आखिर क्यों गिर रहा है भूजल का स्तर 

आखिर क्यों गिर रहा है भूजल का स्तर 

भारत में भू-जल का स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है। यदि इसी प्रकार से भू- जल स्तर का नीचे गिरना जारी रहा तो आने वाले समय में बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है

भारत में भू-जल का स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है। यदि इसी प्रकार से भू- जल स्तर का नीचे गिरना जारी रहा तो आने वाले समय में बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है, क्योंकि जल ही जीवन है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि भूजल की कमी जैव विविधता को सीमित करती है।

भूजल निष्कर्षण के कारण वैकल्पिक तरीकों को विकसित करने में अधिक संसाधनों का निवेश करना पड़ता है और इससे लागत बढ़ती है। भूजल की कमी के कारण झीलें, नदियां और समुद्र जैसे बड़े जल-निकाय उथले हो जाते हैं। भूजल स्तर कम होने से खाद्य आपूर्ति पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। भारत में गर्मी के मौसम में अक्सर सूखा देखने को मिलता है। मानसून में भी वर्षा का वितरण असमान है। आने वाले समय में जल की उपलब्धता के मामले में स्थिति और अधिक खराब होने वाली है। जलवायु परिवर्तन के कारण यह स्थिति उत्पन्न हो रही है। जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में मौसम और पानी के पैटर्न को बदल रहा है, जिससे कुछ क्षेत्रों में कमी और सूखा पड़ रहा है और कुछ में बाढ़ आ रही है। वनों की कटाई से वन क्षेत्र में बारिश का पैटर्न प्रभावित होता है। जल का खराब प्रबंधन, जलस्रोतों की घटती संख्या और निवेश की कमी भी प्रमुख कारण हैं। वास्तव में गिरते भूजल का असली कारण यह है कि आज हमारे देश में पानी के परम्परागत स्रोत कम वर्षा व बेतरतीब दोहन के चलते खत्म होते जा रहे हैं और यही कारण है कि भूजल स्तर घटता जा रहा है। नलकूप आबादी आज लगातार बढ़ रही है। भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये हर साल 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल निकाला जाता है, जिससे देश के कई हिस्सों में भूजल का तेजी से क्षरण हो रहा है। औसत वार्षिक वर्षा भी कम है। वृक्षों का कम आवरण, नदियों का रुख बदलकर बांध बनाया जाना भी गिरते भूजल के कारणों में से एक है। एक आकलन के अनुसार 2050 तक दुनिया की आधी आबादी ऐसे इलाकों में रहेगी जहां जल संकट होगा। इस समय तक दुनिया के 36 फीसदी शहरों में पानी की किल्लत होगी। 

उपलब्ध सभी भूजल में से 90 प्रतिशत का उपयोग कृषि में सिंचाई के लिए किया जाता है और शेष 10 प्रतिशत का उपयोग घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से किया जाता है। वास्तव में कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ती है और इसके कारण भूजल पुनर्भरण में कमी आती है। वास्तव में आज सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक विकास जैसे उद्देश्यों के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भारत में यह एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन भूजल स्तर बढ़ाने के लिए सतह से बारिश के पानी को इकट्ठा करना बहुत ही असरदार और पारंपरिक तकनीक साबित हो सकती है। इससे छोटे तालाबों, भूमिगत टैंकों, बांध आदि के इस्तेमाल से जल संरक्षण किया जा सकता है। भूमिगत पुनर्भरण तकनीक जल संग्रहण का एक नया तरीका है। भूजल के समस्या के समाधान के लिए हमें यह चाहिए कि हम फसल चक्रों का सही निर्धारण करें। वास्तव में, फसल चक्र के निर्धारण से भूजल को संरक्षित किया जा सकता है। कम जल वाले क्षेत्रों में कम जल खपत वाली फसलें उगाई जानी चाहिए तथा जहां जल की अधिक खपत है, वहां अधिक जल खपत वाली फसलें उगाई जानी चाहिए। हर क्षेत्र में जल की उपलब्धता के अनुसार फसल उगाने की अनुमति दी जानी चाहिए। भूजल में कमी की समस्या से निपटने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है पानी के वैकल्पिक स्रोतों की खोज करना । वैकल्पिक जल स्रोतों का उपयोग जलभृतों को फिर से भरने में मदद के लिए किया जा सकता है। वाटर हार्वेस्टिंग सहित जल संरक्षण के लिए सामुदायिक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। 

भूजल स्तर में गिरावट को रोकने के लिएए अधिकारियों को बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने और लोगों को जल संरक्षण के तरीकों के बारे में शिक्षित करने की योजना बनानी चाहिए। यदि हमने इन पर ध्यान नहीं दिया तो कहना गलत नहीं होगा कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि पृथ्वी पर 97 प्रतिशत पानी खारा पानी है और केवल तीन प्रतिशत ताजा पानी है।  इसमें से दो- तिहाई से थोड़ा अधिक ग्लेशियरों और ध्रुवीय बर्फ के रूप में मौजूद है। पानी एक सीमित व अनमोल संसाधन है। यह सभी जीवित प्राणियों के लिए जरूरी है और इसका उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारी जरूरतों के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो और हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे। वास्तव में भारतीय आबादी के भविष्य की रक्षा के लिए, भारत को अपनी नीति में सुधार करने और जल- केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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-सुनील कुमार महला
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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