तापीय ऊर्जा संयंत्रों की ऊर्जा दक्षता बढ़ाना जरूरी

तापीय ऊर्जा संयंत्रों की ऊर्जा दक्षता बढ़ाना जरूरी

पूरी दुनिया में सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करना जरूरी है। लेकिन वर्तमान में मनुष्यों की अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में जीवाश्म ईंधनों और खास तौर से कोयले की महत्वपूर्ण भूमिका है।

पूरी दुनिया में सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करना जरूरी है। लेकिन वर्तमान में मनुष्यों की अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में जीवाश्म ईंधनों और खास तौर से कोयले की महत्वपूर्ण भूमिका है। साल 2022 में, दुनिया भर में जितनी ऊर्जा की खपत हुई, उसका लगभग 82 प्रतिशत जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त हुआ। इसमें कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस शामिल हैं। जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत कोयला है, जिसका हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है। इसके बाद तेल का हिस्सा लगभग 32 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का हिस्सा लगभग 20 प्रतिशत है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत, से प्राप्त ऊर्जा का हिस्सा लगभग 18 प्रतिशत था। जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग मुख्य रूप से बिजली उत्पादन, परिवहन और उद्योग में किया जाता है। जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त ऊर्जा के उपयोग से वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं होती हैं। इसलिएए दुनियाभर में जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। 2022-23 में, भारत की कुल ऊर्जा खपत में जीवाश्म ईंधनों की भागीदारी लगभग 74.3 प्रतिशत थी। इसमें कोयले की हिस्सेदारी 51.1 प्रतिशत, तेल की हिस्सेदारी 20.2 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 3.0 प्रतिशत थी। जबकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की भागीदारी लगभग 25ण्7 प्रतिशत थी। इसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 8.4 प्रतिशत, पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी 5.7 प्रतिशत, जल विद्युत की हिस्सेदारी 10.6 प्रतिशत और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी 0.8 प्रतिशत थी। जीवाश्म ईंधनों की भारत की ऊर्जा खपत में उच्च भागीदारी का कारण हैं कि भारत एक विकासशील देश है और इसकी ऊर्जा आवश्यकताएं लगातार बढ़ रही हैं। जीवाश्म ईंधन सस्ते और उपलब्ध हैं। इसके अलावा भारत में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास अभी भी प्रारंभिक चरण में है। ऐसे में सतत विकास के लक्ष्यों और ऊर्जा उपभोग के बीच एक संतुलन बैठाना बहुत आवश्यक है। जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करके ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हमें दो मुख्य चीजों पर ध्यान देना होगा। पहला, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विकास और दूसरा, ऊर्जा दक्षता में सुधार। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत और भूतापीय ऊर्जा आदि का उपयोग करके हम अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। इन ऊर्जा स्रोतों का उत्पादन जीवाश्म ईंधनों की तुलना में पर्यावरण के अधिक अनुकूल होता है और इनसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी नहीं होता। ऊर्जा दक्षता में सुधार करके हम ऊर्जा जरूरतों को कम कर सकते हैं। ऊर्जा दक्षता का मतलब है कि हम कम ऊर्जा का उपयोग करके अधिक कार्य कर सकें। इसके लिए हमें ऊर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, ऊर्जा की बर्बादी को रोकना चाहिए और ऊर्जा संरक्षण के उपाय करने चाहिए।

भारत भी अपने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने के लिए प्रयास कर रहा है। भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए नेट जीरो विकास लक्ष्य निर्धारित किया है। लेकिन भारत के लिए कोयले को सतत विकास से बाहर रखना आसान नहीं है, क्योंकि भारत एक विकासशील देश है और अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोयले पर काफी हद तक निर्भर है। भारत की आबादी तेजी से बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था भी बढ़ रही है। इससे भारत की ऊर्जा जरूरतों में भी वृद्धि हो रही है। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा आदि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में कुछ सीमाएं हैं। इन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा अस्थिर होती है और इनका भंडारण करना भी मुश्किल होता है। इसके अलावा, इन स्रोतों को विकसित करने और संचालित करने की लागत भी अधिक होती है। भारत में कोयले की उपलब्धता पर्याप्त है। भारत के पास विश्व का चौथा सबसे बड़ा कोयला भंडार हैं। भारत में जो तापीय ऊर्जा संयंत्र (थर्मल पावर प्लांट) हैं, इनको भारत के घरेलू खदानों से ही 96 प्रतिशत कोयले की प्राप्ति हो जाती है और इसलिए भारत में कोयले की कीमत कम है। इसी कारण भारत में ऊर्जा की कीमतें भी काफी कम रहती हैं। भारत के कुल ऊर्जा उत्पादन का लगभग 74.3 प्रतिशत थर्मल पावर प्लांट से पूरा होता है, जो मुख्य रूप से कोयला आधारित है। भारत की बिजली आपूर्ति करने के साथ-साथ, इसके अवसंरचनात्मक विकास में भी कोयला महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस्पात का क्षेत्र हो, सीमेंट का क्षेत्र हो या एल्युमिनियम का, इन सभी के विकास में कोयले का महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में जब तक भारत में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत इतने विकसित नहीं हो जाते कि वे भारत की बढ़ती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, तब तक भारत कोयले का उपयोग करना बंद नहीं कर सकता। इसलिए भारत को अपने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के विकास पर तो ध्यान देना ही चाहिए, लेकिन साथ ही उसे अपने थर्मल पावर प्लांट की दक्षता में भी सुधार करना होगा। भारत के थर्मल पावर प्लांट की दक्षता बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। भारत में कोयले का जो उत्पादन होता है, उसमें राख की मात्रा अधिक होती है। 
               

 

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