परिवार समाज शिक्षक सरकार सब दोषी
क्यों नहीं दे पा रहे क्वालिटी एजुकेशन जिससे स्टूडेंट आत्मनिर्भर बन सकें
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व आत्म निर्भर बनाने वाली शिक्षा तभी मिलेगी जब बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा।
कोटा। वर्तमान शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को गुणवत्ता युक्त व रोजगारमुखी शिक्षा क्यों नहीं मिल पा रही है। इसको लेकर दैनिक नवज्योति की ओर से शिक्षाविदों की एक परिचर्चा आयोजित की गई। मंथन से निकल कर आया कि शिक्षा का वर्तमान ढ़ांचा जो तैयार किया गया है वो रोजगारमुखी नहीं है। यह ढ़ांचा बोरोजगारों की भीड़ बढ़ाने वाला है। अंको की होड बढ़ रही है, योग्यता की होड कम हो गई है। योग्यता के कोई मापदन्ड नहीं हैं। कोई आटोनॉमस बॉडी नहीं है। एक ऐसी संस्था हो जिसमें देश के नामी शिक्षाविद शामिल हों वह ऐसी नीति तैयार करें जो स्टूडेंट का सर्वांगीण विकास करने के साथ उसे आत्मनिर्र्भर भी बना सके। बिना रिसर्च के पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे है। बच्चों का हित सवोपरि नहीं रखा जा रहा है। शिक्षा व्यवसायीकरण हो गया है। शिक्षा कू बुनियाद में ही बदलाव की आश्यकता है। समाज की मानसिकता में बी बदलाव की जरूरत है। शिक्षा में प्रेक्टिकल पार्ट कम हुआ है। भवन, स्टाफ, संसाधन की कमी। पढ़ाई में समयबद्धता की कमी आई है। स्टूडेंट्स डिग्री ले तो लेते हैं लेकिन प्रेक्टिल नहीं मिलने से डिग्री बेकार साबित हो रही है। पाठ्यक्रम में बच्चों की रूचि का ध्यान नहीं रखा गया है। रिटायर्ड शिक्षाविद की कमेटी बनाए जो शिक्षा को क्वॉलिटी और रोजगारमुखी बना सकें।
अंकों की नहीं, ज्ञान की होड़ बढ़े
वर्तमान में जिस तरह की शिक्षा दी जा रही है वह संख्या बल अधिक होने से सभी को शिक्षा का अधिकार के तहत दी जा रही है। जिसमें अधिक से अधिक अंक लाने की होड़ मची हुई है। जबकि अधिक अंक लाना न तो शिक्षा का मापदंड है और न ही पैमाना। अंकों की जगह वास्तविक ज्ञान की हौड़ होनी चाहिए। जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास हो सके और वह उसे आत्म निर्भर बना सके। सरकार ने नई शिक्षा नीिित लागू की है जिसमें बच्चों को कई तरह की सुविधाएं दी गई है। लेकिन उस नीति का सही ढंग से क्रियावयन हो और उसी अनुरूप सुविधाएं भी की जाएं। बच्चों को आत्म निर्भर बनाने वाली शिक्षा के लिए उन्हें तकनीकी व व्यवहारिक ज्ञान दिया जाना अति आवश्यक है। नई शिक्षा नीति सरकार ने जल्दबाजी में लागू की है। कोविड का समय होने से इस पर चर्चा तक नहीं की गई। इसमें कई खामियां हैं। बदलाव की आवश्यकता है। मल्टीपल चवॉइस बच्च्े को देना ठीक है लेकिन कैसे इस पर भी विचार होना चाहिए।
- संजय भार्गव, शिक्षा विद् व पूर्व प्राचार्य जेडीबी कॉलेज
प्रायोगिक शिक्षा जरूरी
बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए जिस तरह से मेडिकल में प्रेक्टीकल अधिक कराया जाता है। उसी तरह से शिक्षा प्राप्त कर व्यक्ति को यदि आत्म निर्भर बनाना है तो उसके लिए प्रायोगिक शिक्षा जरूरी है। जबकि वर्तमान में जो शिक्षा दी जा रही है वह काफी पुराने ढर्रे पर है। मेडिकल फील्ड में भी पुराना ढर्रा ही जारी है। मेडिकल में भी नये कोर्स शुरू किए जाने चाहिए। मसलन पैशेंट डॉक्टर रिलेशन सिखाया जाए। शिक्षा में डमी स्कूल की पद्धति को समाप्त किया जाना चाहिए। कक्षा में जाकर जो कुछ सीखने को मिलता है वह बिना कक्षा में जाए या आॅनलाइन नहीं मिल सकता। हर विभाग में पद व नौकरियां तो हैं पद रिक्त हैं लेकिन उनके लिए योग्य व्यक्तियों की कमी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व आत्म निर्भर बनाने वाली शिक्षा तभी मिलेगी जब बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा।
