कोटा संभाग में जैविक खेती का बढ़ा रुझान

कोटा 5 हजार किसानों को मिल चुका ऑर्गेनिक खेती करने का का प्रमाण पत्र, संभाग में 15 हजार किसान कर रहे ऑर्गेनिक खेती

 कोटा संभाग में जैविक खेती का बढ़ा  रुझान

हाड़ौती संभाग में पिछले 5 वर्षों में ऑर्गेनिक (जैविक ) खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। कोटा बूंदी झालावाड़ बारां जिलों में करीब 15 हजार से अधिक किसान जैविक खेती कर अपनी आय को दुगना कर रहे हैं।

कोटा। हाड़ौती संभाग में पिछले 5 वर्षों में ऑर्गेनिक (जैविक ) खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। कोटा बूंदी झालावाड़ बारां जिलों में करीब 15 हजार से अधिक किसान जैविक खेती कर अपनी आय को दुगना कर रहे हैं।  कोटा जिले की बात करें तो यहां 5000 से अधिक किसान जैविक खेती के कृषि विभाग से प्रमाण पत्र प्राप्त कर चुके हैं । इन किसानों के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट इन दोनों बाजार में खासी धूम मचा रहे हैं । बूंदी जिले के नैनवां, हिंडौली क्षेत्र में करीब 2500 हैक्टेयर में किसान जैविक खेती कर अपनी आय को दुगुना कर रहे हैं। आॅर्गेनिक सब्जियों, दालों, अनाज में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और बिना पेस्टीसाइड के उत्पादन मिलने से लोग आॅर्गेनिक उत्पाद महंगे होने के बावजूद पसंद कर रहे हैं। अभी ऑर्गेनिक उत्पादन का बाजार नहीं होने से 1250 किसान एक समूह बनाकर अपना उत्पादन बेच रहे हैं। समूह ने जैविक उत्पादन को बेचने के लिए सप्ताह में तीन दिन होम डिलीवरी सर्विस देना शुरू किया है। कोटा, बूंदी में किसानों को इसको अच्छा रिस्पांस मिल रहा है।

जिले में वर्तमान में करीब 2 लाख 70 हजार हैक्टेयर में किसान पारंपरिक खेती कर रहे हैं, जिसमें से 15000 हैक्टेयर में ऑर्गेनिक खेती की जा रही है। पिछले पांच साल से कृषि क्षेत्र में रासायनिक खाद के बढ़ते प्रयोग से होने वाले नुकसान को देखते हुए जीरो बजट खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है। जिले के किसान खेती में नवाचार कर अपनी आय बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। ऑर्गेनिक खेती से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली ग्रीन हाउस गैसों को रोकने में मदद मिलती है।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी, वैज्ञानिक डॉ. हरीश वर्मा ने बताया कि हरित क्रांति के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों के कारण किसानों ने परंपरागत विधि छोड़ कर नई दिशा में कदम बढ़ाने से इसका परिणाम अब पर्यावरण प्रदूषण के रूप में दिख रहा है। कभी सेलिनाइजेशन व यांत्रिकरण के नाम पर उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाली विद्या आज उर्वराशक्ति को घटा रही है। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए जैविक खेती सबसे कारगर तरीका है। इस विधि से खेती करने पर जहां जैव विविधता में वृद्धि होती है, वहीं उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी होती है।

ऐसे हुई जैविक खेती की शुरूआत
 किसान चौथमल सैनी ने बताया कि 7 साल पहले वह जयपुर के घराना गांव गए, वहां जैविक खेती देखी वहां से प्रेरणा मिली। इसके बाद कोटा किसान मेले में कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी लेकर सब्जियों, दालों का उत्पादन शुरू किया। जिंसों की मेचिंग चैन नहीं बनने से परेशानी होती थी, जिसके बाद ज्योतिबा फुले जैविक कार्य की कंपनी बनाई और किसानों को इससे जोड़ा। जिससे सब्जियों, जिंसों की वैरायटी तैयार हुई और बाजार तैयार किया। वर्तमान में कोटा में दो फार्म व तीन ब्रांच में माल बेचा जा रहा है। जैविक खेती में शुुरुआती दो साल तक तो उत्पादन सामान्य ही रहता है। इसके बाद उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है। गेहूं जहां सामान्य खेती 2000 रुपए प्रति क्विंटल बिकता है, वहीं जैविक गेहूं 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक जाता है।

