क्षेत्र में जिला मुख्यालय पर पुराने राजकीय अस्पताल भवन में सेटेलाइट अस्पताल प्रारंभ किए जाने का मुद्दा पूरे पांच साल छाया रहा। भाजपा सरकार ने वर्ष 2017 में बीकानेर रोड पर शहर से काफी दूर जेएलएन अस्पताल का नया भवन बनाकर उसे चालू कर दिया था। शहर के बीचो-बीच बने पुराना अस्पताल के भवन के खाली हो जाने के बाद शहर व आस-पास ग्रामीण अंचलों के लोग इसमें सेटेलाइट अस्पताल चालू करने की मांग लगातार कर रहे थे, मगर इस समस्या का समाधान नहीं हुआ। इसी प्रकार शहर में दो ओवरब्रिज का काम भी ठप्प हो जाने का मुद्दा भी छाया रहा। ग्रामीण अंचलों में सड़क, बिजली, पानी को लेकर भी समय-समय पर मांग उठती रही। 

यह हैं जातीय समीकरण
नागौर विधानसभा सीट पर इस बार 2 लाख 69 हजार 093 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इन मतदाताओं में एक अनुमान के मुताबिक अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता सर्वाधिक बताए जा रहे हैं। उसके बाद जाट समाज, एससी समाज व ओबीसी वर्ग के मतदाता सर्वाधित संख्या में हैं। पिछले चार चुनाव में कांग्रेस व भाजपा की सियासत मुस्लिम व जाट जाति के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं। एससी व माली समाज लंबे से निर्णायक की भूमिका निभा रहा हैं। वर्ष 2023 के चुनाव में भी इन दोनों प्रमुख जातियों पर भी दोनों दलों की नजर बनी हुई हैं। 

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मिर्धा को भाजपा का टिकट
नागौर विधानसभा सीट पर हाल ही में भाजपा में शामिल हुई पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की पोती डॉ. ज्योति मिर्धा को उम्मीदवार बनाया हैं। मिर्धा वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद का चुनाव जीती थी। पिछले 2 लोकसभा चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के चलते वे कुछ दिनों पहले की भाजपा में शामिल हो गई थी। पार्टी ने उन पर विश्वास जताते हुए अपनी सबसे मजबूत नागौर सीट से उम्मीदवार बनाया हैं।

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पिछले चुनाव का समीकरण 

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2018 के चुनाव में नागौर सीट के लिए 1,76,092 वोट पड़े थे, जो कुल मतदाताओं का 72 प्रतिशत था। भाजपा उम्मीदवार मोहनराम चौधरी को 86315 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार हबीबुर्रहमान को 73307 मत प्राप्त हुए थे। भाजपा ने 13008 मतों से विजयी हासिल की थी। आरएलपी ने मात्र 5 हजार वोटों का ही आंकड़ा पार किया था।

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