- दीपिका मित्तल, चीफ एकेडमिक आॅफिसर मेडिकल कॉलेज कोटा
मल्टीपल च्वॉइस तो दे दी उसके संसाधन उपलब्ध नहीं
शिक्षा को रोजगारमुखी बनाने के लिए नई शिक्षा नीति लागू की है लेकिन इसमें अभी काफी सुधार और बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षा की बात करें तो कृषि में रोजगार की काफी संभावनाए है। सरकार ने अभी 40 कृषि महाविद्यालय तो खोल दिए लेकिन उसमें मात्र 15 लेक्चर लगाए ऐसे में गुणवत्ता युक्त शिक्षा कहां से मिलेगी। बिना इंट्रास्टक्चर के क्वॉलेटी एजुकेशन संभव नहीं है। तीन दशक पहले तक 12 वीं कृषि में इतने प्रेक्टिकल होते थे। लैब में कितना काम कराया जाता है। आज लैब में रखे उपकरण जंग खा रहे है। ना तो प्रयोगशाला सहायक है ना ही पढ़ाने वाले प्रोफेसर। अभी बीएससी एग्रीक्चर करने के बाद भी उसके पास रोजगार नहीं होता है। ऐसे में युवाओं को रोजगारमुखी शिक्षा कैसे मिलेगी। देश की इकोनोमी कृषि पर है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इनक्यूबेशन सेंटर नहीं है। बच्चे कहां सीखेंगे। नई शिक्षा नीति में बदलाव की आवश्कता है कृषि के चार क्रेडिट पढ़ने बाद यहां का बच्चा कॉमर्स कॉलेज कैसे जा सकता है। दो क्रेडिट कम्प्यूटर के लिए कहां जाएगा। नई शिक्षा नीति पर कोई ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। इसको बिना व्यवहारिकता में लाने में परेशानी आ रही है। बच्चों को मल्टीपल चॉइस तो दे दी उसके संसाधन उपलब्ध नहीं कराए।
- मूलचंद जैन, डीन कृषि महाविद्यालय कोटा
बुनियादी शिक्षा बच्चे की मजबूत होगी तभी मिलेगी गुणवत्ता युक्त शिक्षा
गुणवत्ता युक्त शिक्षा की बुनियाद ही प्रारंभिक शिक्षा है। यहां से ही क्वॉलेटी एजुकेशन मिलेगी तभी बच्चा अपना गोल सेट कर रोजगारमुखी शिक्षा की ओर अग्रसर होगा। आज सबसे बड़ी समस्या डमी स्कूल है। जिससे बच्चों की बुनियादी शिक्षा कमजोर हो रही है। बच्चा 5 वीं में आने के साथ ही उसका संघर्ष शुरू हो जाता है। हम सिस्टम की खामियां निकालकर अपने दायित्व से नहीं बच सकते है। गुरुकुल पद्धति पर काम होना चाहिए।जब तक बेसिक यूनिट मजबूत नहीं होगी। शिक्षा में गुणवत्ता नहीं आएगी। शिक्षा में बदलाव के लिए सेवानिवृत शिक्षाविदो की एक कमेटी बननी चाहिए जो शिक्षा में आ रही परेशानी के साथ शिक्षा को कैसे रोजगारमुखी बनाए ऐसी एक कमेटी बननी चाहिए पूरे देश में जो शिक्षा को रोजगारमुखी बनाने में सहायक हो। आज स्कूल में शिक्षा का वातावरण नहीं मिल रहा है। एक होड चल रही डॉक्टर, इंजीनियर बनाने की। कोचिंग व्यवस्था से बच्चों को पूरी शिक्षा नहीं मिल पा रही है।
- संदीप अग्रवाल, स्पिंग डेल्स स्कूल संचालक
समग्र शिक्षा से ही निकलेंगी बहुमुखी प्रतिभाएं