ये यह होता है फायदा
पौष्टिकता के साथ सब्जियों में बढ़ा स्वाद, कोटा और बूंदी में अच्छा रिस्पांस
कोटा  निवासी किसान रामराज गुर्जर  ने बताया कि वह तीन साल से जैविक खेती कर सब्जियां उगाकर बाजार में बेच रहे हैं। ऑर्गेनिक सब्जियों का बाजार नहीं होने से घरेलू बाजार में इनको बेचा जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों की बजाए इन सब्जियों में स्वाद और पौष्टिकता के साथ ही पेस्टीसाइड नहीं होने से लोग ज्यादा पसंद करते हैं। मिट्टी में तत्वों की आपूर्ति के लिए गोबर से तैयार किए गए जैविक खाद, बायोगैस स्लरी, नाडेप कम्पोस्ट, फास्फो कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, नीलहरित शैवाल, एजोला का प्रयोग करते हैं।
 बीजोपचार में भी जैविक औषधियों का प्रयोग करते हैं। पेस्टीसाइड की जगह नीम के उत्पाद का उपयोग कीड़ों के नियंत्रण में करते हैं। परजीवी, परभक्षी, सूक्ष्म जीवों का उपयोग कीटव्याधि नियंत्रण के लिए करते हैं। नीम, करंज की पत्तियां, नीम के तेल, निंबोली का उपयोग पौधों के बचाव में किया जाता है, जिससे गेहूं, सब्जियों की पौष्टिकता के साथ स्वाद बढ़ता है और यह स्वास्थ्य को नुकसान भी नहीं पहुंचाता है।

गोमूत्र व घास से तैयार होती है कीटनाशक दवाएं
जैविक खेती करने वाले किसान धर्मराज  मीणा का कहना है कि बाजार में महंगे दामों पर मिलने वाली रासायनिक दवाओं के स्थान पर गोमूत्र, गाय के गोबर, नीम पत्ते, घास एवं आसानी से घर पर ही उपलब्ध होने वाली चीजों से कीटनाशक दवाओं को तैयार किया जाता है। जिससे पैदावार बढ के साथ-साथ विभिन्न रोगों से छुटकारा मिल जाता है।

सब्जियों के भी मिलते हैं दोगुने दाम
स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डालने वाले रासायनिक अनाज एवं सब्जियों के स्थान पर लोग जैविक अनाज व सब्जियों को बढ़ावा दे रहे हैं। लोग किसानों से पकने से पहले ही गेहूं की बुकिंग कर जाते हैं।किसानों का कहना है कि बाजार में रासायनिक गेहूं 1800 से 2300 तक बिकता है, लेकिन जैविक गेहूं के लिए लोग चार से पांच हजार प्रति क्विटंल तक लेने को तैयार हो जाते हैं। कोटा ,झालावाड़, बारां, बूंदी जिले के अंदर धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर रुझान लोगों का बढ़ता जा रहा है।किसान प्रभु लाल साहू ने बताया कि  उसके खेत पर लोगों को रोजगार के साथ-साथ अच्छा मुनाफा मिल रहा है और इसको देखकर जैविक खेती की ओर लोग प्रेरित हो रहा है।

Post Comment

Comment List

Latest News

सिद्दारमैया ने आरक्षण नीतियों में मोदी के दावों का किया खंडन, ज्ञान की कमी का लगाया आरोप सिद्दारमैया ने आरक्षण नीतियों में मोदी के दावों का किया खंडन, ज्ञान की कमी का लगाया आरोप
कांग्रेस ने आरक्षण कोटा पिछड़े वर्गों और दलितों से मुसलमानों को स्थानांतरित कर दिया है, एक झूठ है। उन्होंने प्रधानमंत्री...
लोकसभा चुनाव की राजस्थान में भजनलाल शर्मा ने संभाली कमान, किए धुआंधार दौरे 
रोड़वेज अधिकारियों को अब समय से पहुंचना होगा कार्यालय, लगाई बायोमेट्रिक मशीन
अखिलेश ने कन्नौज से भरा पर्चा, चुनावी जंग हुई दिलचस्प
एक समाज के प्रत्याशियों वाली सीटों पर अन्य बाहुल्य जातियों के भरोसे मिलेगी जीत
बाल वाहिनी अब होंगी और अधिक सुरक्षित
पुलिया का काम सात माह से अटका पड़ा, बढ़ी दिक्कतें