नई शिक्षा नीति से खाफी बदलाव आएगा। इसमें समय लगेगा लेकिन चीजें सुधरेंगी। कुछ खामियां अवश्य हैं लेकिन शिक्षा नीति के बारे में एटलीस्ट सोचा तो गया। बच्चा क्लास में नियमित रहे इसकी व्यवस्था भी नई नीति में की गई है। मल्टीपल च्वाइस भी दी गई है। पहले जहां स्कूलों में शुरुआत से ही बच्चों को समग्र शिक्षा दी जाती थी। जिससे उसका सर्वांगीण विकास होता था। नैतिक शिक्षा से लेकर सामाजिक विज्ञान तक पढ़ाया जाता था। उस समग्र शिक्षा की आज आवश्यकता है। उसे से बहुमुखी प्रतिभाएं निकलकर आएंगी। यह तभी संभव होगा जब बच्चे नियमित कक्षाओं में जाएंगे। इंटरनेट पर ज्ञान का भंडार है लेकिन वहां से व्यवहारिक ज्ञान नहीं मिल सकता वह कक्षा में शिक्षक से ही मिलता है। घर परिवार से लेकर शिक्षण संस्थान तक में बच्चों का समग्र विकास करने की जरूरत है। जिससे वे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के साथ आत्म निर्भर बन सकें।
- रीना दाधीच, कुल सचिव एवं एनईपी समन्वयक, कोटा विश्वविद्यालय
आत्म निर्भरता के लिए तकनीकी शिक्षा जरूरी
बच्चे की प्रतिभा को उसके माता पिता व परिवार जन ही पहचान सकते हैं। माता पिता को बच्चों की रूचि के हिसाब से ही उसे शिक्षा दिलानी चाहिए। वह जिस भी फील्ड में जाना चाहता है उसे जाने देना चाहिए। जिससे वह अपना बेस्ट दे सकेगा। थौपी गई शिक्षा से बच्चा मानसिक तनाव में आकर गलत कदम भी उठा सकता है। बच्चों को यदि तकनीकी शिक्षा दी जाए तो वह उसे आत्म निर्भर बनाने में अधिक सहायक होगी। सिर्फ डिग्री लेना ही पर्याप्त नहीं है। हाथ का हुनर होगा तो बच्चा कभी बेरोजगार नहीं रह सकता। हमारी शिक्षा नीति में इन सब जरूरतों की ओर देखना चाहिए। सैद्धांतिक शिक्षा के साथ प्रायोगिक शिक्षा भी दी जाएगी तो वह व्यक्ति को आत्म निर्भर बनाने में अधिक सहायक होगी। जिससे वह अपना बेस्ट दे सकेगा। आज प्रैक्टिल की ज्यादा जरूरत है। हम इस क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं। अभिभावकों को भी बच्चें की रुचि देखना चाहिए। उन पर प्रेशर नहीं डालना चाहिए।
- सीमा चौहान, प्राचार्य जेडीबी आर्ट्स कॉलेज
शिक्षा नीति आधी अधूरी व्यवस्थाओं के चलते मजाक बनकर रह गई
वर्तमान में गुणवत्ता युक्त शिक्षा नहीं मिलने के कई कारण है। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि हमारी सरकार की ओर से जो पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है। वो व्यवहारिक नहीं होता है। इसको रोजगारमुखी के साथ समाज के अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। इसके बारे में आयुक्तालय को अवगत भी कराया गया है। विश्व विद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम के फेल होने का कारण मुख्य कारण एक ही दिन में पाठ्यक्रम को तैयार कर लागू कर दिया जाता है। जबकि होना यह चाहिए की इसपर पूरी रिसर्च होने के बाद समाजोपयोगी पाठ्यक्रम तैयार हो जिससे युवाओं को रोजगार मिल सकें। महाविद्यालय तो सरकार लगातार खोल रही है लेकिन इसमें स्टाफ भवन और अन्य संसाधन की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। ऐसे में क्वॉलेटी एजुकेशन कहां से मिल पाएगी। शिक्षकों पढ़ाई के समय कम हो रहा है। वर्तमान में शिक्षा पर 6 प्रतिशत खर्च होना चाहिए हो रहा 2 प्रतिशत हो रहा है। वर्तमान में शिक्षा नीति आधी अधूरी व्यवस्थाओं के चलते मजाक बनकर रह गई है।
- गीताराम शर्मा, एबीआरएसएम के अध्यक्ष व निदेशक आयुक्तालय कोटा
क्वालिटी एजुकेशन
शिक्षा को रोजागारमुखी बनाएं
क्वॉलेटी एजुकेसन के साथ रोजगारमुखी शिक्षा की बात करनी जरुरी है। क्लास में व्यवसायिक शिक्षा भी शिक्षा देनी चाहिए है। शिक्षा मुल्यांकन परक्ष होनी चाहिए। बच्चों को पहले दिन से क्वॉलेटी एजुकेशन मिलनी चाहिए। साथ कॉलेज में उपस्थित बढ़नी चाहिए। कॉलेज में शिक्षा के पर्याप्त उपकरण के संसाधन होने चाहिए। शिक्षा में कौशल विकास की व्यवस्था की आवश्यकता है। कोर्स में 30 प्रतिशत इंड्रस्टी विषय को समायोजित करना चाहिए। बच्चों को रोजगारमुखी शिक्षा के लिए केस स्टेडी सफल उद्योगवाले लोगों का अध्ययन करना चाहिए। युवाओं को ऐसी शिक्षा दी जाए जो अपने पांव पर खड़ा होने की शिक्षा की सबसे ज्यादा जरुरी है। अभी युवा अपने पांव पर खड़ा नहीं हो पाए। हमने विदेशों से क्रेडिट सिस्टम तो ले लिया है और नई शिक्षा नीति बना दी लेकिन इस शिक्षा को रोजगारमुखी नहीं बना पाए। इसका कारण है जो तीन साल का पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है जिसमें हम केरियर आबजेक्टिव नहीं डाल रहे है। बच्चा किस दिशा में जाएगा। उसका उददेश्य ही उसको बच्चे पता नहीं है। रोजागार के लिए उद्देश्य परख विषय डाला जाए।
- अनुज विलियम, शिक्षाविद्
नई शिक्षा प्रणाली के अनुरूप शिक्षक नहीं ढले है
वर्तमान में सरकार ने नई शिक्षा प्रणाली लागू तो कर दी है। लेकिन इस नई शिक्षा नीति के अनुरूप शिक्षक तैयार नहीं कर पाए है। अभी कई शिक्षक अपडेट नहीं है। सिस्टम में तो बदलाव हो गया है लेकिन पढ़ाई और इसके संस्थागत ढांचे में अभी काफी बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षा में प्रायोगिक शिक्षा ज्यादा होनी चाहिए। हिस्ट्री में टूरिज्म को जोड़ा जाए। साथ ही हेरिटेज टूरिज्म कोर्स चलना चाहिए जिससे युवाओं रोजगार मिल सकें। शिक्षा ऐसी हो जिससे युवा आॅलराउडर बन सकें। जिससे देश समाज में एक अच्छा इंसान के साथ रोजगार मुखी व्यक्ति मिलेगा। शिष्य और गुरु के बीच संवाद कायम होना जरुरी है। डमी स्कूल और कोचिंग शिक्षा जगह बुनियादी शिक्षा को मजबूत करना ज्यादा जरुरी है। अभी बच्चों को मशीन बना दिया है। उन्हें व्यवहारिक ज्ञान से दूर रखा जा रहा है। 2010 तक शिष्य गुरु का सम्मान करता था। लेकिन अब गुरु शिष्य के रिश्ते कमजोर हो रहे है।
- डॉ. सुषमा आहुजा, समाजसेविका, सोशल क्लब
मंथन के बिंदु
- नई शिक्षा नीति जल्द लागू हो
- नई शिक्षा नीति की खामियों पर काम किया जाए
- वर्तमान व्यवस्था के लिए समाज, सरकार, शिक्षक,परिवार सब जिम्मेदार
- शिक्षा के बुनियादी ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत
- कोर्स में रोजगार से जुडने संबंधी पाठ्य.क्रम शामिल हो
- इनफ्रास्ट्क्चर मजबूत किया जाए।
- इन्क्यूबैशन सेन्टर बनाए जाएं
- मल्टीपल च्वाइस कोर्स करवाएं लेकिन ऐसी व्यवस्था भी करें
- डमी स्कूल व्यवस्था बंद हो
- डाक्टर इंजीनियर ही नहीं अन्य रोजगार के रास्ते शिक्षा के माध्यम से बताए जाएं।
नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन हो
सरकार ने जो नई शिक्षा नीति लागू की है वह काफी अच्छी है। उस शिक्षा नीति का क्रियांवयन भी सही ढंग से किया जाए तो उसका लाभ होगा। बच्चे को स्कूल से ही ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे वह अपना सर्वांगीण विकास कर सके। वह तभी होगा जब बच्चा नियमित कक्षा में जाएगा। फिर चाहे वह स्कूल हो या कॉलेज। बिना कक्षा में जाए उसे व्यवहायिक ज्ञान नहीं मिल सकता। विशेष रूप से उच्च शिक्षा में बच्चे की कक्षा में उपस्थिति को अनिवार्य कर दिया जाए तो उससे काफी हद तक बच्चे की शिक्षा का स्तर सुधर सकता है। डमी स्कूलों में प्रवेश न हो इसके लिए अभिभावकों को ही विचार करना होगा। बचपन से ही कोचिंग भेजने की परम्परा गलत होती जा रही है। बच्चे की प्रतिभा को शिक्षक से अधिक उसके माता पिता समझते हैं।
- दिनेश विजय, निदेशक मां भारती ग्रुप
Comment List